Sunday 16 April 2017

ईश्वर वाणी- मैं सदा सबके साथ हूँ, २०४

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यो यद्धपि तुमने सुना एवं पड़ा है की भगवन श्री कृष्ण की हज़ारो पत्निया थI तथा प्रत्येक के साथ वह रहा करते थे।

किंतु इस लीला का भाव यही है भगवान अथवा ईश्वर अथवा परमात्मा जगत में हर किसी के साथ है। देश, काल, परिस्तिथि के अनुसार मेरा रूप रंग आकर भाषा वेशभूषा रीती रिवाज़ भले बदल लू किंतु मूल तत्व वो आदी शक्ति सदा सभी के साथ हूँ ।

हे मनुष्यों तुम मुझे जिस नाम रूप से मुझे पुकारोगे उसी स्वरुप में मैं तुम्हारे समक्ष उपस्तिथ रहूँगा। श्री कृष्ण के हज़ारो रानियों के साथ रहने का एक भाव यह भी है की मैं किसी के साथ भेद भाव नही करता, जो निःस्वार्थ भक्ति से मुझे पाने की लालसा करता है मैं उसके साथ होता हूँ किंतु उसके अनेक जीवन के कर्म ही ये तय करते है की कौन मुझे कितना प्राप्त करता है।

हे मनुष्यों तुम्हारे भौतिक माता-पिता तुम्हारे भौतिक शरीर के आधार पर ही तुमसे सम्बन्ध रखते है, उनके लिये पिछली पीढ़ियों से मिली अनेक मान्यता जो स्वम मानव द्वारा निर्मित है वो ज़िम्मेदार है, अचरज और शैतान का प्रभाव इतना है की मनुष्य इन सब मान्यताओ से बाहर ही नही आना चाहता सब जानते हुये भी, और इस प्रकार मानव अपनी संतान के साथ भी केवल भौतिक देह के आधार पर प्रेम व् अपनत्व का भाव रखता है।

किंतु मैं परमेश्वर प्रत्येक जीव को उसकी भौतिकता नही अपितु आत्मा एवं कर्म के आधार पर व्यवहार रखता हूँ, मेरे लिये भौतिक देह केवल एक वस्त्र के समान है जो कर्मोनुसार बदलते रहते है।

हे मनुष्यों मेरा प्रेम सभी जीवो पर सदा ही एक समान रहता है, मेरे सभी स्वरुप तुम्हें यही दीक्षा देते हैं"


कल्याण हो

Saturday 8 April 2017

चंद अलफाज

"ये चेहरे पे तेरे जो इतना नूर है
शायद तभी तू इतना मशहूर है
है मासूम सी अदा कितनी प्यारी
मोहब्बत का ही ये असर हुज़ूर है"
ये लाइन्स Bossy Boss Mishra के लिये





"खून हिन्दू का बहे या मुस्लमान का
जो बेगुनाह पड़ा है ज़मी पर आज ऐसे
ये शख्स तो है बस मेरे हिंदुस्तान का"

कविता-मैं भी जीना चाहती थी


मैं भी जीना चाहती थी सब की तरह
'ख़ुशी' के पल चाहती थी सब की तरह

पर ज़िन्दगी से ठोकरे मुझे मिलती रही
चलना मैं भी चाहती थी सब की तरह

ख्वाब थे जाने कितने ही इन आँखों में
पूरा करना चाहती थी उन्हें सब की तरह

बेमान इश्क भी निकला किस्मत में मेरे
पाना उसे बस चाहती थी सब की तरह

आसमान में पंक्षी देखे ऐसे यु उड़ते हुए
मैं भी तो उड़ना चाहती थी सब की तरह

मीठे पल हँसी ज़िन्दगी के दिलने चाहे थे
'मीठी-ख़ुशी' चाहती थी सब की तरह

मैं भी जीना चाहती थी सब की तरह
'ख़ुशी' के पल चाहती थी सब की तरह
--
Thanks and Regards
*****Archu*****

Saturday 1 April 2017

कविता

"इंसान हो तुम इंसान बन कर रहा करो
जख्म न यूँही किसी को तुम दिया करो

है दिल धड़कता एक सीने में तुम्हारे भी
दूसरे की धड़कन न तुम बन्द किया करो

न बहाओ लहू किसी का न बहने दो
इंसान हो इंसानियत को न खोया करो

न बनाओ इस दिल को इतना पत्थर
थोड़ी लाज इंसानियत की किया करो

दिखते नही अश्क किसी की आखो के
मौत पर तो किसी की तुम रोया करो

मार रहा इंसान ही इंसान को इस कदर
प्रेम का पाठ निरीहों से तुम सीखा करो

जगत में उड़ता देखो मानवता का उपहास
ज़िन्दगी की सीख तुम निरीहों से लिया करो

प्रेम ही जीवन है ये न भूलो तुम आज ये बात
इंसान हो इंसानियत का तुम बस मान करो

इंसान हो तुम इंसान बन कर रहा करो
जख्म न यूँही किसी को तुम दिया करो-२"

मुक्तक

"मिलकर आओ, हम आज कुछ ऐसा जहाँ बनाये
मिलकर सभी, इन निरीहों का जीवन अब बचाये
जिये खुद भी, और उन्हें जीवन का अधिकार दे
बने धरती स्वर्ग सबके लिये, चलो शाकाहार अपनाये''

Friday 24 March 2017

ईश्वर वाणी-२०३, जीवों का व्यवहार

ईश्वर कहते हैं, ''हे मनुष्यों भले तुमने ये मानव देह धारण अवश्य की है किंतु अनंत जीव योनियो के बाद तुम्हे ये मानव जीवन प्राप्त हुआ है, तुम्हे ये जीवन प्राप्त हुआ ताकि मेरे वचनो का पालन कर मोक्ष को प्राप्त करो।

हे मनुष्यों तुम्हारा व्यवहार अच्छा अथवा बुरा, क्रोधी, दयालु, चालक अथवा भोलापन, वफादार अथवा धोखेबाज़, मददगार अथवा खुदगर्ज़ जैसा भी तुम करते हो वह सब पिछले कई जीवन के अथवा योनियो में जन्म लेने के कारण इस मानव जीवन में तुम वैसा ही करते हो, यद्धपि तुमने मानव देह धारण किया है किंतु तुम्हारा व्यवहार पिछले जन्मों के अनुसार तय होता है।

तभी तुमने देखा होगा मनुष्य तो मनुष्यता भूल चूका है, कई बार मानवता को शर्मिंदा करने वाले कार्य मानव करता है किन्तु पशु कई बार मानवता को शिक्षा देने वाले कर्म कर जाते है, ऐसा इसलिये ही होता है जो मानव अमानवीये व्यवहार करते है वो अपने पूर्व जन्म की पाशविक प्रवत्ति को अपने अन्तर्मन से अलग नही कर पाते किंतु जो पशु मानवता की रक्षा करने वाले कर्म कर जाते है वो भले इस रूप में आज पशु है किंतु पिछले जन्ममें श्रेष्ट मानव रहे होते है जो किन्ही गलतियों के कारन पशु योनि प्राप्त कर प्रायश्चित कर रहे होते हैं।

हे मनुष्यों इसी प्रकार किसी जीव की हत्या मेरे नाम पर न करो, मेरे नाम पर तुम जो कुर्बानी देते हो निरीह जीवों की, किंतु इसे मैं स्वीकार नहीं करता, बलि अथवा कुर्बानी  मैं खुद ही सभी के लिये मैं स्वम दे चूका हूँ, इसलिये मेरे नाम पर किसी निरीह जीव की हत्या न करो, ये व्यवहार तुम्हारा मानवीय न हो कर पाश्विक है।

हे मनुष्यों इस प्रकार अपने मानव व्यवहार ध्यान दो केवल मानव देह धारण करने से कुछ नही प्राप्त होता है, इसलिये मेरे वचन पर चल प्राणी जाती के कल्याण हेतु मानव पथ पर निरंतर चलते रहो ताकि मुझ तक पहुच सको और मोक्ष प्राप्त कर सको।

हे मनुष्यों इस संसार में मैंने सर्वप्रथम अति सूक्ष्म जीवो को भेजा जिनके परिवर्तन स्वरुप करोडो वषो बाद मानव जाती की उत्पत्ति हुई, मानव को अन्य जीवो से अधिक समझ दी, संसार की रक्षा हेतु मैंने उसे अधिकार दिये किंतु मानव ने खुद धरती का राजा समझ बेठा, वो भूल गया की उसके जनक भी वही है जो अन्य जीवो के।

हे मनुष्यों  यदि तुम खुद को राजा भी समझ बैठो हो संसार के जीवों का तो तुम याद रखो राजा सदा प्रजा का सेवक ही होता है, सभी जीवो की रक्षा व् उनका कल्याण ही उसका मात्र एक धर्म होता है, किंतु मानव खुद के स्वार्थ पूर्ती के लिये अन्य जीवो को हानि पंहुचा देने को ही राजा धर्म समझने लगा और  सृष्टि का दोहन व् प्राणियो प्राणी जाती का शोषण करने लगा।

हे मनुष्यों तुम्हारा यही व्यवहार तुम्हे ये बताने के लिये उचित है तुम्हारे बुरे कर्म स्वार्थी व्यव्हार  इतना काफी है तुम्हारे पिछले जन्म के पाश्विक प्रवत्ति को तुम्हारी मानव देह में कैसे उत्पन्न हुई बताने के लिये''



कल्याण हो



Monday 20 March 2017

ईश्वर वाणी-२०२, ईश्वर का रूप

ईश्वर कहते है, ''हे मनुष्यों यु तो अधिकतर मनुष्य मेरे रूप मेरे रंग मेरे आकर मेरे प्रकार के विषय में बाते करते है, वो सोचते है ईश्वर शायद ऐसा दीखता होगा या शायद वैसा।

किंतु वह अज्ञानी नहीं जानते मैं तो निराकार हूँ, आकर तो उसका होता है जो जन्म लेता है पर मैं तो अजन्मा हूँ, जो भौतिक है जो नाशवान जो जन्म लेने वाला जन्मा है उसी को इन भौतिक आँखों से देखा जा सकता है।

मैं तो शून्य हूँ अर्थात कुछ नहीं, पर इस कुछ नहीं से सब कुछ, सृष्टि का निर्माण मैंने इसी शून्य से किया है और अंत में सृष्टि इसी शून्य में समासमा जायगी अर्थात जो है आज वो कुछ नही होगा जैसे इससे पूर्व भी नही था, मेरे निराकार स्वरुप का भी वही तातपर्य है, परम सत्य यही है शून्य, तुम्हारी अथवा समस्त आत्मा भी शून्य हो कर ही पुनः जीवन पाती है, समस्त गृह नक्षत्र भी शून्य धारण करे हुए है उन्हें पता है सृष्टि का सत्य यही है।

पृथ्वी पर भी शक्ति पीठ एवं समस्त प्राचीन धार्मिक स्थानों पर मैं इसी शून्य अवस्था में ही विराजित हूँ, शून्य जो कुछ न हो कर भी सब कुछ है, जैसे तुम्हारी आत्मा दिखती नही, उसका रूप रंग आकर तुम नही जानते न देख सकते हो किन्तु  उसके जाने के बाद तुम्हारा शरीर बेजान पुतला मात्र है।

वैसे ही मैं जगत की आत्मा होने के कारन जगत पिता जगत माता व आत्माओ में परम होने के कारण परमात्माँ हूँ, किन्तु हे शैतान के वशिभुत मानवों तुम सिर्फ भौतिकता पर विश्वाश करते हो, भौतिक रिश्ते, भौतिक साधन, भौतिक सुख सुविधा, इसी कारण तुम मेरे वास्तविक रूप को सहर्ष स्वीकार नही करते, मेरी बनायीं व्यवस्था को भी ठुकरा शैतान की राह पर चलते हो।

तुम्हे इश्वरिये मार्ग और जिस कार्य के लिये ये जन्म तुम्हे मिला है ये बताने के लिये ही मैं देश, काल, परिस्तिथि के अनुरूप जगत व प्राणी जाती के कल्याण हेतु अपने ही एक अंश धरती पर भेजता हूँ ताकि वो तुम्हे मुझमे विश्वाश दिलाये और शैतान की कैद से तुम्हे मुक्त कर तुम्हारे मानव जीवन को मोक्ष प्रदान करे।

हे मनुष्यों मेरा ही एक अंश तुम्ही में से किसी के यहाँ जन्म लेता है, तुम्हारे जैसा ही रूप बनाता है, तुम्हारी सोच को बदलने के लिए तुम्हारी ही भाषा शेली का उपयोग करता है, ईश्वर के तुम्हे करीब लाने का प्रयास करता है, फिर वो मुझमे एक दिन मिल कर मैं बन जाता हूँ, अजन्मा अविनाशी परमेश्वर।

हे मनुष्यों मेरा रूप तो निराकार है शून्य है जैसे ब्रह्माण्ड, इसका न आदि न अंत है वही और वैसा ही मेरा रूप है, तुम्हारे जन्म से पूर्व और मोक्ष पायी आत्मा का जो रूप है वही मेरा रूप है।

हे मनुष्यों अब ये मत कहना क्या तुमने ईश्वर को देखा है अथवा ईश्वर कैसा दिखता है क्योंकि दिखती तो तुम्हारी आत्मा भी नहीं है पर वो है।"


कल्याण हो