Sunday 5 January 2014

बस दो बूँद मोहब्बत कि इस ज़माने से मुझे चाहीये




बस दो बूँद मोहब्बत कि इस ज़माने से मुझे चाहीये, धन-दौलत नहीं बस प्यार भरी  बौझार मुझे चाहिए, भीगा दे मुझे प्यार में जो इस कदर जैसे भिगो देता है सावन धरती को जिस कदर बस वैसे  ही मोहब्बत में भिगोने वाला साथी मुझे चाहिए, दो पल का साथ नहीं जो उमर थाम सके हाथ मेरा बस ऐसा दिलबर मुझे चाहिए, 


झूठे ख्वाब  दिखाने वाले मिले मुझे बहुत इस ज़माने में, झूठ पे रिश्ता बनाने वाले मिले बहुत मुझे इस ज़माने में, पल दो पल के साथ के बाद बीच मझधार में छोड़ के जाने में मिले मुझे बहुत इस ज़माने में,

टूट कर बिखर गयी हूँ में जैसे मोती टूट कर बिखरते है माला से, जो इन मोतियों  को फिर से पिरो कर माला बना दे, बना के माला  सदा के लिए अपने गले से लगा कर सीने में छिपा ले मुझे तो  बस ऐसा एक हमसफ़र चाहिए,



बहते हुए मेरी आँखों से जो इन अश्को को रोक सके वो दीवाना मुझे चाहिए, मेरी सूनी ज़िन्दगी में जो भर सके अनेक रंग वो परवाना मुझे चाहिए, 



मेरे ख्वाबो से निकल कर सामने अब तो उसे आना चाहिए, अकेली हूँ कितनी मैं उसके बिना अब तो साथ उसे मेरा देना चाहिए, छिपा है जो जो दुनिया में कही अब तो पास उसे मेरे आना चाहिए, दूर है या करीब है जहाँ भी है वो उस जगह छोड़ मेरे इस दिल में बस जाना अब उसे चाहिए,


है जानी कितनी कड़वी यादें मेरी इस ज़िन्दगी कि, इन यादों से बाहर निकालने वाला वो हमनशी मुझे तो बस चाहिए, ख़ुशी कि चाहत में जो मिले है गम मुझे इस ज़माने से उन ग़मों को दूर कर ख़ुशी के कुछ ही पल जो दे सके मुझे वो शख्स बस मुझे चाहिए,बस दो बूँद मोहब्बत कि इस ज़माने से मुझे चाहीये, बस दो बूँद मोहब्बत कि इस ज़माने से मुझे चाहीये

Saturday 14 December 2013

मलूक चन्द्र

हमारे मोहल्ले में एक महाशय रहने को आये, नाम तो वैसे अपना अरुण लाल बताते थे लेकिन मोहल्ले के बच्चे उन्हें हमारे प्यारे मलूक चन्द्र या मलूक चाचा  नाम से पुकारा करते थे, मलूक चन्द्र भी इस नाम को सुन कर बड़े ही इतरा इतरा कर चलते थे, धीरे-धीरे उनका ये नाम बड़ों में भी प्रचलित होने लगा और मोहल्ले के सभी छोटे बड़े लोग भी उन्हें अरुण लाल कि जगह मलूक चन्द्र नाम से बुलाने लगे, और फिर इसके बाद तो क्या बताये मलूक चन्द्र के मिज़ाज़ तो सातवे आसमान में उड़ने लगे, वो सच में खुद को मलूक ( अत्यधिक सुन्दर ) समझने लगे,


अब आपको जरा मलूक चन्द्र कि सुंदरता के विषय में भी बता ही दें हम भी, भई हमारे मलूक चन्द्र केवल नाम के ही मलूक नहीं थे अपितु इतने मलूक थे कि लोग उनके  मलूकियात से ईर्ष्या रखते थे ऐसे हम नहीं खुद मलूक चन्द्र का विचार था, अब जरा उनकी मलूकियात के विषय में भी बता ही  देते हैं  ताकि  आपको भी तो पता चले कि आखिर वो दिखने में कैसे थे और आप उनकी एक छवि अपने मन कि आँखों में भी बना कर उन्हें खुद अभी और इसी वक्त देख सकते हैं, चलिए ज्यादा समय नहीं लेते हुए हम उनके विषय में मेरा  मतलब है कि उनकी  मलूकियात के विषय में आपको बताते है- उनका कद था लगभग ५ फुट १० इंच का और चेहरा एक दम हमारे पूर्वजों जैसा जी हाँ हमारे पूर्वज यानि कि बन्दर या फिर कहे आदि मानव जैसा, रंग एक दम हीरे जैसा नहीं हाँ जिसकी खान से हीरा निकलता है उसके जैसा जी हाँ बिलकुल कोयले जैसे गोरे और चमकीले, अगर काली रात को अँधेरे में वो कही चले जाए तो केवल उनकी बत्तीसी नज़र आती और उसकी रौशनी से उनके साथ चलने वाले को आगे का रास्ता नज़र आने लगता, फिर उनके दांत बिलकुल दिल्ली कि सड़कों कि तरह सुन्दर जैसे दिल्ली में कही घूमने जाते और पता नहीं चलता कि सड़क पे कहाँ गड्डे हैं और कहाँ सड़क समतल है बिलकुल ऐसे ही उनके दांत थे कि कहा वो प्यारे प्यारे मोतियों जैसे है तो कहाँ वो एक दम गड्डे में दबे हुए है जैसे किसी ने उनके मुह में कोई जोर का मुक्का मार दिया हो और उनकी बत्तीसी नीचे मसूड़ों में धंस गयी हो, इसके बाद बारी आती है उनकी आँखों कि, उनके मस्त मस्त २ नेन  ओह माफ़ी कीजिये २ नहीं एक नेन क्योंकि उनकी तो एक आँख किसी लड़की ने पहले ही फोड़ दी थी, सुना है किसी लड़की से बड़ा प्रेम करते थे पर कहने से डरते थे पर एक दिन हिम्मत करके उन्होंने उस लड़की से अपने दिल कि बात बता ही दी पर लड़की ने उन्हें प्रेम करने को मना कर दिया तो वो उस लड़की के साथ जबर्दस्ती करने लगे पर उन्हें क्या पता था कि वो लड़की तो ब्लैक बेल्ट निकलेगी, उस लड़की ने उनकी जम कर धुनाई कि और इतना ही नहीं उनकी एक आँख ही फोड़ दी ताकि कभी किसी और लड़की के साथ ऐसा करने से पहले सौ बार सोचे, उनकी आँखों कि तारीफ़ के बाद अब बात आती है उनके स्वभाव कि, अब ये तो पता लग ही गया कि उनका चरित्र कैसा था किन्तु स्वभाव भी मासा अल्लाह एक दम बढ़िया था सिर्फ खुद के लिए ऐसा उनके करीबी और जान्ने वाले कहते हैं, वो केवल खुद के बारे में ही सोचते, अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए वो गधे को भी बाप बना लेते और मतलब निकल जाने के बाद लोगों को खुद कि ज़िन्दगी से ऐसे निकाल देते जैसे दूध में से मक्खी, और इसके साथ ही एक नंबर के ठरकी, छोटी छोटी बातो पे सनक चढ़ जाया करती थी उन पर, और सनक के कारण उनके करीबी अत्यंत दुखी रहा करते थे,



ये तो हो गयी उनकी खूबसूरती कि तारीफ़, इतने खूबसूरत थे वो तभी तो मोहल्ले के लोग उन्हें मलूक चन्द्र के नाम से पुकारते थे और वो भी इस नाम से बेइंतहा खुश नज़र आते और ऐसे व्यवहार करते कि दुनिया में उसने हसीं और कोई नहीं है, उनकी इसी मलूकियात पर मोहल्ले कि एक लड़की फ़िदा होने लगी, उसे पता ही चला कि वो कब इन मलूक महाशय में प्यार में गिरफ्तार होने लगी,


काफी दिनों तक अपने दिल में ही उस लड़की ने ये बात रखी लेकिन आखिर एक दिन सारी  लाज़-शर्म छोड़ कर उसने मलूक चन्द्र को अपने दिल कि बात बता ही दी, मलूक चन्द्र ये सुन कर तो उछल पड़ा, इसलिए शायद कि जब उसने किसी लड़की को अपना हाल-ऐ-दिल बताया था तब उसे अपनी आँख गवानी पड़ी लेकिन अब ये सामने से ही एक लड़की उसे अपने प्रेम का प्रस्ताव दे रही है ये सोच कर तो मलूक चन्द्र के मन में लड्डू फूटने लगे, इसके साथ ही उन्होंने उस लड़की के प्रेम का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, अब मलूक चन्द्र और वो लड़की दोनों बड़े खुश थे, लड़की सोचने लगी उसकी ज़िन्दगी सफल हो गयी जो उसे उसका मनचाहा प्यार उसे मिल गया,



मलूक चन्द्र और उस लड़की में नज़दिया बढ़ती गयी, छोटे-मोटे झगडे भी उनके बीच होते किन्तु कुछ दिन बाद सब कुछ ठीक हो जाता, किन्तु एक दिन मलूक चन्द्र उस लड़की से मिला और कहा "तुम इस दुनिया कि सबसे बदसूरत लड़की हो, न तो तुममे कपडे पहनने का ढंग है और न ही बात करने का, इतने अच्छे शहर कि रहने वाली हो लेकिन अभी तक यहाँ के न तो तुम्हे रास्ते पता हैं और न ही कही अकेले कही जा सकती हो, और तुम्हारे दाँत बड़े ही बदसूरत है इसके साथ ही तुमहरि ऐनक, तुम्हारे साथ कोई एक पल नहीं ठहर सकता, और जिस लड़के से तुम शादी करोगी वो तुम्हे अपनी उँगलियों पर नचाएगा क्योंकि तुम्हारे अंदर जरा भी समझदारी नहीं है, तुम एक असफल लड़की हो कोई भी सफल इंसान तुम्हारे साथ नहीं रह सकता और हाँ मेरे साथ तुम घूम फिर रही हो लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं तुमसे शादी करूँगा क्योकि मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता क्योंकि तुम मेरे लायक नहीं हो, अगर मेरे मन में तुमसे शादी करने कि भावना होती तो मैं तुम पर खर्च करता लेकिन खर्च तो मैंने २ पैसे का भी नहीं किया, तुम मेरे साथ नज़दीकी तालुकात तो रख सकती हो लेकिन शादी नहीं कर सकती समझी तुम" उस लड़की ने कहा "तुमने तो सारी कमिया मेरी गिना दी मुझे पर ये भी बताओ  कभी कोई  अच्छाई देखि है  तुमने मुझमे  ??", मलूक चन्द्र ने  बड़े ही गर्व से कहा "नहीं मैंने तो नहीं देखि, हाँ देखि होती तो जरूर बताता, तुम बताओ मेरे अंदर क्या कमी है, जैसे मैं पूर्ण हूँ हर चीज़ में वैसे ही तुम्हे भी देखना चाहता हूँ, पर तुमतो अपूर्ण हो और लगता नहीं मुझे कि कभी पूर्ण हो पाओगी,", उसकी बात सुन कर उस लड़की हो गहरा धक्का लगा, उसने मलूक चन्द्र से खुद को अलग करने का निश्चय किया और उससे दूरी बनाने लगी, लेकिन एक दिन मलूक चन्द्र ने उससे कहा "मैं शादी करने जा रहा हूँ अपने घर वालों कि पसंद कि लड़की से लेकिन तुम चाहो तो मेरी प्रेमिक बन कर रह सकती हो और हाँ साथ में तोहफे वो भी महंगे वाले भी जरूर देती रहना और मेरी बीवी को ये बात न पता लग जाए इसके लिए तब ही मुझसे बात करना जब मैं काम पर हुआ करू या किसी और वज़ह से घर के बाहर, और तुम भी अब शादी कर के अपना घर बसा लो लेकिन शादी के बाद भी ये रिश्ता बनाये रखना," जब लड़की ने इसके लिए मना किया तो मलूक चन्द्र भड़क गया, उस लड़की और और उसके घर वालों को गन्दी गन्दी गालियां सुनाने लगा, लड़की ने सोचा क्या ये वो ही मलूक चन्द्र है जिससे उसने प्यार किया था,



मलूक चन्द्र कि इस हरकत के बाद लड़की हो अहसास हुआ कि वो कितनी बड़ी गलती पर थी, और सोचने लगी कि आखिर क्या देख कर उसने मलूक चन्द्र से प्रेम किया था, जिसकी खुद किसी लड़की द्वारा आँख फूटी हो, जिसकी शक्ल खुद बन्दर जैसी हो, जिसका रंग खुद कोयले जैसा हो, जिसके दिमाग में  खुद जंग लगी हो वो क्या कभी किसी का होगा, उसकी आँख कि तरह ही उसका सर से ले कर पांव तक का आधा हिस्सा अपूर्ण और फूटा हुआ था,एक अपूर्ण इंसान को उसने पूर्ण से भी ज्यादा प्रेम किया ये ही उसकी गलती थी, एक अपूर्ण इंसान खुद कि कमियों को ढकने के लिए सदा दूसरों में कमिया निकालने लगता है ये बात उस लड़की को बहुत देर में सही लेकिन समझ तो आयी,

जब मलूक चन्द्र  कि हरकत के बारे में लड़की ने अपने दोस्तों को बताया तो सब उसे सबक सिखाने के लिए योजना बनाने लगे लेकिन इतने में ही उस लड़की कि बूढ़ी दादी आयी और उन्होंने कहा कि जैसे को तैसा जरूर मिलता है लेकिन जो व्यक्ति यदि बुराई कि राह पर चल रहा है और यदि उसे सबक सिखाने के नाम पर हम भी उसी कि तरह कार्य करने लगे तो उसमे और हममे क्या अंतर है, इस पर उस लड़की के दोस्त बोले तब फिर हम क्या करे, तो दादी बोली सबक मिला है खुद तुम्हे वो ये कि जब तक किसी व्यक्ति के विषय में खुद अच्छी तरह ना जान लो तब तक ना तो उस पर यकीं करो और न कोई इतना गहरा रिश्ता बनाओ जिसके टूटने के बाद खुद को ही तकलीफ हो, 


दादी ने कहा जो व्यक्ति खुद किसी न किसी शारीरिक कमी से जूझ रहा होता है या किसी भी तरह कि शारीरिक कमी जिस व्यक्ति में होती है उसका व्यवहार बदल जाता है, वो खुद को सर्वश्रेष्ट समझने लगता है, उसे लगता है यदि मैंने अपनी कमी के बावजूद इतना कुछ हासिल किया है तो अगर मैं औरों जैसा पूर्ण होता/होती तो मेरे पास क्या नहीं होता और उसकी ये ही मानसिकता उसकी सोच और बुध्ही छोटी और अल्प कर के आत्म केंद्रित कर देती है और स्वार्थी बना देती है, वो ऐसे लोगों से मिलना और मित्रता रखना पसंद करता है जो उससे भी ज्यादा सफल हो सुन्दर हो आत्म निर्भर हो हाँ उसे किसी के स्वभाव से मतलब नहीं होता मतलब होता है तो केवल उन चीज़ों से भौतिक और नासवान होती है, अतः इस प्रकार के लोगों से नज़दीकिया रखना या मित्रता रखना अथवा इनसे किसी भी प्रकार  कि सकारात्मक उम्मीद करना खुद के साथ धोखे करने जैसा है,


दादी कि बात सुन कर लड़की के दोस्त बोले तब क्या मलूक चन्द्र को ऐसे ही छोड़ दें बिना सबक दिए, तब दादी बोली "जिसके साथ खुद ईश्वर ने खुद सबसे पहले ही दण्डित किया हो उसके साथ तुम दण्डित करने वाले कौन होते हो, उसकी शारीरक अपूर्णता ही उसका दंड है ईश्वर द्वारा, और रही बात तुम्हारे साथ उसके द्वारा बुरा करने कि तो गलती उससे ज्यादा तुम्हारी है जो एक अपूर्ण इंसान को पूर्ण जैसा महत्त्व दिया और उस पर भरोसा किया,"


दादी कि बात सुन कर लड़की और उसके दोस्तों के बात समझ में आयी और उस मलूक चन्द्र को मोहल्ले में रहने के बावजूद सभी लोग उसे अनदेखा करने लगे, ये ही सजा उस मलूक चन्द्र को सभी लड़की के जान्ने वालों ने दी, जब मलूक चन्द्र ने देखा कि अब कोई उसे भाव नहीं देता, सब उसे अनदेखा कर रहे हैं तो एक दिन वो मलूक चन्द्र वहाँ  से कही और चला गया, कहाँ गया है वो आज तक किसी को पता नहीं चला किन्तु मोहल्ले वालों के ज़हन में एक शिक्षा दे कर वो उनकी ज़िन्दगी से दूर जा कर एक कहानी बन कर उनके दिल में सदा के लिए वो रह गया… 




Tuesday 10 December 2013

बीते वक्त कि ये कहानी सुनो

बीते वक्त कि ये कहानी सुनो, आओ तुम मेरी ज़ुबानी सुनो, एक था राजकुमार जो करता था राजकुमारी से प्यार बेशुमार, राजकुमारी भी करती थी उससे प्यार, लुटाती थी अपनी ज़िन्दगी उसपे मेरे यार, 


पर एक दिन अचानक राजकुमार ने राजकुमारी से कहा नहीं करता हूँ मैं तुमसे प्यार, जाओ तुम हो जाओ किसी और कि होने को तैयार, मैं तो होने वाला हूँ एक बड़े राज्य कि रानी का महाराज,


सुन कर  राजकुमारी  ये बात रोने लगी बार-बार, कि उसने फरियाद, जोड़े उसके भी हाथ, राजकुमारी कहने लगी वो कैसे हो सकती है किसी और कि क्योंकि वो तो उसकी बेवफाई  के बाद भी उसी से ही है प्यार करती,


सुन कर राजकुमारी कि बात हसने लगा राजकुमार, करके बेवफाई  भी उसके साथ लगाने लगा दोष उस पर ही बार-बार, जब राजकुमारी ने उसकी बेवफाई से  दुखी हो कर दे दिया कभी न खुश रहने का शाप तब बोला वो बेवफा राजकुमार ये ही था तुम्हारा प्यार,


बोला राजकुमार करता हूँ मैं तुमसे प्यार पर नहीं हो सकती हमारी शादी, तुम हो भले एक राजकुमारी पर नहीं हो तुम मेरे काबिल, है जो बात मुझमे वो नहीं है तुममे, है अहसास मुझमे वो नहीं है तुममे,


सुन कर बोली वो राजकुमारी वो जो दिया है बलिदान मैंने तुम्हारे लिए क्या कभी दे सकते हो तुम किसी और के लिए या दिया है तुमने किसी के लिए, किया क्या तुमने कभी सिवा अपने को छोड़ कर किसी और के लिए,


बोली वो राजकुमारी है खुश तुम्हारे भी अब ये अबला नारी, नहीं रहेगी ये बन कर अब बेचारी, छोड़ दी राजकुमारी ने अब सारी लाचारी, 


छोड़ा राजकुमारी ने अब राजकुमार का हाथ और जीने का अकेले ही फैसला किया उसने आज, देख राजकुमार उसका ये फैसला आज बड़ा दंग रह गया, जो लड़की कहती थी कभी कि वो तो है उसकी ज़िन्दगी आज अपनी ज़िन्दगी से ही निकाल कर फैंक दिया,


जिसकी सांस भी न चलती थी उनके बिन, जो सहती थी उसके जुल्म भी हस कर हर दिन आज उसने किस तरह उसे ही खुद से दूर कर दिया,


ज़ख्म लगा ये देख कर राजकुमार को जब तब गालियाँ उसे सुनाने लगा, वो था बेवफा खुद पर राजकुमारी को बताने लगा, राजकुमारी को  आज ये बात अब समझ में आयी करती थी पूजा जिस राजकुमार कि ईश्वर समझ कर वो तो है हरजाई,


सहती थी हर गम उसका दिया वो मोहब्बत के नाम पर, पीती थी हर दिन वो ज़हर बातों कि उसकी इश्क के नाम पर, आया समझ उसे आज यार उसका फरेबी था, प्यार उसका फरेबी था, जिस बेवफा पे लुटाई उसने अपनी ये ज़िंदगानी वो शख्स तो बहुत झूठा था,


एक झूठे से प्रेम कि सजा तो उसने पायी है, वफ़ा के बदले मिला बेवफा ये ही नसीब नसीब कि दुहाई है, रोती  है आज वो राजकुमारी अपनी किस्मत पर बार-बार और वो बेवफा खुश है किसी और को अपना हमसफर बना कर ऐ मेरे यार,


गुज़ारे वक्त कि ये कहानी थी वो मुझे तुम्हे ये सुनानी थी, एक बेवफा कि ये कहानी थी, फरेबी ने दी जो दगा उसकी ही ये कहानी थी, बीते ज़माने कि ये कहानी थी जो मुझे तुमको सुनानी थी ओ ओ बीते वक्त कि ये कहानी थी.....

meri takdeer

zindagi kyon mujhe baar-baar dhokhe deti hai, kyon meri har khushi hi mujhe har dafa dard deti hai, kya hoon nahi kaabil mein kisi khushi haasil karne ke ya fir meri hi takdeer mujhe ye ashk meri aaknhon mein har bar deti hai,

Wednesday 4 December 2013

दर्द कितना है इस दिल मेँ

"दर्द कितना है इस दिल मेँ फिर भी उम्मीदोँ का दिया जला रखा है, है अश्क मेँ भीगी आँखे मेरी फिर जिन्दगी का दामन थामे  रखा है, टूट कर जो बिखर गये है ख्वाब मेरे उन्हेँ समेट फिर बढ कर आगे एक नयी सुबह को गले लगाने का होसला  मन में सजों मेने रखा है, दर्द कितना भी दे नसीब मुझे मेने उम्मीदोँ का दिया जला रखा है "

Monday 2 December 2013

मेरे घर आया एक नन्हा शैतान (our new pupy, he's too naughty and these lynz for him)


 
मेरे घर आया एक नन्हा शैतान मेरे घर आया एक नन्हा शैतान, गोरी है सूरत काली है नाक गोरी है सूरत और काली है नाक, सर पे खड़े दिखते है दो कान, मेरे घर आया एक नन्हा शैतान,


भोली है सूरत पर है करता सबको है परेशान, भोली है सूरत पर है करता सबको है परेशान, मेरे घर आया एक नन्हा शैतान,



  ठुमुक ठुमुक चल कर वो खीचता कभी कपडे तो कभी  कान,   ठुमुक ठुमुक चल कर वो खीचता कभी कपडे तो कभी  कान, मेरे घर आया एक नन्हा शैतान,


सुबह उठ कर कभी वो चाटता आँखे तो कभी काट खाता वो नाक, कभी खीच कर जगाता वो हमारे कान मेरे घर आया एक नन्हा शैतान,


काट कर हमे दिन और रात करता है जो परेशान   मेरे घर आया एक नन्हा शैतान,

 

है भले वो काटने वाला, है भले वो सबको डराने वाला पर है तो आखिर सबकी आँखों का तार, जिसकी एक  अदा पे लुटा दे दोनों जहाँ वो है मेरा नन्हा नन्हा शैतान वो तो है मेरा नन्हा शैतान,

मेरे घर आया एक नन्हा शैतान मेरे घर आया एक नन्हा शैतान, मेरे घर आया एक नन्हा शैतान,


Saturday 23 November 2013

ईश्वर वाणी(अच्छाई और बुराई)- 52


ईश्वर कहते हैं "अच्छाई और बुराई एक दुसरे के पूरक हैं, बिना बुराई के अच्छाई का कोई वज़ूद ही नहीं है, हमे अच्छाई भी तभी नज़र आती है जब बुराई कही दिखाई देती है, यदि हमे कही बुराई दिखाई न दे तो हम अच्छाई और बुराई में फर्क कैसे जान सकते हैं, प्रभु कहते हैं उन्होंने प्रतयेक व्यक्ति को बुद्धि दी है ताकि वो अपनी समझ के अनुसार सही और गलत का निर्णय कर सके और उसके लिए जो उपर्युक्त हो उस रास्ते को चुने किन्तु इसके साथ गलत रास्ते पर चल कर भविष्य में होने वाली परेशानियो के विषय में भी मैंने उसे बताया है और बाकी फैसला उस पर छोड़ दिया है कि वो क्या चुनता है, मनुष्य यदि लालच के वशीभूत हो कर गलत राह चुनता है तो हो सकता है कुछ दिन सुकून के बिताये किन्तु भविष्य में अनंत दुःख भोगता है किन्तु जो मनुष्य दुःख एवं सुख में संयम से काम ले कर सदा नेक कर्म करता रहता है उसे भविष्य में एवं देह त्यागने के पश्चात अनन्य सुखों को प्राप्त करता है,




ईश्वर कहते हैं अच्छाई और बुराई दोनों मेरे ही रूप है किन्तु मैं चाहता हूँ कि मनुष्य मेरे अच्छे रूपो का अनुसरण करे ना कि बुरे स्वरुप का, ईश्वर कहते हैं अच्छे और बुरे स्वरुप मैंने इसलिए रखे हैं ताकि मनुष्य अच्छाई और बुराई में भेद जान सके और इसके साथ ही इनके परिणाम और दुष परिणामों के विषय में जान कर अपने लिए सही मार्ग को चुनने का फैसला कर उसका अनुसरण करे… "