Thursday 5 May 2016

इश्क की महफिल मैं

इश्क की महफिल मैं धोके हज़ार  है,
दूर तलक दिखने पर ये लगती गुलज़ार है,
अश्क और गमों से सजा है इसका हर कोना,
दर्द और आह से यहॉ भरे बज़ार है

Monday 2 May 2016

kavita

"Aa tujhe dilme basa lu main,
Aa tujhe seene se laga lu main,
Hai itni mohabbat mujhe tujhse,
Aa tujhe palko pe saja lu main,

Aa dhadkan tujhe bana lu main,
Aa sanso mein tujhe chhipa lu main,
Hai ye zindagi tujh bin kya meri
Aa tujhe ab apna bana lu main"

"आ तुझे दिलमें बसा लू मैं,
आ तुझे सीनेसे लगा लू मैं,
है इतनी मोहब्बत मझे तझसे,
आ तुझे पलकों पे सजा लू मै,

आ धडकन तुझे बना लू मैं,
आ सांसों मै तुझे छिपा लू मैं,
है जिन्दगी तुझ बिन क्या मेरी,
आ तुझे अब अपना बना लू मैं"

ईश्वर वाणी-१४३, रावण का ग्रहों को बन्दी बनाना

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों यध्पपि तुमने रावन द्वारा सभी ग्रह नकशत्रों को बन्दी बना के रखने की बात सुनी होगी, किंतु ये पूर्ण सत्य नही है, ऐसा संसार मैं मुमकिन ही नही है कि आकाश मैं तैरते ग्रहों को कोई धरती पर ला कर कैद कर सके, प्रथ्वी का व्यास ही नही है इतना तो,
यदि रावण मैं इतना ही साहस और शक्ति होती तो वो स्वर्ग एवं समस्त ईश्वरीय रूपों को अपना दास बना उन्हे कैद कर लेता,
किंतु इसके अतिरिक्त ये भी सत्य है रावण ने इन सभी ग्रहों को कैद किया था,
सत्य तो ये है रावण ने ग्रह नक्शत्रो को नही उनकी समस्त शक्तियो को अपनी विध्या से कैद कर लिया था जिसका उपयोग वो अपनी भलाई और अन्य प्राणियों को कष्ट पहुचाने मै करता था,
इसी कारण उन स्थानों पर ग्रहों की शक्ती का प्रभाव आज भी और अनेक वर्सों तक रहेगा जैसे त्रेता के समय मैं था''
ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों यध्पपि तुमने रावन द्वारा सभी ग्रह नकशत्रों को बन्दी बना के रखने की बात सुनी होगी, किंतु ये पूर्ण सत्य नही है, ऐसा संसार मैं मुमकिन ही नही है कि आकाश मैं तैरते ग्रहों को कोई धरती पर ला कर कैद कर सके, प्रथ्वी का व्यास ही नही है इतना तो,
यदि रावण मैं इतना ही साहस और शक्ति होती तो वो स्वर्ग एवं समस्त ईश्वरीय रूपों को अपना दास बना उन्हे कैद कर लेता,
किंतु इसके अतिरिक्त ये भी सत्य है रावण ने इन सभी ग्रहों को कैद किया था,
सत्य तो ये है रावण ने ग्रह नक्शत्रो को नही उनकी समस्त शक्तियो को अपनी विध्या से कैद कर लिया था जिसका उपयोग वो अपनी भलाई और अन्य प्राणियों को कष्ट पहुचाने मै करता था,
इसी कारण उन स्थानों पर ग्रहों की शक्ती का प्रभाव आज भी और अनेक वर्सों तक रहेगा जैसे त्रेता के समय मैं था''

Wednesday 27 April 2016

ईश्वर वाणी-१४२, ईश्वरीय लोक

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो तुमने हर किसी पवित्र ग्रंथ मैं स्वर्ग एंव अनेक ईश्वरीय लोक के विषय मैं सुना होगा, हर धर्म व सम्प्रदाय मैं स्वर्ग का वर्णन मिलता है,

किन्तु स्वर्ग गयी आत्मा को दोबारा जन्म मिलता है और ईश्वरीय लोक गयी आत्मा सदा के लिये मुक्त हो जाती है ऐसी मान्यता है, किन्तू वास्तव मै स्वर्ग और नर्क यही धरती पर ही है, पिछले जनम के अनूरूप इस जनम के मिलने वाले अन्नय सुख और उपलब्धियॉ ही स्वर्ग और मिलने वाले कश्ट और असफलतायें ही नर्क है,


किन्तु इसका अभिप्राय ये नही की ईश्वरीय लोक है ही नही, ईश्वरीय लोक है जहॉ अच्छे कर्म वाली आत्माये जाती है किन्तु ईश्वर का सानिध्य पा कर वो वापस नही आना चाहती किन्तु अपने अनन्य कर्म अनुसार जितने समय के लिये ईश्वरीय लोक मैं रहने का अवसर मिलता है उसके बाद पुन: उन्हे जन्म लेना होता है,


हे मनुष्यों ऐसा कदापि नही है की संसार मै मेरे जितने नाम उतने ही लोक है और न ही कोई अलग से स्वर्ग की व्यवस्था है, संसार मै जो आत्मायें शीघ्र ही अपने पुन्य कर्मो का फल पा लेती है वो फिर जन्म है, ऐसी आत्माओं के पाप व पुन्यों के आधार पर ही पुन: जीवन प्राप्त होता है,


किन्तु जिन आत्माऔं ने अपने पिछले अनेक जन्मों का प्रायश्चित कर इस जनम मैं एक भी ईस्वरीय व्यवस्था के विरूद्ध कार्य नही किया है केवल वे ही जनम मरण के बन्धन से मुक्ति पाते है,

किन्तु ऐसा कदापि नही है कि मुक्ति प्राप्त आत्मा फिर जनम नही लेती, नवयुग एंव ऩयी श्रश्टी के उत्थान के लिये उन्हे पुन: जनम मिलता है, जैसे देश/काल/परीस्तिथी के अनुसार मैने कितने ही जनम लिये और फिर इस भौतिक काया का त्याग किया, ऐसा ही नित प्रत्येक आत्मा करती है, याद रहे हर आत्मा समय समय पर जन्म अवस्य लेती है भले परम धाम प्राप्त ही क्यौ न हो, ऐसी आत्मायें श्रश्टी के नवनिर्मीण हेतु पन: जन्म ले धर्म और ईश्वरीय व्यवस्था का प्रसार करती है!!

हे मनुश्यों ये याद रखो समस्त श्रश्टी मैं केवल एक ही लोक है वही स्वर्ग एंव ईश्वरीय लोक है, जैसी बाकी तुम्हारी भावना व कर्म वैसा ही तुम्हें दर्शन प्राप्त होगा!!"




Sunday 24 April 2016

ईश्वर वाणी-१४१, सच्चा गुरू

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों यू तो तुम्हारे कोई न कोई आध्यात्मिक गुरु होंगे या किसी की बात से प्रभावित हो कर तुम उसे अपना गुरू बनाने पर विचार कर रहे होगे, यदि ऐसा है तो निम्न बातों का अवश्य ध्यान रखना एक सच्चा आध्यात्मिक गुरू कोई सच्चा संत, सन्यासी, महात्मा, साधू कभी भी किसी प्राणी अथवा मनुष्य मैं जाति, धर्म, समप्रदाय, भाषा, रंग, संस्क्रति, सभ्यता, राजा, रंक, कुल के आधार पर भेद भाव नही करता,

क्योंकि जो मेरीबनायी व्यवस्था का अनुसरण कर लेता है वो मानव निर्मित स्वीर्थ से परीपूर्ण व्यव्था पर नही चल कर ही परम ईश्वरीय सार्थक और सत्य ग्यान देगा, उस व्यक्ति को किसी भौतिक वस्तु का लोभ नही होगा और न इसकी तुमसे लालसा करेगा,

किन्तु ऐसे व्यक्ति सहज नही मिलते, तुम्हारी सच्ची तपस्या और प्राथना से ही तुम्हे उनका सानिध्य प्राप्त होता है अन्यथा गुरू के नाम पर पाखंडी मनुष्य हर पग तुम्हे मिलेंगे!!

मीठी-खुशी

"मिले दोखे खुशी तेरी ही जुदायी मैं,
छोड़ गया मीठी को इस तन्हाई मैं,

रोई दिन रात मीठी कर तुझे याद,
क्या मिला तुझे इस बेवफाई मैं,

खुशी तुझमे ही ढूडती है ये मीठी,
पर तू खुश है उसकी रुलाई मैं,

खुशीसे ज़िन्दगी लुटा दी तेरे लिये,
कसर न छोड़ी तूने किसी सताई मै,

यादों को सज़ोये है आजभी ये मीठी,
क्या मिला उसे इश्क की दुहाई मैं,

मोहब्बत मैं खाली हाथ यहॉ खुशी के,
पर अश्क भरे है मीठी की कलाई मैं,

करती है सवाल आज़ मीठी खुशी से,
कमी क्या लगी तुझे मेरी वफाई मैं,

जो तूने की बेवफाई मुझसे मेरे हमदम,
क्या करी कमी मैने तेरी हर भलाई मैं,

जो कर दिया तूने आज़ मुझे यू तन्हा,
मिली जो तुझे जिन्दगी जग हसाई मैं,


मिले दोखे खुशी तेरी ही जुदायी मैं,
छोड़ गया मीठी को इस तन्हाई मैं-२"

Saturday 23 April 2016

ईश्वर वाणी-१४०, ईश्वर की देह और अंग

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों मैं समस्त प्राणियों की देह हूं और तुम सब इस देह के अंग हो,

हे मनुष्यों जैसे की तुम्हे पहले ही मैं बता चुका हूं की संसार मैं मैने कुछ भी अनावस्यक नही बनाया है,

हे मानव जाती ज़रा सोच तेरे शरीर पर केवल ऑख ही ऑख हो तो तू सुनेगा कैसे, या तेरे शरीर पर केवल कान ही कान हो तो तू देखेगा चलेगा अन्य कर्म कैसे करेगा, जैसे तेरे शरीर के सभी अंग आवश्यक हैं वैसे ही मेरे लिये तुम सब आवश्यक हो,

ये निम्न मत जिनके आधार पर तुम अक्सर लड़ते रहते हो, एक दूसरे को नीचा दिखाते हो ये सब मेरे ही शरीर का ही तो एक अंग है,

है मानवो तुम जिस हाथ से भोजन करते हो उसी से नित क्रिया करते हो फिर भी उसे अशुद्ध नही समझते, अब तुम कहोगे नित स्नान एंव नित हाथ साफ करते है, ऐसे मैं हाथ अशुद्ध कैसे हुये?

हे मानवों तुम जिस प्रकार शरीर का अंग धो कर साफ करते हो तो तुम्हे क्या लगता है मै अपने अंग साफ़ नही करता,

तुम लोंगों के जीवन मैं आने वाला कष्ट और दुख ही वो पल है जब मैं अपने गन्दे दूषित अंगो की सफाई करता हूँ,

हे मानवों तुम्हारा जाति-धर्म-समप्रदाय-भाषा-सभ्यता-संस्क्रति के लिये लड़ना मुझे दुख पहुँचाता है,

जैसे अगर कोई तुम्हारी किसी एक ऑख पर वार करे कष्ट तो पूरे शरीर को होगा, वैसे ही यदि तुम किसी निरीह जीव अथवा मनुष्य को ठेस पहुँचाते हो वो चोट मुझे लगती है"!!