Thursday 16 February 2017

ईश्वर वाणी-१९८, रिश्ते-नाते

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों तुम जिस देह के रिश्तों को अपना समझते हो ये अपने नहीं अपितु इस जीवन रूपी यात्रा में तुम्हारे सह यात्री है, तुम्हारा वास्त्विक घर मेरा लोक और सच्चा परिवार तो में ही हूँ।

तुम्हारे माता, पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी, मित्र, रिश्तेदार सभी इस यात्रा में तुम्हारे सह यात्री मात्र है, जब तुम देह त्यागोगे और दूसरा जन्म लोगे तब जो आज तुम्हारे माता, पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी, मित्र, रिश्तेदार है वो वहा नही होंगे, ऐसे ही ये व्यक्ति जहाँ जन्म लेंगे वहा तुम नही होंगे, इसलिये क्योंकि इस जीवन रुपी यात्रा के यात्री ये सब बस यही तक है, आगे की यात्रा के लिये नए यात्री मिलेंगे।

हे मनुष्यों किन्तु मैं सदा तुम्हारे साथ हूँ था और रहूँगा, मैं उस समय से तुम्हारे साथ हूँ जबसे तुमने जीवन यात्रा प्रारम्भ की, मैं जब तक साथ हूँ जब तक सृष्टि का अस्तित्व है, मैं तुम्हारा आदि पिता, माता, भाई, बहन व् संबंधी हूँ, मेरे लिये तुम्हारा देह त्याग कर दूसरी देह ग्रहण करना आत्मा के वस्त्र बदलने के समान है, मैं तुम्हे तुम्हारी देह से नही तुम्हारी आत्मा से तुम्हे देखता हूँ, मैं तुम्हारा और तुम मेरे अपने हो क्योंकि आत्मा सदा है और रहेगी किंतु देह तो मिटने वाली है।

इसलिये जो रिश्ते भौतिक देह से बने है वो सच्चे नही केवल सह यात्री समान है, किन्तु सच्चा रिश्ता मेरा और तुम्हारा है, सच्चा रिश्ता-नाता तुम्हारा  और मेरा है, तुम्हारा अपना केवल मैं हूँ मैं ईश्वर हूँ।"


कल्याण हो

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