Saturday 14 January 2017

ईश्वर वाणी-183, अतुल्य संस्कृति

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यूँ तो तुम्हें में पहले भी चारों युग की जानकारी दे चूका हूँ। किंतु आज आदि सतयुग के विषय के बारे में थोड़ी और जानकरी देता हूँ।

हे मनुष्यों आदि सतयुग वो 'काल' जब संसार में जीवन आ ही रहा था, उस समय इस धरती पर कोई मृत्यु भी नहीं होती थी, सभी जीव प्रेम और भाईचारे से रहते थे, उस समय धरती को मृत्यु लोक का नाम भी नहीं दिया गया था, सभी जीव एक समान ही थे, किसी भी तरह का न भेद भाव और न कोई बुराई थी, सभी आत्माए एक दूसरे का सम्मान करती थी,

हर एक जीव खुद को देह और अन्य को भी देह से नहीं अपितु आत्मा से अपना मानता था, हर तरफ केवल जीवन ही जीवन था।करोडो वर्षो तक ये सब ऐसे ही चलता रहा, बिना किसी बुराई के सभी जीव खुद को एक पवित्र आत्मा मान धरती की रक्षा कर इसे पावन करती रही,

किन्तु सतयुग के समापन और त्रेता के शुरू होने से पूर्व जीव आत्माओ में अनेक बुराइयां उत्पन्न होने लगी, देह के अभिमान में आ कर शक्तिशाली निर्बल को दबा कर उन पर शाशन करने की कोशिश करने लगा।।

किन्तु हे मनुष्यों आदि सतयुग में जहा धरती अनेक खंडो में न बट कर एक ही थी और अथाह सागर दूसरी तरफ,प्राणी जाती के आपसी बेर को देख कर सतयुग के आखिर और त्रेता युग के शुरुआत में भयन्कर भूस्खलन हुआ, फलताह जहाँ कभी भूमि थी वहाँ सागर आ गया और सागर के स्थान पर भूमि, कई जीव इस परिवर्तन को न झेल सके और मृत्यु को प्राप्त हुए, इस प्रकार धरती का नाम मृत्युलोक पड़ा, हर एक काल के बाद इसमें भारी परिवर्तन होता है जिसमे कई प्राणी मृत्यु को प्राप्त होते है, ये क्रिया है जो चलती रहती है साथ ही त्रेता से कलियुग तक सदा जीवन और मृत्यु साथ साथ चलेंगे।

हे मनुष्यों सतयुग आखीरी चरण व् त्रेता के प्रारंभिक चरण से ही मानव ने अपने समुदाय हेतु कुछ व्यवष्ठए और नियम बनाये ताकि कोई किसी का अहित न कर सके

हे मनुष्यों जब सतयुग के आखिर और त्रेता युग के शुरू में भूस्खलन हुआ और नए दीपो का उदय हुआ, वहाँ जो मानव जीवित बचे समय और परिस्तिथि के  अनुसार सभी ने कुछ नियम व् व्यवस्था बनायीं।

हे मानवो यही आगे चल कर रीति रिवाज़ व् संस्कृति कहलायी, समय के साथ बोली बदली भाषा बदली, सब कुछ काल के अनुसार हुआ। किन्तु जब जब जहाँ जहाँ मानव ने अपनी शक्ति के मद में आ कर मेरी सत्ता को चुनोती दी और प्रकति और प्राणी जाती का दोहन किया मैंने ही अनेक स्थानों पर एक अंश के रूप में उन स्थानों पर जन्म लिया।

हे मनुष्यों ये सब जान लेना तुम्हारे लिए अति आवश्यक है क्योंकि तुम ये अभिमान नहीं कर सकते की तुम्हारी संस्कृति सबसे प्राचीन है क्योंकि देश काल परिस्तिथि के अनुसार सारी संस्कृति ही प्राचीन है अतुल्य है किन्तु समय के अनुसार हर सभ्यता संस्कृति में बदलाव तो हुआ है और आगे भी होता ही रहेगा, जो जैसा है हमेशा वैसा नहीं होगा, इसलिए केवल खुद की संस्कृति को प्राचीन न बोल और घमंड मत दिखा, सब सामान है सब श्रेष्ठ है ये याद रख।

कल्याण हो

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