Tuesday 17 January 2017

ईश्वर वाणी-१८५, जगत का पिता

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों युँ तो मैं निराकार हूँ, किंतु जब जब मानव द्वारा मानवता की हानी हुई मैंने ही अपने एक अंश को इसकी रक्छा हेतु भेजा, मैने ही उसे बताया देश, काल, परिस्तिथी के अनसार क्या व्यवहार करना है, कैसा ग्यान प्राणी जाती के कल्याण हेतु देना है, ऐसा ग्यान जब दुनियॉ में जाये तो सबका हित करे,

'एक ज़मीदार था, उसके बहुत सारी जमीन थी, कई गॉव उसके अधीन थे, पहले तो गॉव के लोग उसका सम्मान करते थे, वह इस सम्पूर्ण भुमी का स्वामी है ये कहते थे, उन्हें ये भी मालूम था आखिर ज़मीदार ने उन्हें ये भूमी रहने के लिये इसलिये दी है ताकी इसकी उचित देखभाल कर सके और ज़मीदार अन्य कार्य अपने पूर्ण कर सके,


किंतु समय के साथ ज़मीदार की इस जमीन पर रहने वालों के मन मैं पाप आ गया, वो खुद को ही इसका स्वामी मानने लगे, ज़मीदार को वह कुछ नही समझने लगे, इस प्रकार ताकतवर कमज़ोर को दबा कर उसका शोषण करने लगे, पहले तो ज़मीदार ने सोचा उन्हें समझ आ जायेगी क्यौकि ये भूमी तो उसी की है, उन्हें अहसास हो ही जायेगा इसका असली स्वामी मैं ही हूँ!


किंतु ऐसा नही हुआ और स्तिथी बुरी से बुरी होती गयी, तब ज़मीदार ने सोचा अब समय आ गया है जब गॉव वालों को बताया जाये कि इस भूमि का असली मालिक कौन है और आखिर क्यौ उन्हें यहॉ रहने की अनुमति दी गयी है, इसके लिये ज़मीदार ने अपने एक पुत्र को उस स्थान पर भेजा, उसने बताया कि ये भूमी उसके पिता की है और किसलिये तुम सभी को इस गॉव मैं भेजा गया है, कुछ लोगों ने उस पर विश्वास किया कि ये स़च में ज़मीदार का पुत्र है, जो कमजोर असहाय और शक्तिशालीयौं द्वारा सताये गये थे उन्होने सहर्ष स्वीकार लिया की ये जमीन के स्वामी का पुत्र है किंतु शक्तिशाली शकिति के अहंकार मैं आ कर खुद को ही यहॉ का स्वामी समझ ज़मीदार के पुत्र को पाखंडी कह कर दोष देने लगे, सच तो यह था मन ही मन वो खुद भी भयभीत हो रहे थे कि कहीं ज़मीदार का पुत्र अपने पिता से अनुमति ले उन्हें वहॉ से हटा न दे इसलिये वो उसे नुकसान पहुँचाने व जनसाधारण को उसके खिलाफ करने की कोशिश करते रहे!


किंतु जिसने पुत्र पर विश्वास किया पिता की आग्या अनुसार पुत्र ने उसकी रक्छा की लेकिन जिसने नही किया और बुरे कर्म में पड़ कर दुसरों को सताता रहा उसे ज़मीदार द्वारा दंड मिला! इस प्रकाक जहॉ और जिस गॉव में ज़मीदार की सत्ता को चुनौती दे वहॉ के गॉव वालों ने खुद को ही वहॉ का स्वामी बनने की कोशिश की, अन्य निर्बलों का शोशण किया, ज़मीदार के द्वारा दिये कार्यों की अवह्लेलना की ज़मीदार ने अपने अनेक पुत्रों में से एक किसी भी पुत्र को वहॉ भेजकर वहॉ की स्तिथियॉ सामान्य कर असली स्वामी कौन है और यहॉ रहने वालों के क्या काम है ये बताने भेजा!!


इस प्रकार जब जब ज़मीदार को वहॉ के रहने वालों द्वारा नकारा जाने लगा तब तब ज़मीदार को अपने एक पुत्र को वहॉ भेजकर सबको यह अहसास कराना पड़ा की आखिर असल स्वामी कौन है और तुम सब यहॉ क्यौ हो!!


हे मनुष्यों इस प्रकार मैं ही जगत का स्वामी हूँ, जब जब तुम मेरी सत्ता को चुनौती देते हो मैं ही अपने एक अंश को धरती पर भेजकर मानवता की रक्छा करता हूँ एवम तुम्हे तुम्हारे कर्तव्यों का बोध कराता हूँ, देश, काल, परिस्तिथी, बोली, भाषा, रीति-रिवाज़ो के अनुसार तुम उन्हें अनेक नाम से पुकारते हो, भगवान अथवा मसीह कहते हो, किंतु उन्हें भेजने वाला मैं जगत का जनक और पिता हूँ!

मैं भौतिक देह वाला पिता नही अपितु कण कण को बनाने सवॉरने वाला पिता हूँ, प+इ+त+आ=पिता

प=परम, प्रथम
इ=इच्छा ,ईश्वरिय
त=तत्व
आ=आत्मा

अर्थात परम प्रथम इच्छा ईश्वरीय आत्मा तत्व में ही जगत पिता हूँ, मैं ईश्वर हूँ!

कल्याण हो







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