Thursday 5 January 2017

ईश्वर वाणी-१८०, अतिसूछ्म मैं 'ईश्वर' हूँ

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों जैसे आत्मा के बिना जीवन सम्भव नही है किंतु ये भी एक परम सत्य है ये दिखती भी नही है किंतु इसके अस्तित्व को तुम नकार भी नही सकते!!

शरीर के सभी अंग आंतरिक और बाहरी वो सभी देखे जा सकते हैं, उन सभी का अपना एक आकार है, कौन सा अंग कहॉ है ये जाना जा सकता है किंतु आत्मा का क्या आकार है, शरीर के किस भाग मैं रह कर संपूर्ण शरीर को संचालित करती है ये तुम नही जान सकते किंतु आध्यात्मिक ग्यान से इसे जाना जा सकता है, आत्मा शरीर का अति सूछ्म तत्व है जिसके बिना जीवन ही नही है, पूरे भौतिक शरीर को चलाने वाली और जीवन दे कर भौतिक काया को मिटने से बचाने वाली आत्मा ही है!!

हे मनुष्यों जैसे आत्मा के बिना किसी भी जीव का जीवन संभव नही है, उसे जीवन दे माटी में मिलाने से बचाने वाली अतिसूछ्म आत्मा है वैसा ही अतिसूछ्म मेरा स्वरूप है, संपूर्ण ब्रह्माण्ड को चलाने वाला मैं अजन्मा अविनाशी 'ईश्वर' हूँ, मैं ही आत्माऔं मैं परम हूँ इसलिये परमेश्वर हूँ,  मुझे तुम भौतिक अॉखों से नही अपितु श्रध्धा, भक्ति और विश्वास के साथ जो नियम मैंने  मानव जाती के लिये बनाये हैं उनपर चलकर ही मुझे देखा जा सकता है,

हे मनुष्यों जैसे आत्मा भौतिक अॉखों से दिखायी नही देती किंतु उसके बिना जीवन ही संभव नही, वैसे ही तुम मुझपर यकीं करो अथवा नही श्रष्टी सम्भव नही, मैं ही आकाशिय दिव्य अनंत सागर हूँ जिसने  सभी  ग्रह नक्षत्रौ को थाम रखा है जो एक गति मैं ब्रह्माण्ड मैं एक निश्चित दूरी पर विचरण करते हैं, अनंनत आकाश मैं तैरते हुये कभी आपस मैं नही टकराते, इन सबका चलाने वाला पालन करने वाला जीवन देने वाला श्रष्टी की रचना करने वाला, भूतकाल, भविष्यकाल, वर्तमान तीनो कालों को बनाने वाला, दिन रात बनाने वाला वायु दे जीवन  देने वाला अतिसूछ्म, निराकारी, अनंनत, अविनाशी मैं 'ईश्वर' हूँ!!"

कल्याण हो

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