Saturday 5 April 2014

प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा-कविता

सोचता है मन ये मेरा बार-बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा , सोचता है दिल ये मेरा हर बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा,

मोहब्बत के नाम पर दिखती है मुझे हर तरफ  वासना, इश्क के नाम पर दिखती है मुझे तो बस कामना, देख दुनियादारी सोचता है ये मन ये बार-बार प्यार चाहत है  या  सिर्फ दोखा,


चलते हुए मोहब्बत कि कश्ती में बीच मझधार में छोड़ जाता है दिलबर, अश्क और ग़मों के सिवा ना आता है फिर कुछ और नज़र, देख दुनिया कि ये बेईमानी सोचता है दिल ये मेरा हर बार प्यार चाहत है या सिर्फ दोखा,


ख्वाब दिखा कर ख़ुशी का साथ छोड़ जाते हैं आशिक, नज़रे मिलाते है कभी करीब आने के लिए फिर एक दिन नज़रे चुराते हैं दूर जाने के लिए ये आशिक  , देख दुनिया कि ये रीत पूछता है ये दिल मेरा बार-बार प्यार चाहत है  या सिर्फ दोखा,


वफ़ा का  नाम दिखा कर बेफवाई का आचल थामते है लोग, करते हैं वायदा साथ निभाने का फिर तोड़ जाते हैं लोग, देख दुनिया कि ये बेईमानियां सोचता है मन ये बार-बार प्यार चाहत है  या सिर्फ  दोखा,


बनते है जो कभी अपने वो ही अक्सर दगा ही क्यों देते हैं, रहते हैं जो दिल में अक्सर वो ही इसे क्यों तोड़ देते हैं, सोचता है दिल ये मेरा बार-बार क्या इसी फरेब को ही प्यार कहते हैं,


विलासिता में डूबे हुए वासना में भीगे हुए इन नैतिकता से रिश्ता तोड़े हुए पवित्रता से मुख को मोड़े  हुए इन दिल के रिश्तो को ही क्या कहा जाता है  प्यार, देख दुनिया कि लाचारी सोचता है ये दिल मेरा ये प्यार है चाहत है या  सिर्फ दोखा,


 मोहब्बत तो नाम था कभी खुदा  का पर आज मोहब्बत बन गयी है बीमारी, दिल से दिल का रिश्ता नहीं वासना में डूबे हुए भोग कि  हर  कही हो चुकी है मारा-मरी, देख दुनिया कि ये बेईमानियां पूछता है दिल ये मेरा प्यार चाहत है या  सिर्फ दोखा,


 सोचता है मन ये मेरा बार-बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा , सोचता है दिल ये मेरा हर बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा,

सोचता है मन ये मेरा बार-बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा , सोचता है दिल ये मेरा हर बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा, 



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