Saturday 11 February 2017

कविता


वो ठुकराते रहे हमें हम चोट खाते रहे
जख्मो पर वो मेरे सदा मुस्कुराते रहे,
खता उनकी भी नही खता हमारी थी
उनकी बेरूखी पर भी प्यार लूटाते रहे

उमर भर सदा यूँ वो हमे रुलाते रहे
दर्द दे कर हमेशा मुझे वो सताते रहे
बनी रहे सदा लबो पे मुस्कान उनकी
बेवफाई पर भी उनकी उन्हें चाहते रहे

उन्हें करीब लाने की हम हसरत करते रहे
प्यार भी उन पर यूँ बेशुमार हम लुटाते रहे
 तोड़ कर दिल मेरा खुश बहुत होते थे वो
 उनकी खुशी के लिये हर दर्द छिपाते रहे

गीत

गीत
ज़िन्दगी में कभी मैंने ऐतबार किया था
दिल का सौदा मैंने भी एक बार किया था
ख़ुशी की चाहत दिल में कभी थी मेरे
किसी की मीठी बातो पर इकरार किया था

मुस्कराहट थी लबो पर साथ उसका पा कर
उस बेवफा से इतना जो मैंने प्यार किया था

दर्द दे कर ख़ुशी से हस्ता रहा वो मुझ पर
मीठी ने तो बस इश्क़ का इज़हार किया था

बस एक मोहब्बत भरी नज़रे चाही थी उनसे
आखिर इज़हारे मोहब्बत पहली बार किया था

जीवन में ऐसा बस एक बार किया था
बस मैंने तो सिर्फ तुमसे ही प्यार किया था
ज़िन्दगी में कभी मैंने ऐतबार किया था
दिल का सौदा मैंने भी एक बार किया था-२"

Friday 10 February 2017

ईश्वर वाणी-१९५, आत्माओ का सागर

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों मैं ईश्वर सभी आत्माओं में परम होने के कारण परमात्माँ हूँ, मैं सभी आत्माओं का सागर हूँ, जैसे विशाल सागर से जल भाप बन कर बदल में चला जाता है फिर बूँद बन कर फिर सागर में पुनः गिरता जाता है, वैसे ही सभी आत्माये मुझ से ही निकल कर पृथ्वी पर भौतिक देह अपने कर्मो के अनुसार प्राप्त करती है, उसके बाद निश्चित समय के बाद आत्माओ के महासागर अर्थात मुझमे पुनः लीन हो जाती है।

हे मनुष्यों मैं ही इश्वरिये लोक हूँ, मैं ही स्वर्ग हूँ, मैं ही नरक हु, जैसे आत्माओ के कर्म होते है वैसे ही उसे यहाँ स्थान मिलता है, निश्चित अवधि के बाद पुनः जन्म मिलता है, इस प्रकार ये चक्र चलता रहता है, न सृष्टि कभी सदा के लिये ख़त्म होती है न आत्मा आत्मा एक मोक्ष प्राप्त कर जन्म लेना बंद करती है।


चारो युगों के बाद सृष्टि अंधकार में डूब जाती है, शून्य से निकली सृष्टि पुनः शून्य में समां जाती है, सभी आत्माये मुझमे विलीन हो जाती हैं किन्तु फिर से सृष्टि की उत्पत्ति होती है पुनः आत्माये जन्म लेती हैं।

हे मनुष्यों इसलिये ये न समझो तुम पहली बार इस धरती पर आये हो, तुम तो जाने कितनी बार आये हो और आओगे बस ये भोतिक रूप बदलता रहेगा किन्तु तुम तो सदा वही रहोगे जैसे अब तक कितनी बार तुम्हारा भौतिक रूप बदला किन्तु तुम तो वही रहे।
मुझ विशाल आत्मा के सागर से निकल कर पुनः मुझमे तुम मिले फिर निकले फिर मिले सदा यही होगा, सादेव् तुम मेरी इस ज
क्रीड़ा के पात्र रहोगे।"

कल्याण हो


ईश्वर वाणी-१९४, पृत्वी और सूर्या

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो तुम्हे मैं पहले ही
बता चूका हूँ
तुम्हारी देह अर्थात भौतिक रूप के आदि माता पिता सूर्या
देव और पृथ्वी
है।
यद्धपि अनेक शाश्त्रो में सूर्या देव की अनेक
पत्नी और संतान बतलायी गयी
हैं किन्तु भौतिक रूप में सूर्य देव की पत्नी
पृथ्वी का रूप धारण कर सभी
आत्माओ को भौतिक शरीर प्रदान करती है और
सूर्या देव के आवश्यक ताप से ही
जीवन पनपता है।
हे मनुष्यों पृथ्वी का आंतरिक ताप इसलिए सूर्या के ताप
जितना ही गर्म है,
किन्तु प्राणी जाती के जीवन के लिये
पृथ्वी को अपने पति जितने ताप को
अपनी गहराइयो में ले जाना पड़ा ताकि यहाँ आत्माये भौतिक
रूप प्राप्त कर
सके।
माता को शांत व् शीतल करने के उद्देश्य से ही
यमुना व् तपती ने नदी का
रूप धारण किया और पृथ्वी पर बहने लगी,
इसी प्रकार माता पृथ्वी को शांत व्
शीतल रखने के लिये ही पहाड़ो से लेकर विशाल
सागर तक जल किसी न किसी रूप
में विराजित है ताकि धरती शांत व् शीतल
बनी रहे और जीवन यहाँ उत्पन्न
होता रहे।
हे मनुष्यों जिस सूर्या के ताप के साये में तुम सब जिव पलते हो ये तो
उसके वास्तविक ताप ताप का मात्र १६% ही है, यदि
वास्तविक ताप पर वो आ जाए
तो पृथ्वी से जीवन ही नष्ट हो
जाये।
सूर्या देव की पत्नी की प्राथना और
आग्रह पर ही उन्होंने अपने ताप को
पृत्वी पर कम किया और जीवन उतपन्न करने
व् पालन पोषण के लिए मात्र १६% ही
ताप धरती पर भेजने का वादा किया, इस प्रकार
धरती सभी भौतिक देह धारियों
की माता व् सूर्य देव पिता हुये।
कल्याण हो

Tuesday 7 February 2017

ईश्वर वाणी-१९३, पृथ्वी पर जन्म

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों यद्यपि तुमने यह तो अवश्य ही सुना होगा की पृथ्वी की आंतरिक सतह बेहद गर्म है, उस पर जीवन तो क्या कोई भी वस्तु गिर जाये या संपर्क में आ जाये तो तुरंत भाप बन कर उड़ जायेगी।

हे मनुष्यों ये एक परम सत्य है की समस्त ब्रह्माण्ड की रचना का करक एक विशाल अंडा ही है, जिसमे से सभी ग्रहो के साथ पृथ्वी का भी अविष्कार हुआ, सभी ग्रहो में से केवल एक इकलोती स्त्री तत्व पृथ्वी ही है, इसलिये सभी जीवो, पेड़-पौधों व् जीवन की जननी यही है, ईश्वर अर्थात मैंने भी धरती पर लीला रचने हेतु समय समय पर अपने ही एक अंश को भेजा।

हे मनुष्यों किन्तु धरती को इस योग्य बनाने के लिये उसे शांत करना अति आवश्यक था जो मैंने किया, सर्व प्रथम धधकते अंगारो सी धरती को शांत करने के लिये आकाशीय दिव्य सागर  से जल वरषा की, इससे जब वह शांत व् शीतल हुई तब उसकी ऊँची ऊँची पथरीली चोटी जो अति गर्म होने के कारन व् जल वरषा से शीतल हो कर जमने के कारन बनी थी वहा बर्फअर्थात जमा हुआ जल एकत्रित किया, एवं सागर के रूप में एक विशाल गड्ढे में (जो पृथ्वी की गर्मी के कारन अनेक विस्फोटों से बना था) अथाह जल एकत्रित किया जो पर्वतो से लगातार नदियो  (पर्वतों  से पिघल कर बहने वाला जल)से हो कर यहाँ जमा होता रहता है और सृष्टि के अंत तक रहेगा इसके साथ ही भूमि के अंदर भी हर स्थान पर निश्चित गहराई पर भी जल उपलब्ध है जिसे तुम पीते भी हो। ये सब इसलिये है ताकि धरती का अंदरुनी ताप ऊपर न आ सके, और धरती जीवन के लिये एक अनुकूल स्थान बनी रहे, जीवन की सभी प्राथमिक व प्राकृतिक  वस्तुये वह उपलब्ध रहे।

हे मनुष्यों कभी तुमने विचार किया है आखिर एक विशाल हिस्से में ही पृथ्वी के सागर क्यों है, आखिर भूमि क्षेत्र इतना कम क्यों है, ऐसा इसलिए ताकि धरती के अंदर का ताप बहार ना आ सके, धरती शीतल व् शांत रहे, ताकि यहाँ जीवन रह सके, इसलिये ऊँची ऊँची पर्वत श्रंखलाओ पर भी बर्फ की मोटी चादर डाली ताकि पहाड़ो के अंदरुनी भाग से गर्मी बाहर न आ सके और जीवन न नष्ट हो सके।

हे मनुष्यों तुमने अक्सर ज्वाला मुखी फूटने की बात सुनी होगी, ये धरती का वही ताप का एक छोटा सा हिस्सा है, सोचो अगर विशाल सागर और बर्फ से इसे मैंने शांत न किया होता तो क्या धरती पर जीवन होता।


कल्याण हो

Monday 6 February 2017

कविता

"यही बस एक इतनी सी चाहत थी मेरी
सबके साथ चलने की हसरत थी मेरी

इन फिज़ाओ में खुल कर मुस्कुरा सकूँ
बस एक इतनी सी ही तो ख्वाइश थी मेरी

क्या बता था ये ज़माने को ना मंज़ूर होगा
हर तरफ बस धोखों का ही एक मंज़र होगा

हमराही कहने वाले ही राह भुलाते है यहाँ
क्या पता था हमसफ़र भी यहाँ बेमान होगा

बस एक अपनी पहचान की ही चाहत थी
ज़िन्दगी में बस एक मुकाम की चाहत थी

बन कर मिशाल राह दिखा सकूँ सबको में
बस दिलमे एक यही तो हसरत थी मेरी

यही बस एक इतनी सी चाहत थी मेरी
सबके साथ चलने की हसरत थी मेरी-२"

गीत-शीशा समझ कर

"शीशा समझ कर दिल मेरा वो तोड़ गया
गम और आँसू ही मुझे वो आज दे गया

वफ़ा की सजा दी मुझे उस हर्जाइ ने ऐसे
कितना आज यूँ तनहा मुझे वो छोड़ गया

रुलाया सताया हमेशा तूने उमर भर मुझे 
तेरी बेवफाई की बता क्या सजा  दू तुझे

मोहब्बत की झूठी दुनिया दिखाई तुने मुझे
मझधार में इश्क के क्यू यूँ छोड़ गया तू मुझे

तुझे पा कर मैंने तो पाया था अपने रब को
तुझे दिल में बसा कर पाया था सभी कुछ तो

तू ही तो रब था मेरा तू ही तो था खुदा
दिल मेरा तोड़ कर आखिर तुझे क्या मिला

तू आज खुश है उस गैर को अपना बना कर
भूल चूका मेरी मोहब्बत एक सपना बता कर

आखिर ऐसे क्यों मुझसे तू मुँह मोड़ गया
शीशा समझ कर दिल मेरा वो तोड़ गया

ज़माने में एक तमाशा मेरी आशिकी का बना
जज़्बातों से खेल अकेला मुझे वो  छोड़ गया

शीशा समझ कर दिल मेरा वो तोड़ गया
गम और आँसू ही मुझे वो आज दे गया-2"