Tuesday 7 February 2017

ईश्वर वाणी-१९३, पृथ्वी पर जन्म

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों यद्यपि तुमने यह तो अवश्य ही सुना होगा की पृथ्वी की आंतरिक सतह बेहद गर्म है, उस पर जीवन तो क्या कोई भी वस्तु गिर जाये या संपर्क में आ जाये तो तुरंत भाप बन कर उड़ जायेगी।

हे मनुष्यों ये एक परम सत्य है की समस्त ब्रह्माण्ड की रचना का करक एक विशाल अंडा ही है, जिसमे से सभी ग्रहो के साथ पृथ्वी का भी अविष्कार हुआ, सभी ग्रहो में से केवल एक इकलोती स्त्री तत्व पृथ्वी ही है, इसलिये सभी जीवो, पेड़-पौधों व् जीवन की जननी यही है, ईश्वर अर्थात मैंने भी धरती पर लीला रचने हेतु समय समय पर अपने ही एक अंश को भेजा।

हे मनुष्यों किन्तु धरती को इस योग्य बनाने के लिये उसे शांत करना अति आवश्यक था जो मैंने किया, सर्व प्रथम धधकते अंगारो सी धरती को शांत करने के लिये आकाशीय दिव्य सागर  से जल वरषा की, इससे जब वह शांत व् शीतल हुई तब उसकी ऊँची ऊँची पथरीली चोटी जो अति गर्म होने के कारन व् जल वरषा से शीतल हो कर जमने के कारन बनी थी वहा बर्फअर्थात जमा हुआ जल एकत्रित किया, एवं सागर के रूप में एक विशाल गड्ढे में (जो पृथ्वी की गर्मी के कारन अनेक विस्फोटों से बना था) अथाह जल एकत्रित किया जो पर्वतो से लगातार नदियो  (पर्वतों  से पिघल कर बहने वाला जल)से हो कर यहाँ जमा होता रहता है और सृष्टि के अंत तक रहेगा इसके साथ ही भूमि के अंदर भी हर स्थान पर निश्चित गहराई पर भी जल उपलब्ध है जिसे तुम पीते भी हो। ये सब इसलिये है ताकि धरती का अंदरुनी ताप ऊपर न आ सके, और धरती जीवन के लिये एक अनुकूल स्थान बनी रहे, जीवन की सभी प्राथमिक व प्राकृतिक  वस्तुये वह उपलब्ध रहे।

हे मनुष्यों कभी तुमने विचार किया है आखिर एक विशाल हिस्से में ही पृथ्वी के सागर क्यों है, आखिर भूमि क्षेत्र इतना कम क्यों है, ऐसा इसलिए ताकि धरती के अंदर का ताप बहार ना आ सके, धरती शीतल व् शांत रहे, ताकि यहाँ जीवन रह सके, इसलिये ऊँची ऊँची पर्वत श्रंखलाओ पर भी बर्फ की मोटी चादर डाली ताकि पहाड़ो के अंदरुनी भाग से गर्मी बाहर न आ सके और जीवन न नष्ट हो सके।

हे मनुष्यों तुमने अक्सर ज्वाला मुखी फूटने की बात सुनी होगी, ये धरती का वही ताप का एक छोटा सा हिस्सा है, सोचो अगर विशाल सागर और बर्फ से इसे मैंने शांत न किया होता तो क्या धरती पर जीवन होता।


कल्याण हो

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