Friday 6 January 2017

kavita


"hai kitna masoom ye chehra tumhara,
khushnasib hu main tu hai hamara,

poori hui meri dua Jo mujhe tu mila,
ab is jivan ka ek tu hi hai sahara,

sunese is aagan mein kadam Jo tere pade,
sukhi is sarita ka kewal tu hai kinara,

tanhaiyo mein beete Jo mere subah shaam,
tumse milkar nahi ab ye dil hai bechara,

tujhse prit laga tujhpe vaare jaau,
aa meri baaho mein dekh ham hai nahi awara"

Thursday 5 January 2017

ईश्वर वाणी-१८०, अतिसूछ्म मैं 'ईश्वर' हूँ

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों जैसे आत्मा के बिना जीवन सम्भव नही है किंतु ये भी एक परम सत्य है ये दिखती भी नही है किंतु इसके अस्तित्व को तुम नकार भी नही सकते!!

शरीर के सभी अंग आंतरिक और बाहरी वो सभी देखे जा सकते हैं, उन सभी का अपना एक आकार है, कौन सा अंग कहॉ है ये जाना जा सकता है किंतु आत्मा का क्या आकार है, शरीर के किस भाग मैं रह कर संपूर्ण शरीर को संचालित करती है ये तुम नही जान सकते किंतु आध्यात्मिक ग्यान से इसे जाना जा सकता है, आत्मा शरीर का अति सूछ्म तत्व है जिसके बिना जीवन ही नही है, पूरे भौतिक शरीर को चलाने वाली और जीवन दे कर भौतिक काया को मिटने से बचाने वाली आत्मा ही है!!

हे मनुष्यों जैसे आत्मा के बिना किसी भी जीव का जीवन संभव नही है, उसे जीवन दे माटी में मिलाने से बचाने वाली अतिसूछ्म आत्मा है वैसा ही अतिसूछ्म मेरा स्वरूप है, संपूर्ण ब्रह्माण्ड को चलाने वाला मैं अजन्मा अविनाशी 'ईश्वर' हूँ, मैं ही आत्माऔं मैं परम हूँ इसलिये परमेश्वर हूँ,  मुझे तुम भौतिक अॉखों से नही अपितु श्रध्धा, भक्ति और विश्वास के साथ जो नियम मैंने  मानव जाती के लिये बनाये हैं उनपर चलकर ही मुझे देखा जा सकता है,

हे मनुष्यों जैसे आत्मा भौतिक अॉखों से दिखायी नही देती किंतु उसके बिना जीवन ही संभव नही, वैसे ही तुम मुझपर यकीं करो अथवा नही श्रष्टी सम्भव नही, मैं ही आकाशिय दिव्य अनंत सागर हूँ जिसने  सभी  ग्रह नक्षत्रौ को थाम रखा है जो एक गति मैं ब्रह्माण्ड मैं एक निश्चित दूरी पर विचरण करते हैं, अनंनत आकाश मैं तैरते हुये कभी आपस मैं नही टकराते, इन सबका चलाने वाला पालन करने वाला जीवन देने वाला श्रष्टी की रचना करने वाला, भूतकाल, भविष्यकाल, वर्तमान तीनो कालों को बनाने वाला, दिन रात बनाने वाला वायु दे जीवन  देने वाला अतिसूछ्म, निराकारी, अनंनत, अविनाशी मैं 'ईश्वर' हूँ!!"

कल्याण हो

Wednesday 4 January 2017

ईश्वर वाणी-१७९,आत्मा को संवारो

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यध्यपि तुम मेरा कभी नाम न लो, कभी मुझपर आस्था भी न रखो, यध्यपि तुम मेरी आलोचना भी तुम करो किंतु कभी किसी नरीह जीव को न सताओं, किसी की हत्या न करो, किसी की ईर्ष्यावश निंदा न करो, निर्बलों की सहायता बड़ों को सम्मान दो, दूसरों से अपने समान ही प्रेम करो, प्रक्रति व प्राणी जाती की सदा रक्छा करो!!

हे मनुष्यों यदि तुम ये करते हो जो मैंने तुम्हें कहा इससे तुम्हारी आत्मा शुध्ध होती है, किंतु तुम ऐसा नही करते तो तुमेहारी आत्मा मलिन होती है, तुम मेरी आलोचना करो एसा करने से केवल तुम्हारा भौतिक स्वरूप ही मलिन हुआ किंतु निम्न कार्यों से आत्मा पावन हुई!!

हे मनुष्यों आत्मा का पहले पावन होना अतिमहत्वपूर्ण है, आत्मा के पवित्र होने जो तुम्हारे कर्मों से होती है मेरा प्रिय बनाती है, यध्धयपि तुम मेरी चाहे कितनी ही आलोचना कर लो, जैसे यदि किसी बालक के माता पिता की तुम कितनी ही निंदा करते हो किंतु जब उसके बालक को किसी मुसीबत मैं देखते हो उसकी दौड़ कर सहायता करते हो, ये देख कर अमुक व्यक्ति ये भूल जाता है कि तुम उसके घोर निंदक हो और तुम्हारी उसके प्रति कटु भावना भुला तुमसे प्रेम भाव रखने लगता है!!

हे मनुष्यों ऐसे ही मैं तुम सबका जनक हूँ, तुम सब मेरे बालक हो, ऐसे मैं घोर निंदक मेरा कोई भी हो किंतु मेरे बताये मार्ग पर चल प्रक्रति व प्राणी कल्याण के कार्य करता है मेरा प्रिय बनता है तभी मैं कहता हूँ मुझे केवल अपनी बुराई दे दो अपनी हर कमी दे दो, बदले मैं वो मुझसे लो जो तुम्हें मेरा प्रिय बनाता है!!

हे मनुष्यों ये न भूलो तुम्हारी आत्मा का घर ये भौतिक शरीर है, यदि तुम मुख से जिह्वा से मेरा नाम लेते हो किंतु अनेक बुरे कर्मों में लिप्त हो तो तुम्हारी आत्मा मलिन किंतु ये भौतिक शरीर और जिह्वा पावन होगी, किंतु यदि तुम मेरी आलोचना निंदा कर ह्रदय से जगत व प्राणी कल्याण के कार्य करते हो तुम्हारी आत्मा शुध्ध होती है जैसे- किसी घर मैं रहने वाले लोग खुद तो साफ सुथरे सवरें हुये हो किंतु अपना घर साफ न रखते हो फिर भी जहॉ जाते हो अपने व्यक्तित्व के कारण हर कोई पसन्द उन्हे करने लगता हो,

    वही यदि तुम अपना घर तो साफ सुथरा संवरा हुआ रखते हो किंतु खुद मलिन रहते हो, ऐसे मैं जो भी तुमसे मिलेगा घ्रणा करेगा कि तुम कितने मलिन रहते हो, लोग एक बार तुम्हारे घर की गंदगी को नज़रअंदाज़ कर सकते तुम्हारे उस सुंदर रूप को देखकर किंतु रूप ही मलिन कर लिया फिर घर को कितना ही संवार कर रख लो सम्मान न कहीं पाओगे,

हे मनुष्यों संभव हो तो भौतिक शरीर रूपी घर और अत्मा रूपी तुम इस घर के वासी दोनो ही पावन बनो ताकी मैं और समाज तुम्हें दोनों ही रूपों मैं प्रेम करे किंतु ये संभव न हो तुम्हारे लिये तो आत्मा रूपी इस घर के वासी को सदा सदगुणों से संवार कर रखना, ये संवरा हुआ रूप ही तुम्हे मेरा प्रिय बनाता है!!"

कल्याण हो




Tuesday 3 January 2017

ईश्वर वाणी-१७८, धार्मिक ग्रंथ

ईश्वर कहत् है, "हे मनुष्यों युँ तो तुमने अनेक धार्मिक ग्रंथ पड़े होंगे उनसे बहुत कुछ सीखा होगा, किंतु ये ग्रंथ केवल देश/काल/परिस्तिथीयों में मेरे द्वारा भेजे धरती पर मेरे ही अंश द्वारा कही गयी बातों का सक्षिप्त सारांश मात्र है,

हे मनुष्यों हर एक धार्मिक ग्रंथ मैं केवल मेरे ही अंश विशेष का वर्णन मात्र है जैसे - शिव महापुराण मैं भगवान शिव का, श्रीमदभागवत मै श्री क्रष्ण का, बाईबल मैं जीसस का, किसी भी धार्मिक ग्रंथ का अध्धयन तुम करो केवल तुम्हे विशेष वर्णन ही तुमहें मिलता है,

हे मनुष्यों इसलिये केवल इनका अध्धयन मात्र ही तुम्हे आध्यात्मिक ग्यान दे संभव नही है, आध्यात्मिक ग्यान एक श्रेष्ट गुरू अथवा मैं ही तुम्हें दे सकता हूँ"

कल्याण हो 

ईश्वर वाणी-१७७, देह बंधन

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों संसार मैं दुख का कारण देह मोह में पड़ना ही है, मनुष्य मेरी उपासना और मुझसे प्रेम न कर भौतिक रूप से जिनसे जुड़ा है उनसे प्रेम व मोह रखता है, मुझे तो  केवल संकट के समय ही याद करता है, ये ही दोहरा चरित्र मावन के दुख का कारण है,

हे मनुष्यों ये सत्य है मैं ही तुम्हें मोह मैं डालता हूँ ताकी तुम किसी को हानी ना पहुँचा कर प्रेम व भाईचारे के साथ धरती पर रहो किंतु मैं ही तुम्हें  मोह मैं ना पड़ने की बात कहता हूँ,

हे मनुष्यों तुम न अपने भौतिक स्वरूप, धन, सम्प्रदा, संतान का मोह न करो, ये भौतिक है और एक दिन मिटने वाला है, इसलिये मोह रखो तो आत्मा से जो कभी नही नष्ट होती सदा तुम्हारे साथ तुम्हारे पास रहती है तुम खुद भी एक आत्मा हो जिसे निम्न कार्यो के लिये ये भौतिक घर दिया है जैसे कार्य पूर्ण घर खाली कर दूसरा आशियाना तुम्हें मिल जाता है,

हे मनुष्यों इस जीवन मैं तुम जिससे मिले जिससे जुड़े भावात्मक लगाव हुआ और एक दिन वो चला गया, ये सब तो उस परम मिलन का छोटा सा सारांश ही था जो तुम्हें अपने भौतिक देह को त्याग आत्मिक रूप मिलने वाला है,

हे मनुष्यों भौतिक देह त्यागने के बाद भी व्यक्ति मैं उपर्युक्त व्यक्ति के प्रति जब प्रेम की भावना व मिलन की प्रबल इच्छा होती है तब उनकी आत्माऔ का मिलन होता है और जहॉ भी जन्म ये फिर लेते है एक ही स्थान पर लेते है साथ ही सदा सारी उमर एक दूसरे से प्रेम करते है,

किंतु यदि एक व्यक्ति दूसरे के देह त्यागने से पहले ही (मुक्ति प्राप्त कर) जन्म ले लेता है तब भी दूसरी भी वही जन्म लेता है जहॉ अमुक पैदा हुआ था,

हे मनुष्यों इसलिये देह का मोह लोभ न कर ये तो कितनी बार तुझे मिला है कितनी बार नष्ट हुआ है और जिनहें तू अपना कहता है उनमें से कुछ तेरे पहले के अपने है और कुछ आगे तेरे अपने होंगे,

हे मनुष्य यदि सच्ची श्रध्धा तुम मुझ पर रखो तो इस सत्य को जान और आत्मसात कर भौतिक देह के बंधन ठुकरा मुझसे प्रीत लगा मोझ को पाप्त कर परधाम में स्थान पाओगे"


कल्याण हो



Saturday 31 December 2016

ईश्वर वाणी-१७६, आत्मा का वस्त्र शरीर

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यो ये भौतिक शरीर तो केवल तुमहारी आत्मा को बाहरी रूप की बुराईयों से ढ़कने के लिये ही केवल है जैसे तुम वस्त्र धारण करते हो न कि शरीर नग्न होने से बचाने के लिये अपितु बाहरी गंदगी से बचाने के लिये!!

हे मनुष्यों वैसे ही आत्मा को मैंने शरीर रूपी वस्त्र दिया है ताकि वो न खुद को नग्न होने से बचा सके अपितु बाहरी बुराई रूपी गंदगी से इसकी रक्षा कर सके,
हे मनुष्यों जैसे तुम अपनी आर्थिक स्थिति के अनूरुप वस्त्र खरीदते हो वैसे ही आत्मा अपने जन्म जंमांतर के कर्म अनुसार ही देह प्राप्त करती है, तभी संसार मैं अनेक रूप रंग व आकार के जीव है यहॉ तक की मानव ही एक  सा नही, कोई बहुत सुंदर और कोई कुरूप किंतु समस्त जगत मेरे द्वारा ही रचा गया है इसलिये मेरे लिये कोई कुरूप नही जैसे बच्चे चाहे कितने ही बुरे वस्त्र धारण कर लें किंतु माता पिता के सदा प्रिय ही रहते है,

हे मनुष्यों तम सब जीव जंतु मुझे बहुत प्रिय हो क्योकि मैने तुम सब को जन्म दिया  है, सभी जीवों को जन्म देने वाला जीवन व पालन करने वाला समस्त ब्रह्माण्ड का रचियता मैं ईश्वर हूँ!!"

कल्याण हो

मुक्तक

"कल का सूरज एक नया साल लायेगा
कुछ खट्टे कुछ मीठे से वो पल लायेगा
भुला न देना इस बरस को जब हम मिले
आने वाला लम्हा फिर न ये कल लायेगा"

"कुछ खट्टे कुछ मीठे-मीठे  पल दे गया  कोई
जीने  की फिरसे एक वज़ह मुझे दे गया कोई
खुद तो चला गया यहॉ से गुज़रे साल की तरह
जीवन का फिर ये नया साल मुझे दे गया कोई"