Friday 10 February 2017

ईश्वर वाणी-१९४, पृत्वी और सूर्या

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो तुम्हे मैं पहले ही
बता चूका हूँ
तुम्हारी देह अर्थात भौतिक रूप के आदि माता पिता सूर्या
देव और पृथ्वी
है।
यद्धपि अनेक शाश्त्रो में सूर्या देव की अनेक
पत्नी और संतान बतलायी गयी
हैं किन्तु भौतिक रूप में सूर्य देव की पत्नी
पृथ्वी का रूप धारण कर सभी
आत्माओ को भौतिक शरीर प्रदान करती है और
सूर्या देव के आवश्यक ताप से ही
जीवन पनपता है।
हे मनुष्यों पृथ्वी का आंतरिक ताप इसलिए सूर्या के ताप
जितना ही गर्म है,
किन्तु प्राणी जाती के जीवन के लिये
पृथ्वी को अपने पति जितने ताप को
अपनी गहराइयो में ले जाना पड़ा ताकि यहाँ आत्माये भौतिक
रूप प्राप्त कर
सके।
माता को शांत व् शीतल करने के उद्देश्य से ही
यमुना व् तपती ने नदी का
रूप धारण किया और पृथ्वी पर बहने लगी,
इसी प्रकार माता पृथ्वी को शांत व्
शीतल रखने के लिये ही पहाड़ो से लेकर विशाल
सागर तक जल किसी न किसी रूप
में विराजित है ताकि धरती शांत व् शीतल
बनी रहे और जीवन यहाँ उत्पन्न
होता रहे।
हे मनुष्यों जिस सूर्या के ताप के साये में तुम सब जिव पलते हो ये तो
उसके वास्तविक ताप ताप का मात्र १६% ही है, यदि
वास्तविक ताप पर वो आ जाए
तो पृथ्वी से जीवन ही नष्ट हो
जाये।
सूर्या देव की पत्नी की प्राथना और
आग्रह पर ही उन्होंने अपने ताप को
पृत्वी पर कम किया और जीवन उतपन्न करने
व् पालन पोषण के लिए मात्र १६% ही
ताप धरती पर भेजने का वादा किया, इस प्रकार
धरती सभी भौतिक देह धारियों
की माता व् सूर्य देव पिता हुये।
कल्याण हो

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