Wednesday 8 March 2017

ईश्वर वाणी-२०१, अनेको में एक और एक में अनेक हूँ मै

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों यु तो तुम्हें अपने अनेक रूपों का शाब्दिक अर्थ बता चूका हूँ किन्तु आज तुम्हें 'शिव' का शाब्दिक अर्थ बताता हूँ।
श+इ+व=शिव

श+ शक्ति, सृष्टि, सम्पूर्ण,
इ+ इति, प्रारम्भ, अंत
व+ विनाश, विविधता, व्यक्तित्व

अर्थात ऐसे ईश्वरीय शक्ति जो सम्पूर्ण सृष्टि का आरम्भ और अंत करने की कारक है। सृष्टि के प्रारम्भ व विनाश इन सबके बीच अनेक विविधता व्यक्तित्वो से परिचित करने वाली शक्ति को ही 'शिव' कहते है, तभी उनका स्वरुप सर्वप्रथम निराकार में मिलता है।

शिव का वही निराकार स्वरुप ही ब्रमांड है, जब सृष्टि निर्माण के विषय में मैंने विचार किया तो तीन देवताओं को सबसे पहले जन्म दिया इनमे ब्रम्हा, विष्णु व् शिव थे, ब्रम्हा व् विष्णु तो साकार उत्पन्न हुये किन्तु संसार को ईश्वर के वस्तिविक ईश्वरीय रूप का परिचय व् ईश्वरीय महिमा का जगत में प्रसार फेलाने के उद्देश्य से शिव निराकार रहे, किंतु सृष्टि के अनेक कार्यो की पूर्ती हेतु ब्रम्हा व् विष्णु की प्राथना से उन्हें साकार रूप लेना पड़ा जिसे नाम दिया शंकर।

शंकर स्वरुप में शिव ने अनेक लीला रची, उनका रहन, सहन, पहनवा सब विविधता से भरा था, और जिनके क्रोध से भूमि कॉपी जाती थी, श्रष्टि के अनेक कार्यो के लिये उन्हें ये रूप लेना पड़ा।

हे मनुष्यों यद्दपि ये सत्य है निराकार स्वरुप वाला वो आत्माओ में परम मैं परमात्मा निराकार हूँ, किंतु देश, काल, परिस्तिथियों के अनुरूप मैंने ही जन्म ले आकर धारण किया है क्योंकि तुम मनुष्य अल्पविषवासि हो, तुम केवल जो देखते हो उसी पर् यकीन करते हो की तू बहुत कुछ है जो दीखता नही किन्तु है जैसे तुम्हारी वानी, तुम्हारी विचारधारा, प्रेम की भावना, ये सब है किंतु दिखती नही, वैसे ही मैं हूँ पर दीखता नही इसलिये तुम मुझ पर यकीं नही करते।

हे मनुष्यों इससे पूर्व मैं तुम्हे बता चूका हूँ मैं अपने ही एक अंश को अपने समान सभी अधिकार सौंप कर देश, काल, परिस्तिथि के अनुरूप प्राणी व जगत के कल्याण के लिये भेजता हूँ, किन्तु आज मैंने कहा की मैं खुद ही जन्म लेता हूँ जहाँ मेरी आवश्यकता होती है, तुम सोचोगे की अलग अलग बाते क्यों?

हे मनुष्यों मेरे अंश जो मैंने जगत के कल्याण हेतु भेजे मुझ अनंत से निकल कर मुझमे ही समा गए, अर्थात में अनंत में भी एक हूँ और एक में ही अनंत हूँ, जैसे भगवान शिव और शंकर।

हे मनुष्यों तीनो देव व् तीनो देवीया एवं समस्त मेरे स्वरुप अलग हो कर भी एक है और एक हो कर भी अलग, तुम जिस नाम से उन्हें पुकारो आराधना करो मुझ तक ही पहुचोगे, क्योंकि सब मुझसे ही निकले हैं और मुझमे ही समाते हैं, मैं परमेश्वर हूँ।


कल्याण हो

No comments:

Post a Comment