Sunday 29 January 2017

ईश्वर वाणी-१९०,जन्म जनम


ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों जैसे किसी भी
जीव का जन्म उसके पिछले जन्म
के कर्म अनुसार होता है वैसे ही उसके कर्म
ही तय करते है देह त्यागने के
बाद उसे क्या बनना है।
हे मनुष्यों जिसे तुम मृत्यु समझ अंत मान लेते हो ये मृत्यु
नही अपितु ये
तो एक नया जन्म है।
जीव जब भौतिक देह धारी होता है, वो जैसे
कर्म करता है वैसे ही देह
त्यागने के बाद उसे क्या बनना है उसके भौतिक देह पर निर्भर है।
इसके साथ ही समस्त ग्रहो की दशा भौतिक
देह और जीवन पर प्रभाव डालती है
वैसे ही उस जीवन पर भी प्रभाव
डालती है, कर्मो के अनुसार ग्रहो की दशा तय
करती है कोन क्या बनेगा।
हे मनुष्यों कर्म व् गृह-नक्षत्र ये तय करते हैं की
भौतिक देह त्यागने
वाली आत्मा क्या और कौन बनेगी, अर्थात
पुण्य कर्म और श्रेष्ट नक्षत्र
धारी उदार हृदय धारी पित्र लोक जा कर सुख
की भागी बनती है। वही
अनेक बुरे9
कर्म वाली आत्मा भूत, पिशाच, प्रेत
आदि कई बुरे जन्म
ले कर लाखो वर्ष तक
भटकती रहती है, आयु इनकी
इच्छा पूर्ण से ले कर एक लाख वर्ष तय है।
देश, काल, परिस्तिथि के अनुरूप भूत, पिशाच, प्रेत, पितर को अनेक
नाम
व्यक्ति द्वारा भले दिए गए हो किन्तु है सब एक ही,
भौतिक देह के तुरंत
बाद का ये पुनःजन्म है।
इस प्रकार आत्मा की कभी म्रत्यु
नही होती, वो अमर है, सदा कही
न कहि किसी न किसी रूप में  जन्म
लेती रहती है।
हे मनुष्यों ये सदा याद रखना केवल देह के साथ धरती पर आना ही केवल जन्म नही है, देह के बाद भी जन्म है तभी तो कहा जाता है आत्मा अजर अमर है। 
कल्याण हो''

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