Tuesday 3 January 2017

ईश्वर वाणी-१७७, देह बंधन

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों संसार मैं दुख का कारण देह मोह में पड़ना ही है, मनुष्य मेरी उपासना और मुझसे प्रेम न कर भौतिक रूप से जिनसे जुड़ा है उनसे प्रेम व मोह रखता है, मुझे तो  केवल संकट के समय ही याद करता है, ये ही दोहरा चरित्र मावन के दुख का कारण है,

हे मनुष्यों ये सत्य है मैं ही तुम्हें मोह मैं डालता हूँ ताकी तुम किसी को हानी ना पहुँचा कर प्रेम व भाईचारे के साथ धरती पर रहो किंतु मैं ही तुम्हें  मोह मैं ना पड़ने की बात कहता हूँ,

हे मनुष्यों तुम न अपने भौतिक स्वरूप, धन, सम्प्रदा, संतान का मोह न करो, ये भौतिक है और एक दिन मिटने वाला है, इसलिये मोह रखो तो आत्मा से जो कभी नही नष्ट होती सदा तुम्हारे साथ तुम्हारे पास रहती है तुम खुद भी एक आत्मा हो जिसे निम्न कार्यो के लिये ये भौतिक घर दिया है जैसे कार्य पूर्ण घर खाली कर दूसरा आशियाना तुम्हें मिल जाता है,

हे मनुष्यों इस जीवन मैं तुम जिससे मिले जिससे जुड़े भावात्मक लगाव हुआ और एक दिन वो चला गया, ये सब तो उस परम मिलन का छोटा सा सारांश ही था जो तुम्हें अपने भौतिक देह को त्याग आत्मिक रूप मिलने वाला है,

हे मनुष्यों भौतिक देह त्यागने के बाद भी व्यक्ति मैं उपर्युक्त व्यक्ति के प्रति जब प्रेम की भावना व मिलन की प्रबल इच्छा होती है तब उनकी आत्माऔ का मिलन होता है और जहॉ भी जन्म ये फिर लेते है एक ही स्थान पर लेते है साथ ही सदा सारी उमर एक दूसरे से प्रेम करते है,

किंतु यदि एक व्यक्ति दूसरे के देह त्यागने से पहले ही (मुक्ति प्राप्त कर) जन्म ले लेता है तब भी दूसरी भी वही जन्म लेता है जहॉ अमुक पैदा हुआ था,

हे मनुष्यों इसलिये देह का मोह लोभ न कर ये तो कितनी बार तुझे मिला है कितनी बार नष्ट हुआ है और जिनहें तू अपना कहता है उनमें से कुछ तेरे पहले के अपने है और कुछ आगे तेरे अपने होंगे,

हे मनुष्य यदि सच्ची श्रध्धा तुम मुझ पर रखो तो इस सत्य को जान और आत्मसात कर भौतिक देह के बंधन ठुकरा मुझसे प्रीत लगा मोझ को पाप्त कर परधाम में स्थान पाओगे"


कल्याण हो



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