दुनिया में सबसे प्यारी है माँ, जग में सबसे न्यारी है माँ, जो सह कर सब
कुछ वारती है हम पे अपना प्यार ऐसी ही नारी को कहते है माँ, देवता भी
तरसते हैं जिसके आँचल की छाव के लिए, लिए जन्म ईश्वर ने भी जिसका प्यार
पाने के लिए उसी स्त्री को कहते हैं माँ, कभी यशोदा तो कभी देवकी तो कभी
केकई भी बनती है ये माँ , देखे हैं अनेक रूप इस माँ के लेकिन हर रूप में
बरसाती है केवल प्यार ये माँ , जन्म जन्मों का सुख देती, जीवन को सही
दिशा दिखाती, अच्छे बुरे का पाठ पदाती , जीने के काबिल बनाती और जो है सबसे
ज्यादा भाति उस स्त्री को ही कहते हैं माँ, बड़े खुशनसीब होते हैं वो लोग जिनके पास होती है माँ , बड़े नसीब से मिलती है माँ , दुनिया की दौलत से भी ज्यादा, दुनिया में सबसे कीमती होती है माँ , अनमोल होती है माँ और अनमोल होती इसकी ममता , नसीबो से मिलती है माँ और खुशनसीबी से मिलती है इसकी ममता ,दुनिया की सबसे हसीनो में सबसे पहले होती है माँ , प्यार लुटाने वालो में सबसे आगे होती है माँ इसलिए दुनिया में
सबसे प्यारी है माँ।
this is not only a hindi sher o shayri site, there is also u can see short stories, articals, poetry in ur own language yes off course in hindi......
Sunday, 12 May 2013
Friday, 10 May 2013
ईश्वर वाणी**38** -हे स्वम पे अभिमान करने वाले व्यक्ति अपने पर अभिमान ना कर...........Ishwar Vaani-38
ईश्वर कहते हैं "हे स्वम पे अभिमान करने वाले व्यक्ति अपने पर अभिमान ना
कर, स्वम को ग्यानी और बुध्हीमान समझने वाले व्यक्ति अपने पर अभिमान ना
कर, तेरा ज्ञान और तेरी बुध्ही नगण्य है, तेरा रूप और तेरा वैभव भी नगण्य
है, हे मनुष्य तू किस पर अभिमान करता है, क्या तू अपनी देह पर अभिमान करता
है जो एक दिन मिटटी में मिल जायेगी, एक समय ऐसा आएगा जब तेरे अपने ही तुझे
अपने से दूर कर तुझे माटी में मिलाने के लिए शीग्रता करेंगे और तुझे एक पल
भी बर्शास्त ना कर सकेंगे, क्या तू उस काया का अभीमान करता है, या फिर तू
उस माया और वैभव का अभिमान करता है जिसके कारण तूने अनेक भोतिक सुख तो
भोगे, जिसके कारण तूने अपने देह को तो राहत दी अनेक कष्टों से लेकिन तू
अपनी देह के मूल कर्तव्यों को भूल गया, तू भूल गया की तुझे ये देह उस
परमेश्वर ने किस उद्देश्य से दी है, तू उसके उद्देश्य को भूल कर भोग-विलास
में लीन हो गया और आज अपने वैभव पर अभिमान करता है, या फिर तू अभिमान करता
है अपने ज्ञान का, हे मनुष्य तेरा ज्ञान कितना है, और क्या जानता है तू जो
खुद पर अभिमान करता फिरता है, जितना तू खुद को ग्यानी समझेगा मेरी नज़र में
तू उतना ही अज्ञानी और मूर्ख होगा, क्यों की एक ग्यानी मनुष्य खुद को
ग्यानी नहीं समझता, एक ग्यानी मनुष्य कभी अपने ज्ञान का अभिमान नहीं करता
अपितु अपने ज्ञान का निःस्वार्थ भाव से प्रचार-प्रसार करता है, जो व्यक्ति
खुद को ग्यानी न मान कर निःस्वार्थ भाव से प्राणियों के कल्याण हेतु कार्य
करता है, जो मनुष्य अपने को ग्यानी एवं परम ग्यानी ना समझ कर मेरा स्मरण कर के
प्राणियों के कल्याण हेतु ज्ञान का और इश्वारिये उद्देश्यों का प्रचारक बन
कर उनका प्रचार-प्रशार करता है वो मनुष्य मेरी दृष्टि में परम ग्यानी है, किन्तु
जो मनुष्य अपने ज्ञान का अभिमान करते है मैं उनके ज्ञान को नष्ट कर देता
हूँ क्योंकि ज्ञान तो अपार है, ज्ञान की गहराई और उंचाई आज तक संसार में
मेरे अतिरिक्त कोई नहीं जानता, जो मनुष्य इसका अभिमान करते हैं मैं उनके
लिए ज्ञान का वो समंदर प्रादान करता हूँ जिसे वो कभी पार नहीं कर सकते,
इसलिए मेरी दृष्टि में वो सबसे अधिक अज्ञानी होते हैं किन्तु जो अहंकार
नहीं करते अपने ज्ञान का और निःस्वार्थ प्रचारक बन कर संसार के प्राणियों
को ज्ञान की प्रकाश से रोषित करते हैं मेरी दृष्टि में वो परम ग्यानी है और
ऐसे मनुष्यों को मैं स्वम ज्ञान प्रदान कर के अथाह ज्ञान के सागर को पार
करा कर अपने में समाहित कर लेता हूँ" ।
इश्वर कहते हैं " जो व्यक्ति खुद को श्रेष्ठ समझते हैं, जो व्यक्ति खुद को उच्च समझते हैं एवं दूसरों को नीच समझते हैं, मेरी दृष्टि में वो ही अयोग्य और नीच हैं, भले वो खुद को मनुष्यों में श्रेष्ठ समझे किन्तु मेरी दृष्टि में वो सबसे अधिक आयोग और नीच हैं, ईश्वर कहते हैं जो मनुष्यों की दृष्टि में योग्य और उच्च होता है वो मेरी दृष्टि में नहीं क्योंकि ऐसे मनुष्य अहंकारी और अभिमानी होते हैं किन्तु जो खुद को आयोग और नीच समझ कर सदा प्राणी कल्याण हेतु कार्य करता है एवं स्वम को मेरा दास मान कर मेरी शिक्षा का निःस्वार्थ प्रचार-प्रसार समस्त मानव समूह में करता है वो ही व्यक्ति मेरी दृष्टि में श्रेष्ट एवं योग्य और उच्च है और मेरा अति प्रिये भी ।
इश्वर कहते हैं " जो व्यक्ति खुद को श्रेष्ठ समझते हैं, जो व्यक्ति खुद को उच्च समझते हैं एवं दूसरों को नीच समझते हैं, मेरी दृष्टि में वो ही अयोग्य और नीच हैं, भले वो खुद को मनुष्यों में श्रेष्ठ समझे किन्तु मेरी दृष्टि में वो सबसे अधिक आयोग और नीच हैं, ईश्वर कहते हैं जो मनुष्यों की दृष्टि में योग्य और उच्च होता है वो मेरी दृष्टि में नहीं क्योंकि ऐसे मनुष्य अहंकारी और अभिमानी होते हैं किन्तु जो खुद को आयोग और नीच समझ कर सदा प्राणी कल्याण हेतु कार्य करता है एवं स्वम को मेरा दास मान कर मेरी शिक्षा का निःस्वार्थ प्रचार-प्रसार समस्त मानव समूह में करता है वो ही व्यक्ति मेरी दृष्टि में श्रेष्ट एवं योग्य और उच्च है और मेरा अति प्रिये भी ।
इसलिए हे मनुष्यों अपने पे
अहंकार ना करो, खुद पे अभिमान ना करो, इस संसार में जो भी तुम्हे दिया गया
है वो मेरे द्वारा ही तो दिया गया है, इसलिए हे मनुष्यों अपने कर्तव्यों को
जानो, उन्हें याद करो की किस उद्देश्य से तुम्हे इस पृथ्वी पर भेजा गया है,
अपने उद्देश्यों को पूर्ण करो, अभिमान और अहंकार का त्याग करो, अपने कार्यों को
पूर्ण कर मुझमे ही समां जाओ तुम्हरा कल्याण हो।।"
Tuesday, 7 May 2013
वक़्त ठहर सा गया-कविता
बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक
सा गया, ऐसा लगा देख कर उन्हें जैसे बीता वक़्त कभी दूर मुझसे गया ही नहीं,
ऐसा लगा पा कर करीब उन्हें जैसे जुदा उनसे हम कभी हुए ही नहीं, कैसे कट
गया वो जुदाई का इतना लम्बा अरसा, कैसे कट गया इन फासलों का ये रास्ता,
वक्त के साथ कुछ पता लगा ही नहीं, कैसे कट गया ये जुदाई का आलम, कैसे बीत
गया ग़मों का वो मौसम कुछ पता लगा ही नहीं,बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक सा गया।।
जाते
हुए एक दूसरे दूर सोचा ना था हमने की कभी ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर फिर हम
मिलेंगे, जाते हुए एक दूसरे से दूर सोचा ना था हमने की कभी फिर एक दूसरे को
देखेंगे, हुए तो जो जुदा एक दूसरे से इस कदर सोचा ना था की कभी फिर किस
राह में हम ऐसे मिलेंगे।
बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक सा गया।
चलते चलते राह में ऐसे मिले
हम, इन सुनसान राहों में ऐसे मिले हम जैसे मिले हो दो अजनबी, जैसे ना मिले
हो इससे पहले फिर कभी, पर शुक्र है इन आखों का, पर शुक्र है इन अश्कों का
और शुक्र है इस दिल का जिसकी धडकनों ने हमे फिर पहचान लिया, हो गए हो भले
आज अजनबी पर इन अश्कों ने तुम्हे देख कर आज भी अपना मान लिया।
बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक सा गया।
चले
गए थे दूर जो एक दूसरे से हो कर मजबूर, हो कर खफा जो हो गए थे एक दूसरे से इतना दूर, ना चाहा था फिर कभी मिलना इस कदर, ना चाहा था कभी चलते हुए राह में एक
दूसरे को पाना इस कदर , न सोचा था चलते हुए राह में मिलेंगे फिर कभी हम यु अजनबी
बन कर, न सोचा था कभी देखेंगे एक दुसरे को फिर कभी ऐसे मुड कर, ना सोचा था
कभी वक़्त हमे फिर इस मोड़ पर लाएगा, किया था जिसने दूर हमे वो ही हमे
मिलाएगा।
बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों
बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक
सा गया, ऐसा लगा देख कर उन्हें जैसे बीता वक़्त कभी दूर मुझसे गया ही नहीं,
ऐसा लगा पा कर करीब उन्हें जैसे जुदा उनसे हम कभी हुए ही नहीं, कैसे कट
गया वो जुदाई का इतना लम्बा अरसा, कैसे कट गया इन फासलों का ये रास्ता,
वक्त के साथ कुछ पता लगा ही नहीं, कैसे कट गया ये जुदाई का आलम, कैसे बीत
गया ग़मों का वो मौसम कुछ पता लगा ही नहीं,
बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक सा गया।
बरसों बाद जब उन्हें देखा तो वक़्त ठहर सा गया, बरसों बाद जब उन्हें करीब पाया तो वक़्त रुक सा गया।
Monday, 6 May 2013
ज़िम्मेदार कौन आर्टिकल ..
१६ दिसंबर दामिनी सामूहिक बलात्कार के बाद ऐसा लगने लगा था की शायद अब महिलाओ की स्तिथि देश और देश की राजधानी दिल्ली में कुछ सुधर जायगी, पर आज भी आये दिन देश और दिल्ली में होने वाली बलात्कार की घटनाओ ने इस देश की महिलाओ के दिल में अपनी सुरक्षा को ले कर न सिर्फ डर पैदा किया है बल्कि ऐसी वारदातों ने भारत का नाम पूरी दुनिया में बदनाम कर दिया है। हिन्दुस्तान जहाँ की ये कहावत पूरे विश्व में प्रचलित थी """""''यत्र नरियस्थे पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" अर्थात जहाँ नारियों की पूजा होती है वह साक्षात देवता विराजित होते हैं और इसलिए हमारे देश में नारियों को सदा ही पूजनीय माना जाता रहा है कही दुर्गा के रूप में तो कही पारवती के रूप में, घर की बेटी, बहु और पत्नी को भी साक्षात लक्ष्मी का रूप मन जाता रहा है, अब सवाल ये उठता है की जिस देश की परंपरा और सभ्यता पूरी दुनिया में सबसे आदर्श मानी जाती थी आज किस दिशा में जा रही है, ऐसे सभ्य और परंपरा वाले देश में आज नारी एक भोग की वस्तु बन कर रह गयी है। आज आलम ये है की घर, बाहर, अपने पराये सब से उसे डर कर रहना पड़ रहा है की कब कौन बदल जाए, किसके मन में हवस का राक्षश जाग जाए, आज दफ्तर से ले कर घर और घर से ले कर रास्ते भर तक न जाने कितनी गन्दी नज़रों का वो सामना करती है और अनेक छेड़ छाड़ को सहती है और इसके साथ ही अनेक कठिनाइयों को सामना करते हुए उन्हें हर वक़्त ये डर उन्हें सताता रहता है की कही उनके साथ कुछ गलत न हो जाये। और इस प्रकार महिलाये /लडकिया आज केवल स्कूल कॉलेज जाने वाली और नौकरी करने वाली ही नहीं अपितु छोटी छोटी बच्चीया भी इस डर के माहोल में जीने को मजबूर हैं वो भी उस देश में में जहाँ नारी को सबसे अधिक मान और सम्मान और प्रतिष्टा प्राप्त है और जहाँ ना जाने कितनी ही महान, विद्वान् और ताज्स्विनी महिलाओं का जन्म हुआ है और जिन्होंने इस देश का ना सिर्फ नाम रोशन किया है अपितु देश के इतिहास में भी अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित कराया है एवं देश के इतिहास हो भी अमर बना दिया है ।
अब सवाल उठता है की उस देश में ऐसी सोच आज के भारतवाशियों में कहाँ से आ रही है। क्यों दिनों दिन महिलाओं के प्रति अपराधिक मामले बड़ते जा रहे हैं, जिस देश की सभ्यता और संस्कृति इंतनी महान रही हो उस देश में आज ऐसे दुराचारी कहाँ से पैदा हो रहे हैं, कहाँ से उनमे ऐसा राक्षस पैदा हो रहा है, सच तो ये है ऐसा राक्षश पैदा करने वाले भी हम लोग ही है, आज हमारा बदलता समाज ही इसके लिए ज़िम्मेदार हैं, माता-पिता ही इसके लिए सबसे पहले ज़िम्मेदार है। प्राचीन काल में जहाँ लोग बेटी के पैदा होने के लिए भी मन्नते मानते थे उन्हें पुत्री रत्न के नाम से पुकारा जाता था इसके साथ उनकी परवरिश में अवं पारिवारिक प्रेम में कोई भेद भाव नहीं रखा जाता था आज स्तिथि इसके एक दम अलग है।
आज लोग लड़कियों के लिए तो कहते हैं कपडे ढंग के पहनो और समय पर आओ जाओ, ये मत करो वो मत करो, तुम लड़की हो तुम ये नहीं कर सकती तुम वह नहीं जा सकती, तुम्हे माँ और घर के काम काज में हाथ बटाना चाहिए, तुम्हे ये करना चाहिए वो नहीं, इसे दोस्ती रखो उसे नहीं, इसे बात करो उसे नहीं वगेरा वगेरा और अनेक प्रकार की बंदिशे उनपे लगायी जाती है । लेकिन माता-पिता अपने बेटों को ऐसी कोई रोक टोक नहीं करते की समय पर घर आओ-जाओ, ये मत करो वो मत करो, यहाँ मत जाओ वह मत जाओ, थोडा अपनी बहन और माँ के काम में भी हाथ बटा लो, इसे बात मत करो, ऐसे मत बोलो उसके साथ मत घूमो इत्यादि बल्कि लोग अपने बेटों को ऐसी छूट देते हैं जैसे अपराध और गलतिया तो केवल लड़कियां ही करती है और लड़के तो हमेशा सही काम करते है। मैंने बचपन में अपनी माँ के मुह से सुना था की लड़कियों को हमेशा दबा के रखना चाहिए क्यों की उनके कदम बहकते देर नहीं लगती ये सुन कर मुझे बड़ा बुरा लगता था और छोटी सी उम्र से ही मैंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया, अब मेरे घर वाले और रिश्तेदार मुझे ताने मरते थे यहाँ तक की मुझपे तरह तरह के ज़ुल्म किये गए और वज़ह बस इतनी सी थी की मैंने अपने घर में अपने भाइयों जितना ही हक़ माँगा और बदले में मुझे ज़िल्लत मिली, मुझे मेरी सहेलियन के सामने पड़ोसियों के सामने नीचा दिखया गया, ज़लील किया गया और गलती की मैंने की बस हक़ माँगा बराबरी का, हर वो चीज़ मांगी जो भाइयों को दी जाती थी, मैंने घर के काम में माँ की भी कोई मदद नहीं की क्यों की मुझसे ऐसे करने को इसलिए कहा जाता था क्योंकि मैं एक लड़की हूँ और ये ही बात मुझे बुरी लगती थी की मैं घर का काम करू क्योंकी मैं एक लड़की हूँ यानि की भेद भाव के साथ मुझ पर ये जबरदस्ती है की मैं ही घर का काम करू क्यों की मैं एक लड़की हूँ, मैं सोचती थी जब लडकियां बाहर नौकरी कर सकती है और लड़कों के बराबर कमा सकती है तो लड़के घर का काम कर के माँ और बहन की मदद क्यों नहीं कर सकते, इसके साथ ही मैंने अपने घर वालो, रिश्तेदार, पड़ोसियों और जाननेवालों के मुह से एक और जूमला सुना की बेटा तो चाहे कुछ भी करे कभी उसका कुछ नहीं बिगड़ता, बिगड़ता तो लड़कियों का है इसके साथ ही मैंने सुना की लोग अपने बेटों की तुलना राज महाराजा या फिर बादशाहों से करते हैं की हमारा बेटा कुछ भी करे वो तो बादशाह है , वो तो कुछ भी कर सकता है पर लोग अपनी अपनी लड़कियों को संभाल कर रखे, जब भी मैं ये सुनती तो सोचती की इसका क्या मतलब है, इसका मतलब है की बेटा अगर किसी लड़की के साथ बलात्कार भी करे तो सही क्यों की वो लड़का है , घर और मोहल्ले जा बादशाह है और लड़की दासी या फिर बांदी या फिर उससे भी नीचे और फिर ऐसा कुकृत्य करने वाले का क्या बिगड़ा और अगर कुछ बिगड़ा है किसी का तो वो लड़की है और लड़के ने ऐसा इसलिए किया क्यों की घर वालों ने लड़की को परदे में नहीं रखा या फिर लड़कों के मुताबिक़ नही रखा और इसलिए लड़के को ये इजाज़त मिल गयी की वो उसके साथ ऐसा करे।
आज लोग लड़कियों के लिए तो कहते हैं कपडे ढंग के पहनो और समय पर आओ जाओ, ये मत करो वो मत करो, तुम लड़की हो तुम ये नहीं कर सकती तुम वह नहीं जा सकती, तुम्हे माँ और घर के काम काज में हाथ बटाना चाहिए, तुम्हे ये करना चाहिए वो नहीं, इसे दोस्ती रखो उसे नहीं, इसे बात करो उसे नहीं वगेरा वगेरा और अनेक प्रकार की बंदिशे उनपे लगायी जाती है । लेकिन माता-पिता अपने बेटों को ऐसी कोई रोक टोक नहीं करते की समय पर घर आओ-जाओ, ये मत करो वो मत करो, यहाँ मत जाओ वह मत जाओ, थोडा अपनी बहन और माँ के काम में भी हाथ बटा लो, इसे बात मत करो, ऐसे मत बोलो उसके साथ मत घूमो इत्यादि बल्कि लोग अपने बेटों को ऐसी छूट देते हैं जैसे अपराध और गलतिया तो केवल लड़कियां ही करती है और लड़के तो हमेशा सही काम करते है। मैंने बचपन में अपनी माँ के मुह से सुना था की लड़कियों को हमेशा दबा के रखना चाहिए क्यों की उनके कदम बहकते देर नहीं लगती ये सुन कर मुझे बड़ा बुरा लगता था और छोटी सी उम्र से ही मैंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया, अब मेरे घर वाले और रिश्तेदार मुझे ताने मरते थे यहाँ तक की मुझपे तरह तरह के ज़ुल्म किये गए और वज़ह बस इतनी सी थी की मैंने अपने घर में अपने भाइयों जितना ही हक़ माँगा और बदले में मुझे ज़िल्लत मिली, मुझे मेरी सहेलियन के सामने पड़ोसियों के सामने नीचा दिखया गया, ज़लील किया गया और गलती की मैंने की बस हक़ माँगा बराबरी का, हर वो चीज़ मांगी जो भाइयों को दी जाती थी, मैंने घर के काम में माँ की भी कोई मदद नहीं की क्यों की मुझसे ऐसे करने को इसलिए कहा जाता था क्योंकि मैं एक लड़की हूँ और ये ही बात मुझे बुरी लगती थी की मैं घर का काम करू क्योंकी मैं एक लड़की हूँ यानि की भेद भाव के साथ मुझ पर ये जबरदस्ती है की मैं ही घर का काम करू क्यों की मैं एक लड़की हूँ, मैं सोचती थी जब लडकियां बाहर नौकरी कर सकती है और लड़कों के बराबर कमा सकती है तो लड़के घर का काम कर के माँ और बहन की मदद क्यों नहीं कर सकते, इसके साथ ही मैंने अपने घर वालो, रिश्तेदार, पड़ोसियों और जाननेवालों के मुह से एक और जूमला सुना की बेटा तो चाहे कुछ भी करे कभी उसका कुछ नहीं बिगड़ता, बिगड़ता तो लड़कियों का है इसके साथ ही मैंने सुना की लोग अपने बेटों की तुलना राज महाराजा या फिर बादशाहों से करते हैं की हमारा बेटा कुछ भी करे वो तो बादशाह है , वो तो कुछ भी कर सकता है पर लोग अपनी अपनी लड़कियों को संभाल कर रखे, जब भी मैं ये सुनती तो सोचती की इसका क्या मतलब है, इसका मतलब है की बेटा अगर किसी लड़की के साथ बलात्कार भी करे तो सही क्यों की वो लड़का है , घर और मोहल्ले जा बादशाह है और लड़की दासी या फिर बांदी या फिर उससे भी नीचे और फिर ऐसा कुकृत्य करने वाले का क्या बिगड़ा और अगर कुछ बिगड़ा है किसी का तो वो लड़की है और लड़के ने ऐसा इसलिए किया क्यों की घर वालों ने लड़की को परदे में नहीं रखा या फिर लड़कों के मुताबिक़ नही रखा और इसलिए लड़के को ये इजाज़त मिल गयी की वो उसके साथ ऐसा करे।
ऐसी ही ना जाने कितनी ही बाते मैंने अपने बचपन में देखि और झेली हैं पर मैं उन लड़कियों में से नहीं थी जो चुपचाप अपने साथ हो रहे अपने घर वालों के इस भेद भाव पूर्ण व्यवहार को सहती, मैं सोचती अगर ऐसा करने वाले बादशा है तो लड़कियों को भी कुछ भी करने का अधिकार होना चाहिए, और एक ही माँ बाप से पैदा हुआ दो बच्चे सिर्फ लिंग की वज़ह से एक बादशा बना और एक बांदी तो ऐसे माता-पिता मेरी नज़र में श्रेष्ट माता-पिता नहीं हैं, माता-पिता को चाहिए की वो अपने सभी बच्चो को बेहतर और आदर्श सीख दे न की एक को उद्दंडी और एक को बांदी बना के रखे, और मैंने अपनी इस धारणा के कारण अपने परिवार में विरोध किया पर अफ़सोस मेरे साथ कोई और लड़की खड़ी न हुई न कोई चचेरी, ममेरी बहन और न कोई सहेली,क्यों की उनकी सबकी समझ ये ही थी की वो लड़की है इसलिए उन्हें ये सब तो सहना ही है, पर मैं ये सोचती की अगर हम आज विरोध नहीं करेंगे तो कल जब हम खुद एक बेटी की माँ बनेगी तो हम भी अपने बच्चियों के साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगी, मैं कहती नहीं मैं ऐसी माँ बिलकुल नहीं बनुगी और इसलिए मैं खुद अपने साथ हो रहे इस भेद भाव का विरोध करुँगी जो मैंने किया और आज भी कर रही हूँ । मैं ये भी सोचती की अगर हमारे माँ-बाप और हमारे घर वाले ही हमारी क़द्र नहीं करेंगे और हमारे साथ ऐसे भेद भाव रखेंगे तो ये समाज हमे क्या इज्ज़त देगा, अगर हमारे जन्म देने वाले ही हमारे साथ दॊयम दर्जे का वयवहार करेंगे तो ये समाज हमारे साथ कैसे प्रथम दर्जे का व्यवहार कर हमे इज्ज़त देगा और इसलिए अपनी छोटी सी उम्र से ही मैंने अपने घर वालो के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया, अपने साथ हो रहे इस भेद भाव के विरोध में।। ,
सच तो ये है की आज जो देश में महिलाओ की जो स्तिथि है इसके लिए जिम्मेदार हमारे बुजुर्ग यानी की हमारे माता-पिता और घर के अन्य सदस्य हमारे पडोशी और रिश्तेदार हमारे दोस्त और जानकार भी है जो हमेशा से ही बेटो को तरजीह देते रहे हैं और बेटियों को हेय दृष्टि से देखते रहे हैं, आपने देखा ही होगा की अगर किसी के घर में बेटी पैदा हो तो उसके घर में मातम का सा माहोल हो जाता है चाहे वो परिवार कितना ही संपन्न और आधुनिक क्यों न हो, अगर बेटी प्रथम संतान हो तो लोग कहने लगते हैं कोई बात नहीं अगली संतान बेटा ही होगी जैसे बेटी पैदा करके कोई विश्व युद्ध हार गए हो और जब लड़का होगा तब जा कर वो ये युद्ध जीतेंगे , फिर वो लोग दिलासा भी देते हैं ये कह कर " प्रथम संतान भी लगभग बेटा सामान ही है", यानी की अगर किसी के घर में बेटी हुई है तो बेटे के लिए दुसरे बच्चे की प्लानिंग में माँ-बाप लग जाए लेकिन अगर बेटा हुआ तो न तो कोई रिश्तेदार या फिर पडोशी ये कहता नज़र आएगा की कोई बात नहीं अगली संतान आपकी बेटी ही होगी और न माँ-बाप ही अपनी अगली संतान की प्लानिंग में कोई जल्दबाजी करेंगे और कई तो अब अगला बच्चा चाहेंगे भी नहीं क्योंकि अगर बेटी हो गयी तो जाने क्या हो जाएगा शायद समाज में उनका सर शर्म से झुक जाएगा या फिर वो कोई युद्ध हार जायंगे । पर इसके साथ अपनी इस हालत की ज़िम्मेदार कुछ हद तक लडकिय भी रही हैं क्यों की मैंने देखा है लड़की चाहे छोटे शहर की हो या फिर बड़े शहर की वो अपने साथ हो रहे अपने ही घर पर अपने लोगो द्वारा किये गए भेद भाव को चुपचाप सहती रहती है और उसका विरोध नहीं करती, मैंने देखा है की किसी किसी परिवार में बेटों का जन्दीन बड़े जोरदार तरीके से मनाया जाता है और बेटियों का तो याद भी नहीं रखते कारण अलग अलग बताते है पर सच तो ये है की वो लड़कियों को हेय द्रिस्थी से देखते है तभी ऐसा करते हैं और लडकिया भी चुपचाप सब सह लेती हैं और अपना मुह तक नहीं खोलती, बचपन से ही उसे ये कह कर चूल्हा चौक में आज भी झोंक दिया जाता है की उसे किसी और के घर जाना है इसकी ट्रेनिंग उसे यहाँ बचपन से दी जा रही है, जुबान बंद रख कर चुपचाप सब सहती रहे क्यों की ससुराल में भी सब सहना है, बस बचपन से ही उसे अपने अधिकारों की अपेक्षा बस सहना ही सिखाया जाता है और मर्दों से कम है वो और उनपे आश्रित है वो ये उसे सीखाय जाता है, इसके साथ ही लडकिया इसे अपना नसीब समझ कर सहती जाती हैं पर कभी कोई लड़की इसके विरोध में नहीं आती और इसके कारण शादी से पहले अपने मायेके में और शादी के बाद ससुसाल में शोषित होती रहती है इसके साथ ही समाज में भी उसका बलात्कार, छेड -छाड़ और अनेक तरीके से शोषण किया जाता है क्यों की बचपन से उसने बस ये ही सीखा है सहना और मर्द ने सीखा है करना की वो कुछ भी करे उसका क्या बिगड़ेगा, सच तो ये है की अगर आज की लड़कियों को समाज में इज्ज़त और मान सम्मान चाहिए तो खुद खड़े होना पड़ेगा और सबसे पहले अपने घर में बराबरी का हक़ मांगना होगा , अपने परिवार में अपने परिवार के अन्य मर्दों के सामान ही हर छेत्र में बराबरी का हक़ लेना होगा चाहे उसके लिए कितना ही विरोध सहना पड़े ,और इसके साथ ही उन्हें अपने घर वालों को कहना होगा की अगर लड़के कुछ भी करे तो उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा तो वो भी कुछ भी कर सकती है और माँ बाप अपनी बेटी के बारे में भी सोच बदले और बेटों के बारे में भी ताकि ये लिंग भेद जल्द ही समाप्त हो और महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध कुछ हद तक रुक सके। इसके शुरुआत घर से आज से और अभी से ही करनी होगी तभी महिलाए अपना खोया हुआ मान सम्मान वापस प्राप्त कर पयंगी अन्यथा उनका शोषण ऐसे ही जारी रहेगा।
धन्यवाद
अर्चु
मेरे आस पास सिर्फ तुम ही तो हो हे परमेश्वर बस तुम ही तुम हो।
मेरी भावना भी तुम हो, मेरी मनोकामना भी तुम हो, मेरा अतीत भी तुम हो,
मेरा आज भी तुम हो, मेरा कल भी तुम हो, मेरी सुबह भी तुम हो, मेरी शाम भी तुम हो, मेरा दिन भी तुम हो, मेरी रात भी तुम हो, मेरी हर बात भी तुम हो, मेरे ज़ज्बात भी तुम हो,मेरी सच्चाई भी तुम हो, मेरा सपना भी तुम हो, मेरी
कल्पना भी तुम हो, मेरी हकीकत भी तुम हो, मेरा दर्द भी तुम हो, मेरी ख़ुशी
भी तुम हो, मेरी आस भी तुम हो, मेरी प्यास भी तुम हो, मेरे अश्क भी तुम हो,
मेरी मुश्कान भी तुम हो, तनहा मेरी ज़िन्दगी की तन्हाई भी तुम हो, मेरी हर
बदनसीबी में साथ हमेशा भी तुम हो, मेरी जिंदगी की शुरुआत से ले कर आखिरी पल तक साथ भी तुम हो, रहे हमेशा साथ मेरे तुम, वक़्त और हालत में के थपेड़ों
में यु संभालते रहे तुम,
आज मेरी इस सूनी पड़ी अकेली तनहा दर्द भरी ज़िन्दगी में एक ख़ुशी का अहसास भी तुम हो, देखा है मैंने जब भी जिधर पाया है तुम्हे हर तरफ , आज जाते हुए अकेले इस दुनिया से मैंने किसी को नहीं बस तुम्हे ही करीब पाया है, हर तरफ जहाँ सूनापन और तनहाइयों को साया है वही मैंने तुम्हे आज भी अपने नज़दीक पाया है ,
क्यों की मेरी मोहब्बत भी तुम हो, मेरी चाहत भी तुम हो, मेरी पहचान भी तुम हो, मेरी जान भी तुम हो,मेरी भावना भी तुम हो, मेरी मनोकंमना भी प्रभु सिर्फ तुम ही तो हो, मेरे आस पास सिर्फ तुम ही तो हो हे परमेश्वर बस तुम ही तुम हो।
i love you very much dear Jesus...
आज मेरी इस सूनी पड़ी अकेली तनहा दर्द भरी ज़िन्दगी में एक ख़ुशी का अहसास भी तुम हो, देखा है मैंने जब भी जिधर पाया है तुम्हे हर तरफ , आज जाते हुए अकेले इस दुनिया से मैंने किसी को नहीं बस तुम्हे ही करीब पाया है, हर तरफ जहाँ सूनापन और तनहाइयों को साया है वही मैंने तुम्हे आज भी अपने नज़दीक पाया है ,
क्यों की मेरी मोहब्बत भी तुम हो, मेरी चाहत भी तुम हो, मेरी पहचान भी तुम हो, मेरी जान भी तुम हो,मेरी भावना भी तुम हो, मेरी मनोकंमना भी प्रभु सिर्फ तुम ही तो हो, मेरे आस पास सिर्फ तुम ही तो हो हे परमेश्वर बस तुम ही तुम हो।
i love you very much dear Jesus...
Saturday, 4 May 2013
Wednesday, 1 May 2013
ईश्वर वाणी-37, Ishwar Vaani-37**जो मनुष्य पूजा-पाठ के नाम पर मुझे बलि देते हैं मैं उनकी बलि स्वीकार नहीं करता**
प्रभु कहते हैं जो मनुष्य पूजा-पाठ के नाम पर मुझे बलि देते हैं मैं उनकी बलि स्वीकार नहीं करता, ऐसे लोग मेरा नाम ले कर केवल अपने जीभ के स्वाद हेतु ऐसा घ्रणित कार्य करते हैं, इश्वर कहते हैं ऐसे मनुष्यों की चाहिए की मेरे नाम की अपेक्षा किसी कसाई के पास जा कर अपनी भूख शांत करने हेतु मासाहार को खा कर अपने स्वाद को पाये।
प्रभु कहते हैं मैं केवल उन्ही से प्रसन्न होता हूँ जो मेरे बताये गए मार्ग पर चल कर उनका अनुसरण करते हैं, केवल वही मेरे प्रिये होते हैं जो मेरे वचनों का पालन करते हैं, किन्तु जो मनुष्य मुझे पसंन करने के नाम पर किसी निर्दोष की बलि देता है मैं उससे प्रसन्न होने की अपेक्षा क्र्धित होता हूँ क्यों को वो मेरे नाम पर एक निर्दोष की हत्या कर रहे होते हैं जबकि जीवन लेना और देना ये दोनों प्रक्रिया केवल मेरे ही अधिकार शेत्र में है, प्रभु कहते हैं मुष्य को केवल वो ही बस्तुये अपने भोजन में ग्रहण करनी चाहिए अवं मुहे अर्पित करनी चाहिए जिन्हें मैंने सब के लिए खुद उचित ठेराया है, उन समस्त खाने लायक वस्तुओं को मेरा प्रसाद मान कर मनुष्य को केवल वो ही ग्रहण करना चाहिए और अगर मुझे अर्पित करना है तो वो ही मुझे केवल अर्पित करना चाहिये…
प्रभु कहते हैं हमे अपने जीवन में किसी भी प्रकार की चिंता न रख कर बस प्रभु का ध्यान करते हुए अपने नित्य कर्म करते रहना चाहिए अवं अपने कर्मो के फल की चिंता उनपे छोड़ देनी चाहिए, ऐसा करने से निश्चित ही मनुष्य का कल्याण होगा ।
ईश्वर वाणी
Subscribe to:
Posts (Atom)