Monday, 21 April 2014

महिलाओं पे हमले-आखिर ज़िम्मेदार कौन -लेख






आज फिर एक सामूहिक दुष्कर्म की खबर आई, मध्यप्रदेश में एक दलित लड़की के साथ चलती बस में सामूहिक बलात्कार कर बस से फेंक दिया  गया, जब १६ दिसंबर २०१२ दामिनी सामूहिक दुष्कर्म मामला सामने आया था तब न सिर्फ दिल्ली में अपितु पूरे देश में इस घटना को एवं इस प्रकार की घटनाओ को ले कर अनेक धरना प्रदर्शन होने लगे थे, नए कानूनो को बनाने की मांग उठने लगी थी और कुछ नए क़ानून बने भी लेकिन सवाल ये उठता है बावजूद इसके मुज़रिमों के दिल में कोई डर हमारी सरकार कायम क्यों नहीं कर पायी, १६ दिसंबर २०१२ के बाद इस तरह की वारदाते पहले से अधिक ही   सुर्ख़ियों में आने लगी या तो पहले शर्मिंदगी के डर से ऐसे मामले सामने काम आते थे या फिर मुज़रिमों को इस घटना के बाद हौसला मिला और वो ऐसे कुकृत्य पहले से ज्यादा शान से करने लगे, सोचने लगे क्या होगा ज्यादा से ज्यादा महज़ कुछ साल की सजा वो भी अगर पकडे गए और तमाम तरह की कानूनी कारवाही के बाद न, तब की तब देखेंगे अभी तो मज़ा ले लें,



हमारे देश और हम हिन्दुस्तानियों की सोच हाथी के दांत जैसी है, जैसे हाथी के दांत दिखने के और खाने के और होते है वैसे ही हमारी सोच बोलते हुए कुछ और होती है और कर्म करते हुए कुछ और, हम लोग नवरात्रों में माता का पूजन करते हैं, कंजक पूजते हैं, माता को घर अपने विराजने का आग्रह करते हैं किन्तु जब एक कन्या शिशु रूप में जन्म ले लेती है तब उसे देख कर दिल में पीड़ा होती, दर्द होता है और बच्ची के माता-पिता एवं अन्य करीबी लोग अपने नसीब को कोसते हैं, आखिर क्यों क्योंकि वो एक लड़की है, न सिर्फ कम पड़े लिखे एवं गरीब/माध्यम वर्ग के लोग अपितु उच्च वर्ग के और पड़े लिखे  लोगों की सोच भी वैसी ही है जैसी अन्य वर्गों के लोगों की, चाहे वो शहर में रहे या गांव में, देश में रहे या विदेश में, लड़की के जन्म के बाद तो उनके दिल पर मानों बिज़ली ही  गिर जाती है, खुद को कोसते हैं जाने क्या गलती  उन्होंने कर दी की लड़की उनके घर पैदा हो गयी, मानो जैसे कोई डाकू जबरदस्ती उनके घर घुस आया हो और उनके सब कुछ लूट कर ले जाने वाला हो, ऐसी हालत बेटी पैदा करने वाले माता-पिता एवं उसके परिवार वालों की होती है,


ऐसे लोग माता की पूजा करते हैं, उन्हें अपने यहाँ आने का आग्रह करते हैं किन्तु अपनी ही बेटियों के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं, माता-पिता एवं परिवार की इसी दोहरी और भेद-भाव पूर्ण नीति का नतीजा है की देश में बलात्कार/सामूहिक दुष्कर्म/छेड़-छाड़/तेज़ाब फेंकना/दहेज़ प्रताड़ना जैसी कुप्रथाएँ मुह फैला कर समाज को दूसित करती जा रही है,

अपराधियों के हौसले बढ़ते जा रहे हैं क्यों की वो भी आखिर उसी समाज का हिस्सा है जहाँ वो नारी की ये दशा देखते आ रहे हैं, उनके अपने घर की बेटियों की भी वही स्तिथि है, वो भी वहा अपने माता-पिता और परिवार की दोहरी नीति की शिकार है, ये देख  अपराधी जानते हैं जब स्त्रीयों का  सम्मान उनके अपने माता-पिता और परिवार के अन्य लोग नहीं करते तो फिर वो करने वाले कौन होते हैं, ऐसे लोग बचपन से ही नारी को दबा कुचला और शोषित वर्ग के रूप में देखते आते हैं जिसके साथ पुरुष कुछ भी कर सकता है किन्तु स्त्री उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती, और ऐसी सोच पुरुषों को उनके अपने परिवार से ही मिलती है, बचपन से ही ऐसी सोच उनके दिल दिमाग में बस्ती रहती है और जो आगे चल कर निम्न अपराध को करने के लिए प्रेरित करती है,


स्त्रीयों पर होने वाले निम्न अपराधों के लिए आम तौर पर स्त्रीयों को दोषी ठहराया जाता है, किन्तु पुरुषों छोड़ दिया जाता है, यदि कोई लड़की काम कपडे पहन कर कही बाहर जाती है तो उसका बलात्कार हो सकता है, किन्तु क्या ये किसी धार्मिक ग्रन्थ में लिखा है या देश के कानून में लिखा है की अगर कोई लड़की काम वस्त्र धारण करे तो पुरुष को ये अधिकार है की वो उसके साथ बलात्कार करे, और इस बात की गारंटी है की कोई लड़की यदि बुर्के में या परदे में जाती है तो वो सुरक्षित है क्या देश के क़ानून या धार्मिक शाश्त्र में  ऐसा लिखा है की परदे में रहने वाली स्त्री के साथ पुरुष बलात्कार नहीं कर सकता, उसे दहेज़ के लीये प्रताड़ित नहीं कर सकता या तेज़ाब से उसकी ज़िन्दगी तबाह नहीं कर सकता अथवा किसी भी तरह की छेड़-छाड़ नहीं कर सकता,


सच तो ये है की केवल पुरुषवादी सोच रखने वाले लोग ही ऐसी दकियानूसी बाते करते हैं, ऐसे लोग स्त्री को आत्मनिर्भर, स्वतंत्र, आत्मविश्वासी और हर तरह से पुरुष से बेहतर होने से जलते हैं, उन्हें लगता है की पुरषों की बरसों से चली आ रही सत्ता पे ऐसे स्त्रीयों से खतरा है, और ऐसे लोग बस स्त्रीयों को  नीचा दिखाने  के लिए इस तरह के वक्तव्यों का इस्तमाल करते हैं,



इस तरह की घटनाओ को रोकना सिर्फ हमारे हाथों में है, प्रतेक माता-पिता को अपने पुत्र-पुत्री के भेद-भाव को मिटाना होगा, उनके इन्ही भेद-भाव के कारण देश में राम की जगह रावण पैदा हो रहे हैं, यदि हमे देश को फिर से राम राज्य बनाना है तो शुरुआत अपने घर से ही करनी होगी, लड़कों को लड़कियों का सम्मान करना सिखाना होगा और इसकी शुरुआत घर से होगी, बेटी के पैदा होने पर भी घर में  पर्व जैसा माहोल बनाना होगा जैसे बेटे के जन्म पर होता है, बेटे की तरह घर में बेटी के जन्म के लिए ईश्वर से प्राथना करनी होगी, बेटी के जन्म के बाद उसे भी वही अधिकार दिए जायंगे जो बेटे को  है, वैसी ही शिक्षा दी जाएगी जैसे बेटे को, लड़कों को "यत्र नारीयस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता " का सही मतलब बताना होगा जिसकी शुरुआत घर से ही करनी होगी, यदि माता-पिता निम्न बातों का पालन करते हुए इस सोच का त्याग करे "ये तो लड़का है इसका कभी कुछ नहीं बिगड़ेगा लड़की होता तो डर होता " तो निश्चित ही पुरुषों की सोच में कुछ फर्क आएगा, आमतौर पर माता-पिता और घर के अन्य लोग लड़कों के लिए ये ही कहते रहते है जिसका असर उनके दिलों-दिमाग पर पड़ता है और पुरुष इस प्रकार की आपराधिक गतिविधों का हिस्सा बन जाते हैं, दुःख की बात है इन घृणित कार्य को करने के बाद भी उनके मन में  कोई छोभ नहीं क्योंकि उनके ज़हन में  माता-पिता के वही शब्द होते हैं जो उन्हें इस प्रकार के कुकृत्य के बाद भी पछतावे से रोकते हैं और खुद को पुरुष होने पर गर्व करते हुए आगे भी इस तरह के घृणित कार्य करने को प्रेरित करते हैं,


हमारे समाज को और नारी जाती को ये समझना होगा की यदि किसी स्त्री के साथ ऐसा घृणित कार्य यदि होता है तो सिर्फ एक स्त्री के साथ नहीं है अपितु समस्त स्त्री जाती के साथ है क्यों की ऐसे लोग समस्त स्त्रीयो को  इसी निगाह से देखते हैं, ऐसे लोगों  की दृष्टि में नारी  जाती के लिए कोई सम्मान नहीं होता, ऐसे पुरुषों की माताओ से बहनो से अनुरोध है की यदि उन्हें अपने बेटे/पति/भाई/पिता आदि के किसी भी प्रकार के कुकृत्य का पता चले तुरंत समस्त नारी जाती के सम्मान हेतु अपने पारिवारिक रिश्ते ना देखते हुए उनके खिलाफ खड़ी हो, क्योंकि जो पुरुष आज किसी और स्त्री के ऊपर निम्न निगाह डालता है ऐसा व्यक्ति न सिर्फ एक स्त्री का अपितु समस्त नारी जाती का दोषी होता है, उसके परिवार की स्त्रीयों को ये समझना चाहिए की ऐसा व्यक्ति खुद उनके और अपने परिवार के लिए भी कितना अहितकारी साबित हो सकता है, इससे पहले की ऐसे व्यक्ति के हौसले बुलंद हो ऐसे पुरुषों के खिलाफ सबसे पहले उसके घर की स्त्रीयों को खड़े होना चाहिए, पर दुःख की बात है नारी जाती खुद को पुरुष के बिना इतना निर्बल समझती है और उसके मोह में इतनी बंधी होती है की पुरषों के घृणित से घृणित कार्य के बाद भी वो उसके खिलाफ न जा कर उसका साथ निभाती है, इससे पुरुषों में ऐसे कार्य करने के हौसले और बुलंद होते हैं, उन्हें लगता है की वो जो कर रहे हैं सही है पर वो ये भूल जाते हैं की उनके घर में भी स्त्रीया है और कोई उनके साथ भी ऐसा कर सकता है,


सच तो ये है नारी जाती को भी पुरषों पे आश्रित पारम्परिक मानसिकता को त्याग कर और अपने रिश्तों के मोह को त्याग कर समाज के कल्याण और बेहतर विकास के लिए इस प्रकार के कुकृत्य करने वाले उनके घर के पुरषों का साथ छोड़ कर नारी जाती के साथ खड़ा होना होगा, उन्हें देखना होगा और समझना होगा की कही उनका ये दीपक ही कही उनके अपने घर को  ना जला  दे जो कही और किसी और के घर और किसी की ज़िन्दगी उजाड़ कर आ रहा है,


अभी कुछ दिन पहले एक राजनेता ने बलात्कार को महज़ एक गलती कह कर समस्त बलात्कारियों का साथ दिया, उसने कहा की लड़कों से गलतिया हो जाती है, तो सबसे पहले किसी के साथ जबरदस्ती शारीरिक सम्बन्ध गलती से नहीं पूरे होश में पुरुष बनाता है, उसे पता होता सही और गलत का, फिर वो गलती कैसे हुई, गलती उसे कहते हैं जब किसी बात की जानकारी न हो उसके परिणामो की जानकारी न हो और अनजाने में जो कार्य किया जाए वो गलती है, फिर किसी स्त्री से जबरन शारीरिक सम्बन्ध गलती कैसे हो सकती है ये तो पाप है और इसके खिलाफ फांसी से भी बड़ी सजा होनी चाहिए ताकि पुरुष किसी भी स्त्री से जबरदस्ती करने से पहले हज़ार बार सोचे मगर उन राजनेता की नज़र में ये महज़ एक मामूली से गलती है और कोई बड़ी सजा नहीं होनी चाहिए जैसे किसी ने कोई छोटी-मोती चीज़ चुरा ली हो जिसकी भरपाई कुछ दिन सजा दे कर या थोडासा हर्जाना दे कर पूरी की जा सकती हो, उस राजनेता की नज़र में स्त्रीयों की इज़्ज़त सिर्फ महज़ बस इतनी ही है, कमाल की बात तो ये है उसके अपने घर की महिलाओं ने भी इसका विरोध नहीं किया, इससे पता चलता है उसके अपने घर की महिलाये कैसे माहोल में जी रही होंगी, और ऐसे लोग यदि सत्ता में आ जाये तो देश की महिलओं का क्या होगा, हर औरत घर से निकलतने से पहले सेकड़ो बार सोचेगी की कही वो किसी पुरुष की गलती का शिकार ना हो जाए, आज जो देश के हाल है ऐसे लोग और उनकी मानसिकता इससे भी बुरे हाल आने वाले समय में कर देंगे यदि ऐसे सोच वाले लोग देश की सत्ता में आ जाए,


यदि उस राजनेता के माता-पिता ने स्त्री-पुरुष भेद-भाव रहित उसकी परवरिश की होती तो ऐसे बयां न देता, जैसे की मैंने पहले ही बताया स्त्रीयों पे होने वाले अपराधों की सबसे पहली वज़ह माता-पिता और परिवार वालों द्वारा किये गए भेद-भाव हैं, यदि माता-पिता इन्हे ख़त्म करे और बेटियों को भी बेटों के सामान ही सम्मान और प्यार दे इसके साथ ही लड़कों को लड़कियों का सम्मान करना सिखाये और इसके लिए खुद उनके आदर्श बने तो निश्चित ही इस प्रकार की घटनाओ में कमी आयगी, आज देश में स्त्रीयों पे होने वाले निम्न अपराधों को कम अथवा ख़त्म तब ही किया जा सकता है जब हम अपनी मानसिकता को बदले, ये माना की वक्त लगेगा इसमें लेकिन शुरुआत तो हमे आज और भी से करनी होगी अन्यथा वो दिन दूर नहीं की जिस देश में नारी की  पूजा की जाती है उसी देश में कोई भी नारी दुनिया में आने से पहले ही दुनिया छोड़ने पर मज़बूर हो जाये…






Sunday, 20 April 2014

बिन तेरे कुछ भी नहीं मैं





बिन तेरे कुछ भी नहीं मैं, बिन तेरे मुझमे नहीं मैं, बिन तेरे हूँ भी क्या मैं, है नहीं कोई ख्वाब भी इस दिल में बिन तेरे, है नहीं कोई अरमान भी सीने में अब मेरे, 

है नहीं कोई वज़ूद भी बिन तेरे अब मेरा, है नहीं अब कोई आरज़ू और  कोई सपना भी  अब मेरा, बिन तेरे कुछ भी नहीं मैं,


है साँसे  इस जिस्म में मगर ज़िन्दगी नहीं बिन तेरे, है धड़कन इस दिल में मगर ज़ज़्बात नहीं इस  सीने  में  अब मेरे ,

सब है पास मेरे फिर भी है खाली हाथ ये मेरे  , सब है साथ मेरे फिर भी नहीं कोई आस इस दिल में  अब मेरे  ,


है मुस्कान मेरे लबों पे पर ख़ुशी  नहीं  बिन तेरे, ज़िन्दगी की राहों पे मिलते है लोग हज़ार मुझे पर हूँ तनहा बेइंतहा बिन तेरे,


बिखरी पड़ी है हर ख़ुशी मेरे आँगन में, बिछी पड़ी है ये हसी भी मेरे आँगन में, पर सूनी है ये ज़िन्दगी बिन तेरे, रुक जाती है लबों पे ही ये हसी बिन तेरे,

 कैसे  समझाऊ तुझे मैं की बिन तेरे कुछ भी नहीं मैं,  कैसे बताऊ तुझे मैं  की बिन तेरे मुझमे नहीं मैं, बिन तेरे हूँ  नहीं  आज भी  खुश मैं, 

है नहीं कोई ख्वाब भी इस दिल में बिन तेरे, 
है नहीं कोई अरमान भी सीने में अब मेरे
बिन तेरे कुछ भी नहीं मैं, बिन तेरे मुझमे नहीं मैं,

 बिन तेरे हूँ भी क्या मैं, है नहीं कोई ख्वाब भी इस दिल में बिन तेरे, है नहीं कोई अरमान भी सीने में अब मेरे, 
 बिन तेरे कुछ भी नहीं मैं,  बिन तेरे कुछ भी नहीं मैं, बिन तेरे कुछ भी नहीं मैं, बिन तेरे कुछ भी नहीं मैं


Saturday, 19 April 2014

ईश्वर वाणी(ईश्वर कहते हैं)-54

ईश्वर कहते हैं केवल व्रत, उपवास, विभिन्न प्रकार के पूजा-पाठ, हवन-पूजन  आदि से मुझे कोई भी सांसारिक प्राणी हासिल नहीं कर सकता, मुझे केवल वही व्यक्ति हासिल कर सकता है जिसमे त्याग, अहिंसा, प्रेम, सदाचार, सम्मान, नैतिकता, जैसे गुण हो,


ईश्वर कहते है जो लोग भले ही मुझे प्रसन्न करने हेतु विभिन्न प्रकार की पूजा-पाठ, आराधना इत्यादि करे किन्तु जिनके ह्रदय में मलिनता है तथा जो भी व्यक्ति अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु ही कार्य करते है, अपने स्वार्थ पूर्ती हेतु किसी भी प्राणी को शारीरिक अथवा मानसिक पीड़ा पहुचाते हैं, झूठ, व्यभिचार, लोभ-लालच, मोह-माया, तथा समस्त पाप अपने ह्रदय में बसा कर मेरा ध्यान करते हैं ऐसे प्राणियों अथवा मनुष्यों को मैं कभी प्राप्त नहीं होता,


 ईश्वर कहते हैं यदि कोई भी प्राणी मुझे हासिल करना चाहता है तो भले वो मेरी पूजा, आराधना, स्तुति, हवन, भक्ति न करे, भले वो अपने पूरे जीवन काल में मेरा नाम भी न ले किन्तु यदि कोई व्यक्ति केवल उस कार्य को करे जिसके  लिए मैंने उसे मानव जीवन दिया है निश्चित ही ऐसे व्यक्ति को मेरी प्राप्ति होगी,


ईश्वर कहते हैं मैं तो सबके ह्रदय में निवास करता हूँ, ह्रदय में निवास करने का अर्थ है जब बालक जन्म लेता है एवं शिशु रूप में वो होता है तब वो सभी प्रकार के विकार से दूर होता है, उसका ह्रदय पूर्ण पवित्र होता है, उस उस पवित्र ह्रदय में ही ईश्वर निवास करते हैं, ईश्वर कहते हैं किन्तु जब मानव बड़ा होता जाता है उसके ह्रदय में विभिन्न प्रकार के विकार आने लगते हैं, वो भूल जाता है उसके सीने में एक ह्रदय है जिसमे साक्षात ईश्वर का निवास है, वो उन्हें ढूंढे मंदिर एवं अन्य धार्मिक स्थानो पर जाता है किन्तु अपने ह्रदय में नहीं झांकता, 

ईश्वर कहते हैं मानव कर्मो की मलिनता के कारण उसके ह्रदय में बस्ते हुए भी मैं उसे नज़र नहींआता और मानव मेरी खोज में जाने कहाँ-कहाँ भटकता रहता है पर कभी मुझसे भेट नहीं कर पाता है,


ईश्वर कहते हैं यदि कोई भी व्यक्ति मेरे द्वारा बताये गए मार्ग पर चले तो भले उसे इस भौतिक शरीर में अनेक कष्ट सहने पड़े किन्तु इसके त्याग के पश्चात उसे वो अनन्य सुख प्राप्त होगा जो इस भौतिक और नाशवान संसार में कभी किसी को भी प्राप्त नहीं हुआ है,


इसलिए हे मानवो सुधर जाओ और पाप का मार्ग छोड़ कर ईश्वर का मार्ग अपनाओ अन्यथा तुम्हारा ये मानव जीवन जो ना जाने कितनी पीड़ा छेल कर तुम्हे तुम्हारे उद्धार हेतु तुम्हे मिला है वो व्यर्थ जाएगा, इसलिए हे मानवों अपने समस्त पापों का त्याग करो और मेरे बताये मार्ग पर चलो तुम्हारा कल्याण हो… 



My Baby my life

My Baby my life, My Baby is sight of my eyes, My Baby is hope of my life, My Baby is reason of my life, My Baby is the star of my eyes, My Baby is happiness of my life, My Baby is love of my life, My Baby is everything of my life,


my baby everything for me (Boss my cute Pet, my love)

Saturday, 5 April 2014

तुम ही हो-कविता

तुम ही हो ज़िन्दगी मेरी, तुम ही हो हर खुशी मेरी,
  तुम ही रास्ता हो मेरा, तुम ही मंज़िल हो मेरी,
  तुम ही सहारा हो मेरा, तुम ही तकदीर हो मेरी,
  मेरे दिलबर ना छोड़ जाना तुम मुझे अकेला तुम बिन कुछ भी नहीं है ये ज़िन्दगी मेरी,
तुम ही तो हो जीने कि वज़ह मेरी, तुम ही तो हो इस सूने जीवन कि आखिरी आस मेरी, 
 तुम ही हो मेरे धड़कते इस दिल कि धड़कन मेरी, तुम ही हो इस ज़िन्दगी कि आखिरी सांस मेरी,
 तुम ही तो हर उम्मीद मेरी, तुम ही हो बंदगी मेरी,
तुम ही हो ज़िन्दगी मेरी, तुम ही हर ख़ुशी मेरी,
 तुम ही हो ज़िन्दगी मेरी, तुम ही हो हर ख़ुशी मेरी.... 

प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा-कविता

सोचता है मन ये मेरा बार-बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा , सोचता है दिल ये मेरा हर बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा,

मोहब्बत के नाम पर दिखती है मुझे हर तरफ  वासना, इश्क के नाम पर दिखती है मुझे तो बस कामना, देख दुनियादारी सोचता है ये मन ये बार-बार प्यार चाहत है  या  सिर्फ दोखा,


चलते हुए मोहब्बत कि कश्ती में बीच मझधार में छोड़ जाता है दिलबर, अश्क और ग़मों के सिवा ना आता है फिर कुछ और नज़र, देख दुनिया कि ये बेईमानी सोचता है दिल ये मेरा हर बार प्यार चाहत है या सिर्फ दोखा,


ख्वाब दिखा कर ख़ुशी का साथ छोड़ जाते हैं आशिक, नज़रे मिलाते है कभी करीब आने के लिए फिर एक दिन नज़रे चुराते हैं दूर जाने के लिए ये आशिक  , देख दुनिया कि ये रीत पूछता है ये दिल मेरा बार-बार प्यार चाहत है  या सिर्फ दोखा,


वफ़ा का  नाम दिखा कर बेफवाई का आचल थामते है लोग, करते हैं वायदा साथ निभाने का फिर तोड़ जाते हैं लोग, देख दुनिया कि ये बेईमानियां सोचता है मन ये बार-बार प्यार चाहत है  या सिर्फ  दोखा,


बनते है जो कभी अपने वो ही अक्सर दगा ही क्यों देते हैं, रहते हैं जो दिल में अक्सर वो ही इसे क्यों तोड़ देते हैं, सोचता है दिल ये मेरा बार-बार क्या इसी फरेब को ही प्यार कहते हैं,


विलासिता में डूबे हुए वासना में भीगे हुए इन नैतिकता से रिश्ता तोड़े हुए पवित्रता से मुख को मोड़े  हुए इन दिल के रिश्तो को ही क्या कहा जाता है  प्यार, देख दुनिया कि लाचारी सोचता है ये दिल मेरा ये प्यार है चाहत है या  सिर्फ दोखा,


 मोहब्बत तो नाम था कभी खुदा  का पर आज मोहब्बत बन गयी है बीमारी, दिल से दिल का रिश्ता नहीं वासना में डूबे हुए भोग कि  हर  कही हो चुकी है मारा-मरी, देख दुनिया कि ये बेईमानियां पूछता है दिल ये मेरा प्यार चाहत है या  सिर्फ दोखा,


 सोचता है मन ये मेरा बार-बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा , सोचता है दिल ये मेरा हर बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा,

सोचता है मन ये मेरा बार-बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा , सोचता है दिल ये मेरा हर बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा, 



Friday, 4 April 2014

दोस्ती

"mil kar bichhadne ka nam h dosti, hasa kar rulane ka nam h dosti, kabhi wafa ka to kabhi bewafai ka nam h dosti, kabhi saath chalne ka to kabhi tanahai ka nam h dosti,

bhoole huye guzare un lamho ka nam h dosti, bhool jaye chahe zindagi k safar me koi pyara dost par uski yaado ka nam hi h dosti"


मिल कर बिछड़ने का नाम दोस्ती, हँसा कर रुलाने का नाम है दोस्ती, कभी वफ़ा तो कभी बेवफाई का नाम है दोस्ती, कभी साथ चलने का तो कभी तन्हाई का नाम है दोस्ती, 

भूले हुए गुज़रे हुए उन लम्हो का नाम है दोस्ती,  ज़िन्दगी के सफ़र में कोई प्यारा दोस्त पर उसकी यादों का नाम ही है दोस्ती……