एक बार की बात है जीसस अपने सभी बारह शिष्यों के साथ अपने किसी अनुयायी
के घर गए, उस अनुयाई एवं उस गाँव के प्रत्येक व्यक्ति ने जल से उनके चरण छू
कर आशीर्वाद प्राप्त किया, इसके बाद जिस अनुयायी के घर वो गए थे उसने
उन्हें भेजन करने के लिए आमंत्रित किया, भोजन करने के उपरान्त वो अपने
समस्त शिष्यों के साथ उस अनुयाई के घर बैठ कर उपदेश दे थे की उनके पीछे एक
स्त्री आई सुगन्धित पुष्पों से बना इत्र भरा एक कटोरा जीसस के सर पर दाल
दिया, ये देख कर उनके एक शिष्य ने उस स्त्री को डांटा और कहा की ये तूने
क्या किया, इतना महंगा सुगन्धित पुष्पों के इत्र से भरा कटोरा तूने प्रभु
के सर पर क्यों डाल दिया, क्या तू नहीं जानती प्रभु इससे प्रसन्न नहीं
होते किन्तु यदि तू इसे बेच कर जो धन कमाती और उस धन को गरीब और जरूरतमंद
लोगों को बांटती तो प्रभु तुझसे अवश्य प्रसन्न होते, ये बात सुन कर वो
स्त्री डर गयी किन्तु अपने शिष्य को शांत करते हुए जीसस ने कहा इस स्त्री
ने सबसे पहले मेरे शरीर पर इत्र मला है, मेरे जाने के बाद मेरे शरीर पर ऐसे
ही सुगन्धित पुष्पों से बने इत्र को मला जाएगा, उनकी बात उनके शिष्यों एवं
अनुयायियों को समझ नहीं आई किन्तु फिर उन्होंने कहा की वो सिर्फ अपने
मानने वालों एवं उनके पथ का अनुसरण करने वालों की श्रध्हा देखते हैं इस
स्त्री की जो असीम श्रध्हा थी मुझ पर इस इत्र का कटोरा डालते वक्त मैं उसकी
उस भावना को सम्मान करता हूँ, और जो भी मेरा अनुयायाई मेरा मानने वाला
सच्चे ह्रदय से मुझे कुछ अर्पण करेगा मैं उसे पूर्ण श्रद्धा के साथ सहर्ष
स्वीकार करूँगा....
इस प्रकार प्रभु यीशु
ने हमे ये सीख दी की ईश्वर बाहरी आडम्बरों से नहीं अपितु अपने भक्तों की
सच्ची श्रद्धा और प्रेम भावना से प्रसन्न होते हैं, उनकी दृष्टि में कोई भी
और किसी भी प्रकार का भेद भाव नहीं होता है।
आमीन