Wednesday 1 March 2017

आम्रपाली-कहानी भाग-१

अपनी सखियों व् अनेक सेनिको के साथ आलम पुर की राजकुमारी रूपाली एक छोटे से गाँव अनन्त पुर आयी है, गाँव वाले उसकी आव भगत में लगे है, आखिर पहली बार राजघराने से कोई मुख्य अतिथी वहा आया है, गाँव वाले कोई कसर नही छोड़ना चाहते, राजकुमारी और उनके साथियो की आव भगत ऐसे हो रही है जैसे साक्झात ईश्वर अवतरित हुये हो, हर कोई दर्शन को व्याकुल।
वैसे जबसे गाँव का लड़का समर सिंग मुन्ना काका का सबसे छोटा बेटा जिसे सब गाँव वाले निकम्मा कहते थे महल में गया है तबसे कोई न कोई महल से आता ही रहता है पर आज खुद राजकुमारी जी इस गाँव में आयी है ये बहुत बड़ी बात है।
सबसे मिल कर राजकुमारी रूपाली गाँव के मुखिया से पूछती है "इतनी महिलाये है यहाँ इनमे आम्रपाली कोन सी है?", मुखिया सत्यानन्द चारो और देखते है और सोचते है की आम्रपाली तो कहि नज़र नही आयी, शायद राजकुमारी जी से मिलना नही चहति, किन्तु राजकुमारी जी से कैसे कह की आम्रपाली नही आयी।

राजकुमारी रूपाली फिर पूछती हैइनमे से आम्रपाली कौन सी है, बहुत सोच कर मुखिया जी कहते है "छमा कीजिये राजकुमारी जी आम्रपाली यहाँ मौज़ूद नही है, उसकी सेहत ठीक नही है इसलिये वो अपनी कुटिया में विश्राम कर  रही है, आपसे न मिल पाने के लिये खेद भी जताया है"। किंतु ये सुन कर रूपाली आम्रपाली की कुटिया में जा कर उस से भेट करने को कहती है, इस पर मुखिया जी कहते है "गाँव की एक साधारण कन्या से भेट के लिये इतनी व्याकुलता,वो कोई साहित्यकार या कलाकार या नर्तकी नही है फिर उससे मिलने की इतनी उत्सुकता क्यों? न ही उसने कोई ऐसा कार्य किया है जिससे उसका बहुत नाम हो, फिर आप उससे मिलने के लिये इतनी उत्सुक क्यों हैं?", राजकुमारी कहती है "वो मेरे जीवन पर क्या असर डालती है मुझे ही पता है, उससे भेट कितनी आवश्यक है मुझे ही पता है, महल से इतनी दूर सिर्फ उसी से मिलने आई हूँ, कृपया उसकी कुटिया तक मुझे पंहुचा दे", राजकुमारी की बात सुन कर वो उन्हें वहा ले जाने को तैयार हो जाता है, राजकुमारी की सखी और सैन्य टुकड़ी भी उनके साथ चलने लगती है पर वो उन्हें साथ चलने को मना कर देती है।

आम्रपाली के घर पहुँच कर मुखिया जी उसका दरवाज़ा खटखटाते है और कहते है "अम्मू ओ अम्मू देख तो कौन आया है द्वार पे तेरे, तू तो नही आ सकी उनसे मिलने पर वो यहाँ तुझसे मिलने आ गयी, देख जल्दी द्वार खोल",  तत्पश्चात द्वार खुल जाता है, फटे दुपट्टे से मुह ढके फटे और अनेक स्थानों से रंग बिरंगे बेमेल वस्त्रौ से रफ़ू करे घिसे पुराने लहंगे चोली में एक युवती ने द्वार खोला और अंदर आने को कहा। मुखिया जी अंदर आने लगे तो राजकुमारी जी ने उन्हें बाहर रुक कर प्रतीक्षा के लिये कहा और खुद अंदर चली गयी, द्वार अंदर से  बन्द कर लिया।

अंदर देखा एक टूटी चारपाई, टूटी फूटी दीवारे, पुराने टूटे फूटे बर्तन, मिटटी का बिना लीपा हुआ फर्श, फटे और मेले बिस्तर, आम्रपाली ने दीवार की एक और मुह किया हुआ है और राजकुमारी से कहती है "बेठिये राजकुमारी जी, माना ये स्थान आपके लायक नही है, लायक तो मैं भी नही हूँ फिर भी मुझ जैसी साधारण कन्या की कुटिया में आ कर इसे पावन कर दिया, बताइये क्या लेंगी आप, कैसे सत्कार करू आपका", ये सुन कर राजकुमारी रूपाली कहती है "पहले अपने मेज़बान का चेहरा तो देखने दो, मेरे सम्मुख आओ और अपना चेहरा दिखाओ",  आम्रपाली पलटतीहै और राजकुमारी के सम्मुख जाती है, राजकुमारी उसकी सुंदरता देख अवाक रह जाती है और सोचती है "क्या ऐसे स्थानो पर भी ऐसी खूबसूरती बसती है", आम्रपाली राजकुमारी से कुछ लेने को कहती है तो राजकुमारी उसके सामने छोली फेला कर कहती है "तुमने मुझसे कुछ लेने के लिये कहा है, मैं तुमसे कुछ मांग रही हूँ, आशा करती हूँ तुम अपनी बात से नही पल्टोगि, आम्रपाली मुझे तुम वही दोगी जो मैं चाहती हूँ ये वादा करो", आम्रपाली कहती है "एक मेज़बान होने के नाते ये कर्तव्य है मेरा की अपनी मेहमान की सभी ज़ायज़ इच्छा पूर्ण करू, स्पष्ट बताये आपको मुझ गरीब और साधारण कन्या से क्या चाहिये'',।
राजकुमारी कहती है "समर, समर मेरा पति और इस राज्य का भावी राजा है, किन्तु तुम उसके हृदय में रहती हो, तुमसे बिछड़ कर भी वो तुमसे अलग नही है, सिर्फ तुम्हारी ही बाते वो करता है, उसे राज्य संभालना है, राजनीती सीखनी है पर उसकी दिलचस्पी इसमें नही है तुममे है, मुझे पता है तुम् दोनों का रिश्ता पर अब तुममे और उसमे अंतर है, कृपया उसे अपने प्रेम से आज़ाद कर दो, मुझे मेरा समर लौटा दो मेरे लिए न सही राज्य के लिये ही सही'', आम्रपाली कहती है "ये क्या मांग लिया आपने मुझसे, उसकी याद के सिवा और कुछ मेरे पास बचा भी नही है, एक उसकी यादे ही तो मेरे जीने का सहारा है, उन्हें भी आप ले लेना चाहती है, महल की चका चौंध मे व्याप्त वो मेरे प्रेम को भूला समस्त गाँव में मुझे बदनाम कर राज्य की राजकुमारी से विवाह कर बैठा, एक पल के लिये भी मेरा विचार हृदय में नही लाया, इसके बाद भी उसकी हर नई चित्रकारी को धन के अभाव में मैं खरीदती रही, उसको आगे बड़ते देख प्रसन्न होती रही, जब उसने राजकुमारी से विवाह किया तो सभी ने उसे बुरा भला कहा पर मेरा विचार था उसने ठीक किया, आज वो जिस शिखर पर है वहा पत्नी केवल एक राजकुमारी ही उसकी होनी चाहिये ये साधारण कन्या नही, किंतु हे राजकुमारी मुझे उस से प्रेम करने से आप रोक नही सकती, उसकी यादो से मुक्त नही कर सकती"।

राजकुमारी कहती है "एक से एक धनवान पुरुष और सुंदर पुरुष से मैं तुम्हारा विवाह करा सकती हूँ, किसी राज्य के राजा तुमसे प्रसन्नता से विवाह कर लेंगे यदि तुम चाहो तो, तुम्हे धन धान्य इतना मैं दूंगी की उमर भर इसकी कमी नही होगी, तुम्हारी कुटिया को भव्य हवेली बनवा दूँगी, बस तुम विवाह कर लो, तुम्हारे विवाह के समाचार से समर भी मेरे पास लौट आयेंगे और राज काज भी संभाल लेंगे", राजकुमारी आगे कहती है "समर के द्वारा तुम्हे न अपनाने का दाग तुम्हे जो लगा है वो भी मिट जायेगा, आम्रपाली धन से आवश्यक आज कुछ भी नही है, भावी जीवन और अपने सुख समृद्धि की सोचो, धन है तो कुछ भी तुम पा सकती हो?"", आम्रपाली कहती है ''क्या प्रेम भी'', राजकुमारी उत्तर देती है ''हाँ प्रेम भी''।

आम्रपाली कहती है "छमा चाहती हूँ राजकुमारी जी, यदि धन से हि प्रेम मिल सकता तक आप कितनी धनी है, आप भिक्षा में आज मुझसे समर माँग रही हैं, क्या धन की कमी हो गयी है आपके पास, राजकुमारी जी में ये गाँव और राज्य त्याग सकती हूँ किंतु जीवित रहते समर के स्थान पर किसी और को नही ला सकती,आप राज्य की राजकुमारी और समर की पत्नी है इसलिये आपका मान रखा है, इससे पूर्व मैं मर्यादा भूल जाऊ कृपया यहाँ से चली जाये।

राजकुमारी अपना सा मुह ले कर वहा से चल देती है, आज अहसास हुआ प्रेम धन से लालच से नही पाया जा सकता, सिर्फ भौतिक शरीर से रिश्ता जोड़ना ही प्रेम नही, कभी कभी भौतिक रिश्तों में पड़े बिना निःस्वार्थ भावना भी प्रेम कहलाती है, दुनिया चाहे इसे कुछ भी कहे पर प्रेमी जानते है ये प्रेम है सच्चा निःस्वार्थ कोमल पवित्र प्रेम।

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