Sunday 29 January 2017

सदगुरु श्री अर्चना जी के सच्चे आत्मिक प्रेम पर विचार

"मित्रों मैंने अक्सर देखा है लोग प्रेम शक्ल-सूरत, आयु, धन-दौलत,
रूप-रंग देख कर अर्थात जो भौतिक और नाशवान है उसे देख कर
ही करते है।
ऐसा प्रेम कभी भी आत्मिक न हो कर भौतिक
रह जाता है, और जो भौतिक है वो तो नष्ट होगा ही,
फलस्वरूप रिश्ते टूटने लगते है, कभी कभी
टूटते नही लेकिन ज़िन्दगी भर बोझ
की तरह ढोने लगते है।
यदि प्रेम को आत्मिक रूप से किया जाता, मन की आँखों से
दोनों प्रेमियो ने एक दूसरे को देखा होता, चाहा होता तो रिश्तों में कटुता
कभी नहीं आती न ही ये
रिश्ता टूट कर बिखरता।
धन-धन्य, शक्ल-सूरत, आयु, अमीरी-
गरीबी, रंग-रूप तो बाहरी है, मिटने
वाला है, आयु भी भौतिक देह की लोग आंकते
है, अगर आत्मा से प्रेम करोगे तब अहसास होगा की
दोनों प्रेमियो की असल आयु क्या है, आत्मा जो युगों से है
और आगे भी रहेगी वही
उसकी आयु है।
रूप रंग जो आत्मा का है वही सत्य है, जो शक्ल सूरत
आकर आत्मा का है वही सत्य है, बाकी तो
मिटटी का पुतला है जो मिटटी में ही
एक दिन मिलने वाला है।
इसलिए जो माया अर्थात नाशवान और धोखा है प्रेम उससे न करे,
आत्मा से करे, आत्मिक प्रेम से और क्या लाभ है ये तुम्हे इसे
करके ही पता चलेगा।"
कल्याण हो

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