Thursday 3 April 2014

ईश्वर वाणी (कभी किसी भी निर्दोष निरीह प्राणी को दुःख/पीड़ा/कष्ट नहीं पहुचाना चाहिए)-53

ईश्वर कहते हैं हमे कभी किसी भी निर्दोष निरीह प्राणी को दुःख/पीड़ा/कष्ट नहीं पहुचाना चाहिए, ईश्वर कहते हैं लोग अपने लाभ हेतु सदा दूसरों को कष्ट पंहुचा कर आनंदित होते हैं, उन्हें लगता है कि उन्हें कोई देख नहीं रहा रही, अपनी दुष्टता को अपनी चालाकी मान कर अहंकारवश सदा दुष्कार्य में वो लगे रहते हैं, किन्तु वो दुष्ट प्राणी नहीं जानते कि उन पर उस परम परमेशवर ईश्वर कि दृष्टि है, भले वो लोग अन्य प्राणियों कि आँखों में धुल झोंक कर अपना मतलब हल कर रहे हो, नियमित गलत  कामों में लीन हो कर दूसरों पर दोषारोपण कर रहे हो, विभिन्न प्रकार के व्यभिचार कर रहे हो, झूठे आरोप, दुष्कर, ईर्ष्या, नीचा दिखाना, अपमानित करना इत्यादि कार्य कर के भले वो खुद कि और अन्य लोगों कि नज़रों में श्रेष्ट होने का दावा कर के प्रसन्न हो रहे हो किन्तु वो बुध्हिहीं नहीं जानते कि वो कही भी रहे और कुछ भी करे उन पर सदा उस ईश्वर कि दृष्टि रहती है, ऐसे प्राणियों को दंड इसी जन्म में ही नहीं मिलता अपितु कई जन्मों तक वो इन बुरे कृत्यों को भोगते हैं,

ईश्वर कहते है उन्होंने मानव जीवन केवल हमे अपना उध्धार करने हेतु दिया है, अपने समस्त पापों का प्रायश्चित  करने हेतु दिया है, हमे ये जीवन समस्त प्राणियों कि निःस्वार्थ सेवा, सदाचार, कमजोर और शक्तिहीन कि सहायता, भाई चारा, प्रेम, प्राणी और प्रकृति कि सुरक्षा हेतु दिया है ना कि द्वेष, ईर्ष्या, व्यभिचार, दुराचार, अत्याचार, झूठ, फरेब और अन्य प्रकार कि बुराई में फस कर इस जीवन को बर्बाद करने हेतु दिया है,


ईश्वर कहते है जो लोग इश्वरिये मार्ग को भूल कर निम्न बुराइयों में लगे रहते हैं वो निश्चित ही इस मानव जीवन और उसकी महत्ता को नष्ट कर अपने मोक्ष के दरवाज़े बंद कर युगो युगो तक इस मृत्यु लोक में भटक भटक कर दुःख भोगते है… 



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