गम छिपा सबसे झूठे ही मुस्कुराते है
बेदर्द दुनिया से अपने ज़ख़्म छिपाते है
हम खुश हैं इस महफ़िल में बहुत
अश्क़ छिपा सबको यही हम बताते हैं
अपना बना लोग यहाँ फिर रुलाते है
वफ़ा की बात कह दगा लोग कर जाते हैं
किसे अपना कहे 'मीठी-खुशी' यहाँ अब
मरहम बता चोट पर लोग तेजाब गिरा जाते हैं