एक सदी से इंतज़ार था किसी का
जिससे कुछ दिल की बात कह तो ले
इंतजार था बस उस एक हमनशीं का
जिसके कंधे पे सर रख कर रो तो ले
है आज भी तन्हा बीते कल की तरह
न मिला जिससे हाल ए दिल कह तो ले
जिसको बनाना चाहा राजगार दिलका
चला गया कहकर तेरा दर्द हम ले क्यों ले
है अल्फाज़ बहुत सारे बयां करने को
कोई नही ऐसा जो इन्हे कभी सुन तो ले
खुद रोते हैं खुद ही अश्क पोछ लेते है
मेरे रोने की वज़ह काश कोई पूछ तो ले
रोज़ टूटते है रोज़ बिखरते है जिनके लिए
काश कभी यु बिखरा हुआ मुझे देख तो ले
मेरी नई कविता
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Sunday, 2 June 2024
Friday, 24 May 2024
देश के नाम कविता
अर्ज़ किया है..
"चलो इस बार कुछ ऐसा काम कर जाए,
कूड़ा बहुत है देश मे मेरे उसको साफ कर आये,
अंधभक्तो ने साहब के साथ मिल के फेलाई जो गंदगी
इस बार वोट किसी सही आदमी को दे आये
बाट दिया इंसा को इसां से जिंहोंने आज
ऐसे गद्दारो को अब देश से बाहर कर आये
नफरत बहुत फेल चुकी मजहब् के नाम पर
अब फिर से दिलो मे मोहब्बत फेला आये
वो बैठे मेरे घर दीप दिवाली के जलाये फ़िर
हम इनको भी आज ईद मुबारक कह आये"
Thursday, 9 May 2024
दर्द भरी शायरी
Archana Mishra:
१-"ख्वाइशें कभी बहुत थी तुझसे,पर वक़्त के साथ वो भी नही रही
शिकायते कभी बहुत थी तुझसे,
पर वक़्त के साथ वो भी नही रही"
२-"दिल की बात सिर्फ अपनो से की जाती हैं,
शिकायते गेरो से नही अपनो से हो जाती है,
अब शिकायतों का हक भी छूट गया तुझसे,
क्योंकि उम्मीदें सिर्फ अपनो से की जाती है!!"
Monday, 1 April 2024
तन्हा सी ज़िंदगी....
Meri nayi rachna
तन्हा सी ज़िंदगी में, एक सहारा ढूँढते है
गमो में डूबे पर "खुशी" का किनारा ढूंढते हैं
दर्द दिल मे छिपा, मुस्कुरा रही है "मीठी"
जो समझ सके दर्द, वो साथी हमारा ढूंढते हैं
किसको बताये गम अपना, किसे समझाए
बिन कहे समझ सके, वो राही प्यारा ढूंढते है
बिखर चुके, अरमानो की माला के ये मोती
फ़िर से पिरो सके, इन्हे वो नजारा ढूंढते है
अकेले मे रोते, तड़पते बेहिसाब हैं जनाब
समझ सके इन, आँसुओ को ,वो द्वारा ढूँढते हैं
खो चुके जीने की, उम्मीद, मौत का इतज़ार है
जो बहा ले जाए ,गमो से दूर, वो धारा ढूँढते हैं
तन्हा सी ज़िंदगी........
Monday, 26 February 2024
Romantic shayri
"आज कुछ मुझे, ऐसे खो जाने दो
हर दूरी को तुम, अब मिट जाने दो
शर्म और हया के, बंधन तोड़ कर
साँसों को साँसों से, अब मिल जाने दो"
Sunday, 11 February 2024
भूत कौन होते हैं???? लेख
हम सबने भूतों के बारे मे बहुत सुना है, किसी किसी ने इन्हे देखा भी है ऐसा दावा करते है (मैंने भी देखा है, अपना अनुभव है)। आज जानेंगे ये होते कौंन है??
ये वह जीवात्मा होती है जो एक समय सीमा के फेर मे फस चुकी है, ये वो आत्माये होती है जो अपनी मृत्यु को अभी तक स्वीकार नही पायी है, और अपने अतीत मे ही रहना चाहती है, किंतु जब अपने से आगे का वक्त और लोगो वो देखती है तो घबराने लगती है, वो ये बताने की कोशिश करती है की सत्य तुम और तुम्हारा ये वक़्त नही बल्कि ये है, और इसी प्रयास के चलते जब वो आम लोगों से संपर्क साधने मे सफल हो जाती है तब जीवित लोगो को लगता है कोई अद्रश्य शक्ति उन्हे परेशां कर रही जबकि अधिकतर ये आत्माये नुकसान नही पहुँचना चाहती बस अपनी उपस्तिथि और वो सही है ये बताने हेतु संपर्क करती है।
कुछ आत्माये अपने समय से पूर्व जब देह त्याग देती है तब वो अपने सही समय के आने तक वो भटकती है तो कुछ अपनी अधूरी इच्छा पूर्ति होने तक, तो कुछ अपनी इच्छा से वर्षों तक भटकती है।
कुछ आत्माये देह त्यागने के बाद भी भले वो time zone में फँस गयी है किंतु भौतिक सुख की लालसा इन्हे बहुत होती है इसलिए किसी के शरीर मे अपना आशियाना बना कर भौतिक सुख प्राप्त करती है।
तांत्रिक इन बेबस आत्माओ को इस time लूप से बाहर निकालने का वादा कर के अपने कार्य करवाते हैं और इनका शोषण करते, इन्हे अन्य लोगों को सताने का कार्य करवाते हैं।
हर धर्म मे मृत्यु के बाद इस time zone se बाहर निकलने हेतु भिन्न भिन्न संस्कार की व्यवस्था है, किँतु फिर भी ये आत्मा की विभिन्न अवस्थाओ pr निर्भर करता है कि वो मुक्त होना चाहती है कि नही।
संचिप्त में इतना कह सकते हैं time लूप मे फंसी जीवात्मा है bhoot-pret कहलाती है।
जय माता दी
धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति- लेख
एक आध्यात्मिक व्यक्ति और धार्मिक व्यक्ति मे बहुत फर्क होता है, आमतौर पर दोनों को एक समझ लेते हैं जैसे- भगवान्, परमात्मा, देवता, और ईश्वर को, किँतु ये सब अलग है, ठीक वैसे ही धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति मे फर्क है,।
धार्मिक व्यक्ति चाहे जिस भी धर्म का हो, वही पुरानी धार्मिक किताबो पर लिखें हुए पर चलता रहता है, खुद कभी सवाल नही करता, ईश्वर से जुड़ कर कभी परम सत्य जो उस किताब मे नही लिखा या पडा उसके बाहर जानने की चेष्टा नही करता, उसने अपनी सोच को एक सीमा मे कैद किया है और वो उससे बाहर निकलना ही नही चाहता, जो परंपरा विरासत मे मिली उसको ही निभा रहा है ये जाने बिना की क्या ये सत्य है भी, पर चला रहा उस परंपरा को।
एक मिथ जो सदियों से फेलाया हुआ है की महिलाएं मासिक धर्म मे अशुद्ध होती है, इसलिए पूजा नही कर सकती, खाना नही बना सकती, और महिलाएं इस झूठ को सदियों से ढो रही है और आगे भी ढोती रहेंगी।
लेकिन आध्यात्मिक व्यक्ति पुरानी रुदीवादी इस सोच का खंडन करता है, आध्यात्मिक व्यक्ति सिर्फ किसी किताब, मूर्ति या धार्मिक स्थल तक सीमित नही, उसकी सोच व्यापक होती है, वो जिस समुदाय मे जन्म लेते हैं, वहा मौजूद बुराई को खत्म करने का कार्य करते, अपने समुदाय से बुराई मिटाने के लिए गलत को गलत बोलने का साहस रखते हैं न की धर्म का चोगा ओड कर इस परंपरा को आगे बढ़ाते हैं, धीरे- धीरे उनकी बात से जो व्यक्ति सहमत होते जाते हैं वो जुड़ते जाते हैं, उनका एक समूह बन जाता है, नतिजतं परंपरवादी सोच के व्यक्ति उन्हे अपने अपने समुदाय से बेदखल कर देते हैं, प्रताड़ित करते हैं जैसे प्रभु येशु को यहूदियों ने किया, बुद्ध को हिंदुओं ने अपने समुदाय से पृथक कर दिया, महावीर को भी हिंदुओं ने ख़ुद से पृथक कर दिया, क्योंकि इन्होंने धार्मिक विचारधारा को नही बल्कि आध्यात्मिक सोच और विचारधारा को अपनाया।
वही मीरा बाई को देखिये, कृष्ण भक्ति मे डूबी एक महिला, बहुत से तो उसको द्वापर मै किसी गोपी का रूप तक कहते हैं, उसने परंपरवादी सोच को अपनाया, मूर्ति पूजा की, कुछ नया समाज के सामने नही लाई, वही रटी रटाई धर्मिकता दिखाई इसलिए हिंदू बहुत मानते हैं।
किंतु यहाँ एक समस्या और है, जो व्यक्ति आध्यात्मिक हो जाता है, उसकी सोच से जो समाज प्रभावित हो जाता है, वो उस आध्यात्मिक व्यक्ति को ही धर्म बना लेता है, प्रभु येशु ने न बाईबल लिखी न ईसाई धर्म बनाया, न भगवान् बुद्ध ने कोई धर्म बनाया, अपितु इन्होंने आध्यात्मिक परम सत्य से जग को परिचित करवाने का प्रयास किया तो लोगों ने इनको ही धर्म बना दिया
यही मुख्य अंतर है धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति मे, धार्मिक व्यक्ति को धर्म के नाम पर मूर्ख बड़े आसानी से बनाया जा सकता है क्योंकि उसकी अपनी कोई सोच समझ नही, लेकिन आध्यात्मिक व्यक्ति को धर्मिकता और ईश्वर के नाम पर मूर्ख नही बनाया जा सकता क्योंकि वो सवाल करना जानता है, उसने रट्टा मार के ज्ञान हासिल नही किया अपितु गहन साधना और सवाल जवाब द्वारा ज्ञान हासिल किया है, इसलिए उसको मूर्ख नही बनाया जा सकता, आध्यात्मिक व्यक्ति जाती, धर्म, संप्रदाय, भाषा, वेश भूषा इत्यादि से परे सत्य का साथ देता है, निरंतर खोज मे रहता है किंतु धार्मिक व्यक्ति सीमित सोच रखता है और उसको ही सत्य मानता है।
एक कविता जो बचपन मे पड़ी थी वो धार्मिक व्यक्तियों के लिए है
"सबसे पहले मेरे घर का अंडे जैसा था आकार
तब मै यही समझती थी की इतना सा ही है संसार"
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