Saturday 4 February 2017

ईश्वर वाणी-१९२, आत्मा का आकर

ईश्वर कहते हैं, हे मनुष्यों यूँ तो आत्मा निराकार है, इंद्री विहीन है, न तो चेतना है न अचेतना, इसे कभी किसी भी चीज़ का अहसास नहीं होता, किन्तु जब ये भौतिक देह धारण कर लेती है तब समस्त इन्द्रियों को जान लेती है, जन्म से पूर्व एक नासमझ शिशु के समान होती है जो इस दुनिया में अभी अभी आया हो और सबसे अनजान हो, जन्म से पूर्व आत्मा बिलकुल वैसी ही होती है।

किन्तु जन्म के पश्चात् अपने कर्म के अनुसार जो कुछ पाप और पुण्य अर्जित करती है उसके अनुसार ही देह त्यागने के बाद उसे कहाँ जाना है ये तय होता है, कोन सी आत्मा मोक्ष पायेगी, कोन सी पित्र लोक जायेगी, कोन सी यमलोक जायेगी, किसे भूत, प्रेत, पिशाच बनना है ये तय होता है

हे मनुष्यों जब आत्मा देह को त्यागति है तब अपने सूक्ष्म शरीर के साथ उस भौतिक काया से बहार आती है, ये भौतिक शरीर जैसा ही बिलकुल होता है जैसे मृत्यु पूर्व उक्त व्यक्ति का था, इसके बाद इसके कर्म तय करते हैं इसे कहाँ जाना (स्वर्ग, नरक, ईश्वरीय लोक, पित्र लोक) और क्या बनना (भूत, प्रेत, पिशाच) है। जो आत्मा स्वर्ग व् ईश्वरीय लोक अथवा पित्र लोक जाती है, स्वर्ग लोक जाने वाली आत्मा शीघ्र ही पुण्य पूर्ण करने पर जन्म लेती है एक अच्छे कुल में जहाँ सभी तरह की सुख सुविधा उन्हें मिलती हे।

किंतु पितृ लोक, ईश्वरीय लोक वाली आत्मा कई युगों तक जन्म नही लेती, किन्तु ऐसी आत्माये सतयुग में अवश्य जन्म लेती है, और धर्म का प्रसार करती हैं। किंतु नरक जाने वाली एवं भूत, प्रेत, पिशाच जन्म धारी आत्माये अपने बुरे कर्म के अनुसार कठोर दंड प्राप्त कारती हैं, जो आत्मा सीधे ही नरक पहुची उन्हें यमदूत द्वारा कठोर दंड मिलता है, ऐसा इसलिये ही नही की इसने बुरे कर्म कर जीवन गवाया बल्कि अब जो भी जन्म इसके कर्म अनुसार मिले सत्कर्म करे और मोक्ष को पाये।ऐसे ही भूत, पिशाच, प्रेत जन्म धारी आत्माओ को नरक भोगना पड़ता है, कठोर यातना सहनी पड़ती है ताकि अगला जन्म और उसके कर्म मोक्ष उसे दिला सके।

हे मनुष्यों ये सब होता है तुम्हारी आत्मा उस सूक्ष्म शरीर को धारण किये रहती है, नरक जाने वाली, पित्र लोक जाने वाली व् भूत, प्रेत, पिशाच ये सब अपने भौतिक देह जैसे ही रूप में सूक्ष्म शरीर में होते हैं, किंतु अपने कर्म (पितरों को छोड़कर) यमराज द्वारा कठोर दंड प्राप्त कर जब दुबारा जन्म लेते है तब पिछले जन्म के भौतिक रूप को त्याग एक निराकार आत्मा बन शिशु देह में प्रवेश कर नया जीवन प्राप्त करते है।

हे मनुष्यों मैंने तुम्हें यहाँ पितरो के विषय में बताया की सूक्ष्म शरीर धारण वो भी करे होते हैं किन्तु नरक प्राप्त आत्मा की भाति फिर दोबारा जन्म नहीं लेते, ऐसा इसलिये नरक भोग चुकी आत्मा अपनी सजा काट कर, यातना से तप कर निराकार रूप में आ कर फिर दोबारा कर्म करने के लिये नयी देह की अभिलाषी होती है जो कर्म अनुसार मिलता भी है, किन्तु पितृ लोक की आत्मा सूक्ष्म शरीर धारण अवश्य करती है किन्तु श्रेष्ट कर्म होने के कारन सुख प्राप्त करती है न सिर्फ अपितु अपने कुल को भी निहारती है, उन्हें आशीर्वाद देती है, इसके साथ जब पुनः सृष्टि का निर्माण होता है तब सतयुग में पुनः जन्म लेती है किन्तु इससे पूर्व इसे भी निराकार रूप पहले धारण करना पड़ता है, इसके पश्चात इश्वरिये लोक की आत्मा के साथ मिल कर एक श्रेष्ट युग का निर्माण करती है जो धरती पर ही स्वर्ग की अनुभूति प्रदान करता है।"💐

कल्याण हो

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