Monday, 30 December 2019

मेरे कलम से मेरे चंद अल्फ़ाज़

 1-"कितना गुरुर था खुद पर की कितने अपने हैं लोग यहाँ
लेकिन हालातो ने बता दिया कितनी गलतफहमी में थे हम"

2-"अब तो इन रास्तो पर डर लगता है
देख दुनियादारी मेरा तो दम घुटता है"

3-"बहुत भरोसा था तुझपे ऐ ज़िंदगी
पर आखिर तू भी दगा दे ही गयी

4-'फिर ये हसीं सर्द रात आयी
फिर मुझे तेरी याद आयी
तुमने न देखा कभी मुड़कर
मुझे तेरी हर बात याद आयी

5-"दिल ने बहुत चाहा कि रोक लू तुम्हें
दिल ने बहुत चाहा अपना बना लू तुम्हें
पर तुम्हें परवाह कहाँ मेरे ज़ज़्बातों की
दिल ने बहुत चाहा धड़कन में बसा लू तुम्हे"❤❤

Sunday, 29 December 2019

ज़िंदगी की मंज़िल-कविता

महलों वाला भी आखिर एक दिन वही (शमशान/कब्रिस्तान) जाता है

सड़क पर रहने वाला बेबस बिखारी भी आखिर एक दिन वही जाता है

रास्ते भले अलग को तेरे ऐ इंसान पर मंज़िल तो आखिर है बस वही

फिर किस बात का गुरुर तुझे और आखिर किस बात पर इतराता है


एक दिन तेरा ये शरीर ही तुझसे  आखिर बेवफाई कर जाता है

ज़िन्दगी भर दौड़ा जिसके लिए आखिर अंत मे क्या तुझे मिल पाता है

ज़िन्दगी थी तो दौड़ता रहा बस दुनिया के पीछे इसे ही मन्ज़िल जानकर

देख क्या समझी तूने मन्ज़िल अपनी पर वक्त किस ओर तुझे ले आता है

ज़िंदगी मुझे ठुकराती रही

वक़्त रोता रहा और ज़िंदगी मुझे ठुकराती रही

ये ज़माना हस्ता रहा 'मीठी' अश्क छिपाती रही


पी कर ग़मो के आँसू 'खुशी' का अहसास जताया

दर्द कितना है इस दिल मे न ये कभी जताती रही


अकेले में बैठ ग़मो से अब दोस्ती सी कर ली मैंने

खुदगर्ज़ इन महफ़िलो से दूर अब मै होती रही


कई मुखोटे पहने मिलते हैं मुझे लोग हर जगह

बस महफ़िल में एक असल चेहरा मैं खोजती रही


कितने हैं चरित्र इंसां के इस जहाँ में ऐ 'मीठी'

'खुशी' तो बस उस इक सच्चरित्र को खोजती रही


वक्त गुज़रता गया और सांसे भी कम होने लगी

दिल थमता गया और धड़कन मुझसे पूछती रही


वक़्त रोता रहा और ज़िंदगी मुझे ठुकराती रही

ये ज़माना हस्ता रहा 'मीठी' अश्क छिपाती रही
😡😡😡😡😡😡😡😡

मेरे चंद अल्फ़ाज़

1-"न अब कोई घर न  मकान  ढूंढते हैं
न जीने का अब कोई समान ढूंढते हैं
कहाँ दफन करू तेरी इन यादों को मैं
बस अब वो जगह और स्थान ढूंढते हैं"

2-"थाम कर हाथ फिर सबने छुड़ाया है
अपना बना फिर गैर मुझे बताया है
हम तो गैरो को अपना बना लेते है
यहाँ अपनो ने ही गैर मुझे ठहराया है"
😡😡😡😡😡😡😡😡😡😡😡😡😡😡😡

3-"गेरो की क्या शिकवा करू मुझे तो अपनो छोड़ा है
दे कर ज़ख़्म हर मोड़ पर सभी ने मुझे तोड़ा है"

😡😡😡😡😡

मेरे दुश्मन को ठंड लग जाये-कविता

सर्दी का फ़िर ऐसा मुकाम आ जाये

ठंडी का फिर ऐसा तूफ़ान आ जाये

सर्दी में बहने लगे नाक मेरे दुश्मन की

ईश्वर करे उसे ऐसा ज़ुकाम आ जाये


छींक का समंदर ऐसे बह जाए

हर कोई उससे अब दूर हो जाये

खुद को बचाये लोग उससे ऐसे

सर्दी में उसको रजाई न मिल पाए


😡😡😡😡😡😡

Saturday, 28 December 2019

चंद अल्फ़ाज़

१-"इस कदर खौफज़दा हैं तुझसे ए ज़िन्दगी
की अब दिन के उजाले में भी डर लगता है'

२-"करीब आओ मुझे तुमसे कुछ कहना है
दूर अब इक पल भी तुमसे नही रहना है
गुज़ारू हर शाम तुम्हारी ही बाहों में अब
जुदाई का ये दर्द नही मुझे अब सहना है"

३-"कितना खूबसूरत है ये तुम्हारा अहसास
कितना खूबसूरत है बस  तुम्हारा साथ
नही जिया जाता अब एक पल भी बिना तेरे
सूनी गुज़रती है बिन तुम्हारे अब मेरी हर रात"

Wednesday, 25 December 2019

मेरी कलम से-क्रिसमस


मित्रों आज क्रिसमस का बड़ा ही शुभ दिन है, दुनिया भर में करोड़ो लोग आज इस दिन को मना रहे हैं, काफी लोग ऐसे भी है जो ईसाई नही है लेकिन फिर भी इस दिन को बड़ी खुशी के साथ मानते हैं।


  मैंने अक्सर चर्च में ईसाइयो से ज्यादा हिन्दू और सिख लोगो को जाते देखा है, यहाँ तक कि कथा वाचने वाले 'राम' नाम का चोगा ओढे हुए और खुद को कट्टर हिन्दू बोलने वाले पंडितो को भी क्रिसमस/ईस्टर वाले दिन चर्च में प्रभु येशु के सामने नतमस्तक होते देखा है।


 लेकिन मेरे आज के इस लेख का विषय ये नही की कौंन धर्म का व्यक्ति कहाँ जाता है और किसे पूजता है क्योंकि ये सब व्यक्ति की अपनी श्रद्धा और आस्था और अधिकार है और हम किसी को अपनी विचारधारा के अनुसार चलने के लिए बाध्य नही कर सकते।


 लेकिन आज बात है इस खूबसूरत त्योहार की जिसे पूरी दुनिया मना रही है, जो जाती, धर्म, भाषा, सम्प्रदाय, क्षेत्र, वेश-भूषा आदि से परे बस एक काम कर रहा है वो है खुशी बाटने का।


 मित्रों आज के इस व्यस्त जीवन मे कितने लोग हैं जो अपने परिवार, मित्र, रिश्तेदार और जानने वालों को कितना वक्त देते हैं, आज का समय ऐसा है कि हमे अपने पड़ोस वाले का पता नही होता कि कौन रहने आया है, किसके घर मे कौन पैदा हुआ और कौन मर गया, हमारे रिश्तेदारो के बच्चे कब पैदा हो कर जवान हुए और उनकी शादी हो कर वो खुद कब माता-पिता बन गए, हम सब ज़िन्दगी में आज इतने व्यस्त बस खुद में ऐसे हो चुके हैं कि किसी के पास अपने अतिरिक्त्त वक्त ही नही है।


 त्योहार तो एक बहाना होता है उन दूर हो चुके रिश्तों को कम से कम एक दिन तो याद करने का, इतने व्यस्त होने के बाद भी अगर हम थोड़ा समय इस त्योहार के बहाने अपने परिवार, मित्र और रिश्तेदारो के साथ बिताते हैं तो न सिर्फ इससे खुशी मिलती बल्कि रिश्ते गहरे होते हैं और इसके लिए ये जरूरी नही की त्योहार किस धर्म से ताल्लुक रखता है, त्योहार मतलब 'थोड़ा धीमें हो जाओ, जो पीछे बिछड़ चुके हैं उन्हें भी अपने पास आने दो, न इतनी दूर चले जाओ की कोई तुम्हारे पास न आ सके, एक अकेली तन्हा ज़िन्दगी में कुछ पल तो उनके साथ बिताओ जो सच मे सिर्फ तुम्हारे है भले ये बहाना त्योहार का हो या जन्मदिन का या फिर किसी और खुशी के मौके का, खुशी अपनो के साथ मनाने का कोई मौका मत छोड़ो, चलो साथ और खुशी का छोटा ही सही ये पल जीने दो'।


 यही मकसद होता है त्योहार का, साथ ही अगर बात की जाए टॉफी/गोली/चॉकलेट्स की, उपहारों की जो आज के दिन कहा जाता है बच्चों से की सांता आएंगे और ये देंगे, मित्रो आपने अपने बच्चों को तो सबकुछ दिया इसलिए आपमें से बहुत से लोग इसे बेवजह कहते होंगे लेकिन जरा उन अनाथ बच्चों के बारे में सोचे जो सपने में भी ये सब नही ले सकते, कम से कम आज के दिन उन अनाथ बेघर और लाचार बच्चों के सांता तो बन के देखिए क्या खुशी मिलेगी आपको, किसी के आँसू तो पोंछ कर कर देखिए जनाब सारी जाती/धर्म/सम्प्रदाय/भाषा/क्षेत्र इत्यादि में बॉटने वाली बातें बहुत ही छोटी लगने लगेंगी, और ऐसा सिर्फ क्रिसमस पर ही नही जब आपका मन हो करके देखे लेकिन अगर त्योहार पर करते है तो आप उन अनजान लोगों से एक रिश्ता जोड़ लेते हैं और वो है खुशी का, क्योंकि हर कोई चाहता है त्योहार अपनो के के साथ अपनेपन के अहसास के साथ मनाये और जब आप ऐसा करते हैं तो अनजान लोगों से इंसानियत का वो रिश्ता जोड़ लेते हैं जो हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जेन, बोध, पारसी, यहूदी आदि से बहुत बड़ा होता है।


 जब तक मेरी निजी जिंदगी में समस्याएं ज्यादा नही थी मैने अपना समय खासकर क्रिसमस और जन्मदिन जानवरो के कल्याण हेतु कार्य करने वाली संस्थाओं के साथ मनाया क्योंकि मुझे उन बेजुबानों की मदद करने में खुशी जो मिलती थी वो किसी भी धार्मिक जगह पर जाने से नही मिलती थी,  और रही बात खास दिन की तो हर रोज़ या महीने हम किसी के लिये तो कुछ नही कर सकते तो कम से कम साल में एक या दो बार ही सही किसी के लिए कुछ कर सके, और यही असल कारण है त्योहारों का और उन्हें मनाने का, इसलिए किसी की आलोचना से बेहतर है अपना किसी को बेहतर देना।


राधे राधे