Saturday 25 February 2017

ईश्वर वाणी-200, जीवों के पूर्वज

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुमने युगों के विषय में सुना है, मैंने भी तुम्हे सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग की जानकारी दी है, किन्तु आज तुम्हे सतयुग से पूर्व और सतयुग ही सभी काल अथवा युगों में प्रथम क्यों माना गया है इसके विषय में बताता हूँ।

हे मनुष्यों यद्धपि तुमने मानव जाती के विषय में सुना है की संसार में मानव की उत्पत्ति प्रथम स्त्री और पुरुष से हुई, किन्तु ये तथ्य पूर्ण सत्य नही है, सतयुग से कई करोडो वर्ष पूर्व मैंने ही संसार में सबसे पहले सूक्ष्म व् अति सूक्ष्म पौधों को धरती पर उगाया, जब संसार में भूमि पर सब स्थान पर ये उग आये और बड़े हो कर कुछ ने जंगल का रूप ले लिया कुछ छोटे पोधे तो कुछ घास बन गए, किन्तु ये सब अचानक नही हुआ, इस प्रक्रिया में कई हज़ारो वर्ष लगे, सबसे पहले एक नन्हे से अंकुर को धरती पर रोपा, उसके जीवन की रक्षा की तत्पश्चात वो बड़ा कुछ हुआ, उसके द्वारा अन्य पोधो के अंकुर फूटे, धीरे धीरे और निरंतर जलवायु परिवर्तन के कारन उन्ही में ही कोई घास, कोई छोटे वृक्ष तो कोई विशाल पेड़ बन जंगल का रूप धारण कर गए, उन्ही में से कइयों में उपर्युक्त खाने योग्य फल उगने लगे और उनके बीज से उनके जैसे ही पेड़ जन्म लेने लगे, किन्तु इस प्रक्रिया में करोडो वर्ष लगे।

हे मनुष्यों जब वनों की प्रक्रिया संसार में चल रही थी तभी मैंने अति सूक्ष्म जीवो को धरती पर भेजा, चूँकि इनके जीवित रहने के लिये भोजन आवश्यक था इसलिये सबसे पहले मैंने पेड़-पौधों  और फल की व्यवस्था की, अति सूक्ष्म जीव ने प्रकति के साथ मिल कर अपनी संख्या बढ़ानी शुरू की, समय के साथ इन्होंने अपने आकर बदले, और जलवायु परिवर्तन के अनुसार कोई बड़ा कोई छोटा को अति सूक्ष्म जिव बना, इस प्रक्रिया में भी कई करोडो वर्ष लगे।

इन्ही जीवो से आज जो जीव तुम देखते हो एवम् तुम स्वम भी इन्ही जीवो की उत्पत्ति हो, जलवायु परिवर्तन के कारण इन जीवो में बदलाव आये जो सतयुग के आदि काल में काफी हद तक बदल चुके थे, सतयुग के बाद के काल  के बाद व् हर युग के बाद जीवों में अनेक परिवर्तन आये।

हे मनुष्यों यद्दपि सतयुग से तुमने सृष्टि के विषय में सुना है किन्तु आज तुम्हे मैंने बताया इससे पूर्व ही जीवन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी, किन्तु अब तुम सोचोगे की यदि ऐसा है तो आखिर सतयुग से ही जीवन के विषय में क्यों बताया गया है।

हे मनुष्यों सतयुग के समय से समाज व व्यवस्था प्रक्रिया प्रारम्भ होनी शुरू हुई, जो जीव जैसा दीखता व जैसी जिसकी बोली हुई उन्होंने अपना एक समाज बना लिया, इस प्रकार जीवो में समाज की प्रक्रिया शुरू किंतु मानव को समाज व्यवस्था स्थापित करने में मध्य सतयुग का समय लगा जबकि अन्य जीव आदि सत्युग में ही इस व्यवस्था को अपना चुके थे, इसके साथ मानव जाती जिसमे अन्य जीवो से अधिक बुद्धि थी ऐसी व्यवस्था बनाई जिसमे न तो मनुष्य के द्वारा मनुष्य का शोषण हो और न ही किसी और जीव का अहित हो, तभी उस युग में मानव व अन्य जीव एकता व् प्रेमपूर्वक रहा करते थे।

हे मनुष्यों सत्युग के मानव ये जानते थे की उन सभी की उत्पत्ति के करक एक ही है, उनके पूर्वज एक ही है, तभी उस युग में ऐसी व्यवस्था थी जब मानव व अन्य जीव एकता व् प्रेम से रहते थे, किन्तु युग परिवर्तन और जलवायु परिवर्तन के कारन मानव इस सत्य को भूल गया और खुद को अलग वंश का समझने लगा, किन्तु यदि यह सत्य होता तो तुम्हारे वैज्ञानिक क्यों ये कहते की मानव बन्दरो के वंश के है, किन्तु वो ये नही बता सकते बन्दर किसके वनशज है, इसके साथ कई साल पहले विशाल जलचर जीव शार्क व वेळ मछली कभी भूमि पर रहती थी, ये जलचर नही थी किंतु जलवायु परिवर्तन से ये जलचर हुई, किंतु इनके वंशज तो जलचर नही थे।

हे मनुष्यों इसलिये किसी जीव से घृणा भाव न रखो, सबसे प्रेम भाव रखो, सात्विक बनो और ये न भूलो ये सभी तुम्हारे अपने वंश के ही है, ये सब अपने ही है, यदि तुम कटुता रखोगे तो न सिर्फ अपने पूर्वजो के प्रति अश्रद्धा दिखाते हो अपितु मेरे क्रोध के भी पात्र बनते हो।"


कल्याण हो



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