Thursday, 7 June 2018

2 lines

"तेरे हुश्न ने मुझे शायर बना दिया
तेरी मोहब्बत ने मुझे कायर बना दिया"

Wednesday, 6 June 2018

कविता-आज लिख दु मैं👌👌👍👍

"दिल के सब ज़ज़्बात आज लिख दु मैं
है जो दिल मे बात उसे आज कह दु मैं

थी दफन मोहब्बत दिल की गहराई में
इस कागज़ पर लहू से आज लिख दु मैं

डरता रहा मैं इस जहाँ से अब तलक जो
है मोहब्बत कितनी उनसे आज कह दु मैं

इश्क में तेरे हुआ कैसा दीवाना ऐ ह्मनशीं
हर बात कागज़ पर ऐसे आज लिख दु में

दिल के सब ज़ज़्बात आज लिख दु मैं
है जो दिल मे बात उसे आज कह दु मैं-2"👍

Copyright@Archana Mishra

Thursday, 24 May 2018

कविता-एक नई ज़मीन और आसमान ढूंढता हूँ मैं



"सदियों से यू प्यासा हूँ बस एक कुआ ढूंढता हूँ
फिर से एक नई ज़मीन और आसमान ढूंढता हूँ

शायद मिल जाये जहाँ में मोहब्बत के निशां
ऐ ज़िन्दगी ऐसा हमनसी और यार ढूंढता हूँ

कम पड़ जाती है ज़िन्दगी बस वफ़ा के लिये
मिले उमर भर वफ़ा  बस वो प्यार ढूंढता हूँ

इश्क में खेलने वाले इन ज़ज़्बातों से मिले बहुत
जो समझे इन ज़ज़्बातों को वो संसार ढूंढता हूँ

मज़हब के नाम पर लड़ ज़ख्म देते हर रोज़ यहाँ
इंसां को इंसा बनादे वो गीता-कुरान ढूंढता हूँ

सदियों से यू प्यासा हूँ बस एक कुआ ढूंढता हूँ
फिर से एक नई ज़मीन और आसमान ढूंढता हूँ-२"

कॉपीराइट@अर्चना मिश्रा




Tuesday, 22 May 2018

चंद अल्फ़ाज़

"मैंने आज इश्क का ये पैगाम लिखा
इस महफ़िल में फिर सरेआम लिखा
कबूल कर न कर मर्ज़ी तेरी हमनशीं
दिल ने धड़कनो पर तेरा नाम लिखा"


"इश्क का दरिया युही बहने दो
दिलकी बात ज़ुबा पर आने दो
न रोको तुम अपने ज़ज़्बातों को
दिल से धड़कन की बात होने दो"



Monday, 21 May 2018

ईश्वर वाणी-255, ईश्वर के द्वारपाल

ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों जैसे तुम किसी बड़े ओहदे वाले व्यक्ति से मिलने जाते हो और सबसे पहले तुम उसके सेवक व दरबान से मिलते हो, जब उसकी इच्छा व उसके मालिक की आज्ञा होती है तब तुम उक्त व्यक्ति से मिलते हो।

वैसे ही मुझ निराकार ईश्वर से मिलने से पहले तुम्हें मेरे द्वारा नियुक्त निम्न दरवानो से मिलना होगा, यद्धपि ये मेरा ही एक अंश है, इन्हें मैंने ही बनाया और अपना दरबान नियुक्त किया ताकि सही व्यक्ति ही मुझ तक पहुँच सके न कि हर व्यक्ति।
देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप तुम मेरे जिन अंशो को मानते व पूजते हो वो तो मुझ तक तुम्हे लाने मात्र का मार्ग प्रशस्त करते हैं, मेरी ही आज्ञा यदि होती है तब तुम्हे मेरे पास लाते है, मेरी ही आज्ञा से तुम्हारे जीवन का दुःख-सुख वो तय करते हैं, यद्धपि मेरे द्वारपाल है वो किंतु पूजनीय प्रत्येक व्यक्ति के लिए उतने ही है जितना मैं हूँ।
 जैसे माता पार्वती से उतपन्न गणेश भगवान को माता ने अपने स्नान ग्रह के बाहर उन्हें द्वारपाल नियुक्त कर ये आदेश दिया कि कोई भी उनकी इच्छा के बिना भीतर प्रवेश न करे, जिसका पालन श्री गणेश ने अपने पिता द्वारा अपना सर कटवा कर भी पूरा किया, ठीक वैसे ही इस संसार के समस्त देवी-देवता देश काल परिस्थिति के अनुरूप मेरी ही आज्ञासे जन्मे व जीव और प्राणी जाती का कल्याण कर मनुष्य को उसके कर्म, उसके जीवन के उद्देश्य, संसार मे उसका पद, उसके कार्य याद दिला कर मुझमे लीन हो गए, किन्तु उनके उस भौतिक स्वरूप और उनके उस भौतिक स्वरूप में दिए वचनों पर चलने व मानने वाले व्यक्ति के लिए उनका वही रूप मेरे द्वारपाल के रूप में उपस्थित हो कर मुझसे मिलने और न मिलने का निर्णय मेरी ही आज्ञा से ले आत्मा को उसके लोक व जन्म का निर्धारण करते हैं।
हे मनुष्यों ये न भूलों मैं ही समस्त जीवों का, समस्त ब्रह्मांड का,कण कण का स्वामी परमेश्वर हूँ, परम*ऐश्वर्य=परमेश्वर। जिसका शाब्दिक अर्थ है
प=प्रथम
र=राजा
म=मैं, महान
ए=एक
श=शक्तिशाली
व=वीर, विशाल अनन्त
र=राज्य
अर्थात संसार का सृष्टि का प्रथम राजा एक इकलौता महानों में महान मैं हूँ, मेरे अतिरिक्त कोई नही, में ही सर्वशक्तिमान शक्तिशाली वीरों में वीर इस सृष्टि रूपी राज्य का स्वामी में ही हूँ।
किंतु अपने समान ही समस्त अधिकार दे कर मैं अपने अंशो को धरती पर देश काल परिस्तिथि के अनुरूप भेजता हूँ, धरती व धरती के समस्त जीवों के कल्याण हेतु, उनके मार्गदर्शन हेतु व सही उद्देश बताने व उनकी ओर अग्रसर करने हेतु। 
तत्पश्चात समस्त जीवों के कल्याण व प्रकति की देखरेख हेतु मनुष्य का जन्म हुआ, मनुष्य को मेरे अंशो द्वारा धरती पर केवल प्राणी व जीव जाती का सेवक अर्थात एक ऐसा राजा नियुक्त किया जो इन पर शाशन नही अपितु इनकी सेवा कर सके, निम्न कार्यो को कर जो मेरे अंशों ने बतलाये उन्हें पूर्ण कर अनन्त जीवन को पाये।

किंतु मनुष्य अपनी शक्ति के मद में सब कुछ भूल बैठा है, और खुद को ईश्वर समझ बैठा है किंतु समय समय पर उसको में याद दिलाता रहता हूँ तुम एक इंसान हो सिर्फ इस धरती व जीवो के सेवक न कि मालिक क्योंकि मैं परमेश्वर हूँ।

कल्याण हो








Wednesday, 16 May 2018

चंद अल्फ़ाज़ अपने लिए

"उफ कितना मासूम है ये चेहरा
रह रह कर चुराता है दिल ये मेरा
देख कर जिसे आता है प्यार मुझे
रिश्ता है मीठी का खुशी से गहरा"

"खुदा ने महनत से संसार बनाया
खुदा ने रहमत से मेरा यार बनाया
चाहे उसे दिल दिन रात युही बस
धड़कन ने उसे यु मन मे बसाया"

ईश्वर वाणी-254, ईश्वर की व्यवस्था

ईश्वर कहते हैं, "संसार में जितने भी प्राणी जितने भी जीव हैं मनुष्य उनसे अलग है, मैंने सभी जीवों के लिए व्यवस्था बनाई थी वो उस पर सदियों से चल रहे है जैसे-शेर हमेशा शिकार ही करता है, वो चाहकर भी सात्विक नही बन सकता (बड़े होने के बाद), मछली जल में ही रहती है, कुत्ता सदियों से वफादारी निभाता आ रहा है, पक्षी  हमेशा आसमान में उड़ते रहे, किन्तु कुछ जल व भूमि पर भी रहते हैं, सदियों से ये सभी प्राणी इस व्यवस्था पर कायम है, किंतु मनुष्य नही।

मैंने मनुष्य को व्यवस्था के अनुरूप समस्त प्राणियों की रक्षा हेतु भेजा था, जगत का व समस्त जीवों का सेवक बनने हेतु भेजा था, एक राजा का पद उसे दिया था जो अपनी प्रजा का पूर्ण ध्यान रख सके, एक राजा प्रजा का स्वामी नही सेवक होता है किंतु मनुष्य खुद को धरती का और सभी जीवों का स्वामी बन बैठा और मेरी बनाई व्यवस्था को नष्ट करने लगा।

निश्चित ही में मानव को दंड दूँगा और देता भी रहा हूँ किंतु मानव फिर से शक्ति के अभिमान में आ कर मेरी बनाई व्यवस्था को नष्ट करने में लगा है और यही एक कारण है मानव खुद अपने ही विनाश का कारण होगा।

हे मनुष्यों यही कारण है पृथ्वी के इस सबसे बुद्धिमान जीव की एक ही जाती मनुष्य जाति हो कर भी न सभी की भाषा एक है न रीति रिवाज, न रहन सहन और न पहनावा, यहाँ तक कि वो मुझे भी अनेक नाम व रूपो में इंसानी व्यवस्था के अनुरूप बाट कर आपस में लड़ते रहते हैं।

संसार में मनुष्य ही प्राणी ऐसा है जो एक जैसा हो कर भी एक दूसरे से कितना भिन्न है, ये भिन्नता खुद उसी ने बनाई है न कि मैंने, केवल मनुष्य ही है जो मेरी व्यवस्था से अलग खुद को ईश्वर समझ बैठा है और अपनी जाति में भी वहम फैला रहा है, मेरे द्वारा जो कार्य उसे दिया गया उसका गलत दिशा में उपयोग कर स्वार्थ सिद्धि में लगा है, किन्तु अन्य जीव मेरे द्वारा बनाई व्यवस्था पर सदियों से चलते आ रहे हैं और चलते रहेंगे, इस कारण अपनी  ही मनुष्य द्वारा बनाई व्यवस्था के साथ खुद ही अपनी जाति के विनाश का कारण होगा।

कल्याण हो