Friday 4 April 2014

"यत्र नारियस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता"-लेख

हर रोज टी.वी पर समाचार पत्रों पर मैगज़ीन पर हर जगह महिलाओ पर हो रहे अत्याचारों कि खबरों का आना तो अब आम बात हो गयी है, आज सिर्फ दिल्ली में ही नहीं अपितु पूरे देश में महिलाओ पर अत्याचारों कि मानो तो जैसे बाढ़  ही आ गयी है, हर रोज़ छेड़ -छाड़ ,बलात्कार, तेज़ाब फैंकना, दहेज़ के लिए हत्या या दहेज़ प्रतड़ना, घरेलू हिंसा जैसी ना जाने कितनी ही ख़बरों से हमारा समाचारपत्र और पत्रिकाए और न्यूज़ चेंनल भरे बड़े है,


१६ दिसंबर २०१२ के दामिनी सामूहिक  बलात्कार और हत्या के बाद जो दिल्ली एवं समस्त देश में जनसैलाब उमड़ा था उससे लगने लगा था कि शायद अब हमारे देश कि जनता जागेगी और एक नयी क्रांति का जन्म होगा एक नए आज़ाद हिंदुस्तान का जन्म होगा जहाँ महिलाये सुकून से जी सकेंगी,  १५ अगस्त १९४७ को भले भारत देश अंग्रेज़ो कि गुलामी से आज़ाद हो गया हो किन्तु इस देश कि महिलाये आज भी गुलाम है भले हमारा समाज और सरकार कितना कहे कि ऐसा नहीं है आज महिलाये इतने ऊँचे ओहदे पर है जो आज़ादी से पहले नहीं थी किन्तु ऐसी महिलाये है कितनी और जो है उनसे पूछा जाये क्या वो खुद को सुरक्षित महसूस करती है, क्या वो अकेले घर के बाहर रात जो जाते हुए खुद को सुरक्षित महसूस करती है,


जाहिर सी बात है आज महिलाये भले ही कितनी तरक्की कर के ऊँचे ओहदे पर विराजित हो किन्तु एक पारम्परिक पुरषवादी सामाजिक सोच कि गुलाम वो आज भी है, पुरुषों कि जो सोच सदियों पहले थी वो ही सोच आज भी है, पहले राजा-महाराज किसी भी सुन्दर स्त्री को देख कर अपनी वासना को शांत करने हेतु युद्ध तक कर देते थे, अपनी वासना के लिए न जाने कितने निर्दोषों का खून बहा देते थे, उन्हें उस स्त्री कि भावनाओ से कोई सरोकार नहीं होता था, उन्हें तो केवल खुद कि वासना से मतलब होता था, यदि स्त्री सुन्दर और पुरुष के दिल को भा गयी है तो उसे हर हाल में हासिल कर अपनी वासना को शांत करने के लिए चाहे कितनो का ही रक्त बहाना पड़े उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था,


आज भले हम खुद को कितना ही आधुनिक कहे किन्तु पुरषों उस पारम्परिक सोच में कुछ ज्यादा बदलाओ नहीं आया है, हाँ इतना जरूर है पहले एक स्त्री के लिए पूरे राज्य को राजा-महाराज दावं पर लगा देते थे किन्तु स्त्री कि भावनाओ से उन्हें कोई सरोकार नहीं होता था, वो केवल स्त्री को एक शरीर मानते थे जो उनकी वासना को शांत करने लिए ईश्वर ने बनाया है ऐसा सोचते थे, स्त्री उनके लिए केवल उनकी वासना को तृप्त कर उनके लिए संतान उत्पन्न करने का एक साधन मात्र थी, आज के इस आधुनिक युग में इतना अंतर जरूर है कि एक स्त्री को हासिल करने के लिए राजा-महाराजा नहीं है क्योंकि देश में जनतंत्र है, किन्तु पुरुषवादी सोच वही है तभी जनतंत्र के बाद भी देश में नारी कि दशा दय से दयनीय होती जा रही है,


हर रोज़ बलात्कार, छेड़-छड़, तेज़ाब से हमले, दहेज़ प्रताड़ना, पुत्र न होने पर प्रताड़ना, स्त्री हो स्त्री होने पर प्रताड़ना मिलती है, ये सब पुरुष वादी प्राचीन सोच का ही नतीज़ा है, जिसे हम आधुनिक कहते है, हम आज खुद को चाहे कितना भी आधुनिक कहे किन्तु हम तब तक आधुनिक नहीं है जब तक पारम्परिक पुरषवादी सोच स्त्री के लिए नहीं बदल  जाती,


अपनी वासना को शांत करने के लिए आज भी पुरुष किसी भी   हद तक चला जाता है, रिश्ते और विश्वास को अपनी वासना तृप्ति के लिए  तार-तार कर देता है, नैतिकता के समस्त नियम उसकी वासना कि आग के आगे नगण्य है, इसी का नतीज़ा है जो देश में स्त्रीयों कि दशा ये है, हर जगह महिलाओ पर अत्याचार हो रहे हैं, वो भी उस देश में जहाँ कहा जाता है "यत्र नारियस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" अर्थात जहाँ नारी कि पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं किन्तु आज देवता नहीं रावण हर घर और हर जगह निवास करता है, जो स्त्री को अपनी संपत्ति, अपनी गुलाम समझता है जिसे वो जब चाहे जैसे चाहे जो कर ले और स्त्री उसके खिलाफ कुछ न बोले जैसे स्त्री कोई बेजान वस्तु हो,


प्राचीन काल से ले कर आज तक पुरषों कि ये ही सोच रही है तभी तो स्त्रीयों पर ही तमाम तरह कि बंदिशे प्राचीन काल से ही पुरषों ने लगा रखी थी जैसे कैसे उन्हें बोलना है, कैसे आचरण करना है, कैसे वस्त्र धारण करने है, कैसे व्यवहार करना है, कुल मिलकर पुरषों ने स्त्रीयों के लिए ये सब निर्धारण इसलिए कर रखा था ताकि स्त्री कभी भी खुद को एक आज़ाद प्राणी न मान कर ये ही मान कर जीवित रहे कि उसका जीवन मात्र पुरषों पर निर्भर है और उसे वो ही आचरण करना है जैसा पुरष चाहे, उसकी अपनी कोई हस्ती नहीं है, उसकी अपनी कोई अहमियत नहीं, बिना पुरुष के वो कुछ भी नहीं है, पुरुष आज भी स्त्री को ऐसा ही देखना चाहते है किन्तु बदलते वक्त के साथ जब स्त्री इसका विरोध कर रही है वो पुरुष इसे अपनी सत्ता जो सदियों से चली आ रही है स्त्री पर एकाधिकार वाली उसे छिनती नज़र आ रही है और इसे दबाने के लिए ही पुरुष स्त्रीयों पर तरह तरह के अत्याचार करने लगा है,



आज समाज में स्त्री-पुरुष में भारी लिंगानुपात है कारण पुरुषवादी प्राचीन रूढ़िवादी सोच, पुरषों के स्त्रीयों पर इन्ही अत्याचारों के कारण माता-पिता बेटी को जन्म देने से पहले ही मार देते हैं, स्त्री-पुरुष में काफी बड़ा लिंगानुपात होता जा रहा है, पुरुषों को ये सोचना चाहिए यदि देश और दुनिया से स्त्रीयां ही समाप्त हो गयी तो दुनिया कैसे चलेगी, पुरषो को अपनी प्राचीन रूढ़िवादी सोच को बदल कर और अपनी वासना पर काबू प् कर रिश्ते-नातों का सम्मान करते हुए समस्त स्त्री जाती का सम्मान करते हुए सच में एक नए आज़ाद हिंदुस्तान का निर्माण करना चाहिए जहाँ सच में स्त्रीयां भी खुद को सुरक्षित महसूस कर के एक आज़ाद देश कि आज़ाद नागरिक मान कर निडरता के साथ एक खुली हवा में सांस ले सके , और हम सच में इस वचन को दुनिया के सामने सिध्ह कर सके "यत्र नारियस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता"






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