Tuesday 27 June 2017

मुक्तक

"जाने कैसे सबको उनका प्यार मिल जाता है
जाने कैसे सबको उनका यार मिल जाता है
हमको तो मिलते है मोहब्बत में ठग हर मोड़ पर
जाने कैसे सबको उनका संसार मिल जाता है"

Monday 26 June 2017

ईद मुबारक

"ऐ खुदा कुछ ऐसी रहमत कर दे
 इस ईद पर गरीब का पेट तो भर दे
 रोये न भूख से बिलखकर कोई फिर
खुदा करिश्मा तू आज ऐसा कर दे"

Sunday 25 June 2017

लेख--हिन्दू धर्म नही बल्कि एक प्राचीन सभ्यता

"मैंने एक रिसर्च की और पाया की जो लोग 'हिन्दू' को धर्म कहते है वो
अज्ञानी है, क्योंकि सच्चाई ये ही है हिन्दू कोई धर्मं नहीं, तभी
शास्त्रों और ग्रंथों में कही भी हिन्दू धर्म और हिंदुत्व का जिक्र नहीं
नहीं है।
अब लोग कहेंगे हिन्दू धर्म नहीं तो क्या है? क्या मुझे हिंदुत्व से
दिक्कत है?? तो उन्हें मैं बता दू हिंदुत्व से मुझे दिक्कत नही, पर
हिन्दू एक धर्म भी नही ये सत्य है, 'हिन्दू' एक सभ्यता है, विश्व की अनेक
प्राचीन सभ्यताओ में से अभी तक जीवित बची सबसे विकसित प्राचीन सभ्यता जो
प्राचीन काल से अब तक अपना अस्तित्व बचा कर रख पायी है, हालांकि अब इसमें
बहुत बदलाव आधुनिकता के आधार पर आ चूका है फिर भी मूल तत्व अपने साथ लिए
ये आज भी जीवित है।
'हिमालय पर्वत श्रंखलाओ से हो कर अनेक नदियो के किनारे' एक विशाल विकसित
सभ्यता का विकास हुआ, हिन्दू का 'हि' शब्द उसी हिमालय के समीप व् 'न्द'
शब्द नदी किनारे बसी उसी सभ्यता के विषय में जानकारी देता है, यहाँ पर
रहने वालो को ही हिन्दू कहा जाने लगा।
विश्व की सबसे प्राचीन और विकसित सभ्यता के नाम पर ही उसके समीप बहते
विशाल सागर को ही हिन्द महा सागर कहा गया, याद रखने योग्य ये है अभी तक
किसी धर्म के नाम पर किसी नदी या सागर का नाम नही रखा गया है, केवल हिन्द
महा सागर नाम क्यों ?? क्योंकि ये धर्म नही बल्कि प्राचीन विकसित और अब
तक जीवित इकलौती सभ्यता है।
तभी सभी हिन्दुओ के नाम, भाषा, रीती रिवाज़,त्योहार सब अलग है, कारण केवल
हिमालय तथा उससे निकलने वाली नदियो के किनारे बसे लोग, सभी ने अपने
अनुसार भाषा बोली, रीती रिवाज़ और त्योहार मनाये, तभी एक ही नाम की
धार्मिक पुस्तक 'रामायण' दक्षिण में अलग और उत्तर भारत में अलग
तथामलेसिया व् इंडोनेशिया में अलग है।
यदि ये धर्म होता तो मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध आदि धर्मो के सामान
इसके मानने वाले एक ही त्योहार करते, रीती रिवाज़ एक होती, एक भाषा मुख्य
होती, किंतु ऐसा नही है।
अब सवाल उठता है विश्व की सबसे प्राचीन विकसित सभ्यता आज इतनी कम क्यों रह गयी?
इसका उत्तर है समय के साथ इसमें आई बुराई, और उन बुराइयों को दूर करने के लिए आने
अनेक मतानुयायी आये, जिन्होंने उसकी बुराई दूर करने के लिये उपदेश दिए,
जिन्होंने उन उपदेशो को माना वो उसी मत अर्थात धर्म को मानने वाले होते
गए, बाद में कुछ शाशको ने बलपूर्वक या लालच दे कर इस सभ्यता के लोगो को
बहका कर किसी दूसरे मत अपने
अनुसार किया, फलस्वरूप आज ये सभ्यता विश्व
में इतनी ही बची है।
किंतु उम्मीद है दुनिया का हर देश आज इस अत्यंत प्राचीन सभ्यता का शोषण
और खत्म करने की अपेक्षा बचा कर रखेगा, यही सभ्यता है अब बची है जब मानव
इतिहास की पूर्ण व्याख्या करती है।
--
Thanks and Regards
*****Archu*****
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Saturday 24 June 2017

कविता-मुझे मिटाया

"दुनिया में जब जब मैंने दिल लगाया
धोखा ही हर उस शख्स से पाया
कसूर फिर भी किसी का नही शायद
किस्मत ने उन्हें आखिर मुझसे मिलाया

ख़ुशी की चाहत दिखा सभी ने रुलाया
इश्क के नाम पर सभी ने सताया
मीठी बाते बना सदा बहलाते रहे मुझे
पर वफा का वादा न किसीने निभाया

दिलके रिश्ते बना दिलसे से ठुकराया
अपना बना कर भी न अपना बनाया
एक मोहब्बत की ही चाहत की थी
ज़िन्दगी बता अपनी ज़िन्दगी से हटाया

फिर भी साथ रखा तेरी बेवफाई का साया
तूने भुला दिया मुझे पर न मैंने तुझे भुलाया
ज़िन्दगी के आखिर तक एक साथ चाहा था
पर तूने तो ज़िन्दगी से ही मुझे मिटाया"



Friday 23 June 2017

ईश्वर वाणी-२१८, चौरासी लाख योनिया

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि पापी मनुष्य अपने पाप कर्म का दंड इसी जन्म में भोगता है किंतु अनेक पापी अपने पापो का प्रायश्चित नही करते जिसका कारण उनके मन को उनके पाप रुपी शैतान ने ढक रखा होता है, जिसके कारण पाप कर्म का दंड मिलने पर भी प्रायश्चित नही करते और अवसर मिलते ही फिर पाप कर्म करने लगते हैं।

हे मनुष्यों ये मानव देह तुम्हे चौरासी लाख योनयो के बाद मिली है, अर्थात करोडो वषो व् अनेक युगों के बाद, यदि इसे तुम अपनी भौतिक महत्वकांशा पूर्ती में ही लगा देते हो तो फिर करोडो वषो व् अनेक युगों तक मानव देह के लिये तरसते हो।

हे मनुष्यों जीवन को चौरासी लाख योनियो से क्यों जोड़ा गया है इसके विषय में बताता हूँ, चौरासी लाख बार स्त्री तत्व व् पुरुष तत्व के संगम से तुम्हे इतनी ही देह की प्राप्ति हुई है, एक नया जीवन देना तो पाप कर्म में नही आता किंतु स्त्री और पुरुष तत्व का संगम पाप कर्म में आता है कारण कभी ये संगम आपसी सहमति से हुआ तो कभी जोर जबरदस्ती से, इस संगम में ईश्वर को भुला कर सिर्फ आपसी संगम के कारण मन में घृणित विचार रख कर किया मिलन, चौरासी लाख बार हुये इस मिलन के बाद मुक्ति तथा पाप द्वारा जन्म मरण के बन्धन से मुक्त होने के लिए ही मानव देह तुम्हें दी है, ताकि नैतिकता व् सत्कर्म का अनुसरण कर भव सागर से मुक्त हो कर फिर सतयुग में श्रेष्ट जीवन पाओ।


हे मनुष्यों चौरासी लाख योनियो में तुम्हारा केवल देह रुपी जन्म आता है, यद्दपि तुम्हारे प्रेत, आत्मा, निशाचर आदि अनेक सूक्ष्म शरीर में प्राप्त जन्म नही आते"।


कल्याण हो


अर्चना

ईश्वर वाणी-२१७, कर्मफल

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यूँ तो तुम अपनी देह में रह कर अनेक सुख और दुःख प्राप्त करते हो, यद्धपि तुम्हें पहले भी में बता चूका हूँ दुःख क्या है और सुख क्या, फिर भी सारांश में आज इतना ही कहता हूँ 'तुम्हारी इच्छित वस्तु अथवा इच्छा का पूर्ण होना तुम्हे हर्षित करता है, तुम्हे उस भौतिक वस्तु की प्राप्ति ही प्रसन्नता देती है मिलने पर, वही यदि वो वस्तु तुम्हे नही मिलती तो उसका न मिलना ही दुःख का कारन', भाव ये है सब कुछ तुम्हारे अनुसार ही जब होता है तब जो भाव मन में तुम्हारे आते है वही खुशी है चाहे इससे किसी को कष्ट मिल रहा हो पर तुम प्रसनन होते हो क्योंकि सब तुम्हारे अनुसार ही हो रहा है,

वही जब तुम्हारे अनुसार कार्य नही होता, परिस्तिथियां भी विपरीत होती जाती है तब खिन्नता का भाव मन में तुम्हारे आता है जो दुःख का कारण बनता है।

हे मनुष्यों ये मानव जीवन तुम्हे अनेक योनियो के बाद मिला है, तुम्हारे पिछले कई जन्मों के कर्म और इस जन्म के कर्म ही तुम्हे दुःख व् सुख की प्राप्ति करवाते हैं।

जैसे कोई पापी व्यक्ति  इस जन्म में कई पाप कर चुका और फिर भी सुख प्राप्त करता है, ऐसा इसलिये पिछले जन्म के कर्म उसके अधिक श्रेष्ट थे, उनके प्रभाव से उसके बुरे कर्मो का फल इस जन्म में नही मिला किंतु उसने अगला जन्म अपने बुरे कर्मो से खराब कर अगले जन्म के लिए केवल दुःख ही कमाया।

घृणा, झूठा आरोप, अपमान, हत्या, व्यभिचार, रिश्तों की अवमानना, देश ध्रोह, राज ध्रोह, निरीहों और कमजोर को सताना, सदा अपनी ही हाँकना, दूसरो को नीचा समझना, बुरी नियत रखना, संपत्ति हड़पना, दूसरे का हिस्सा छिनना, धन का व् ।मनुष्यों का देह का अभिमान करना ये सब पाप कर्म है, इसका दंड यदि पिछले जन्म के पुन्य पूरे इस जन्म में पूर्ण होते है तो इसी जन्म में दंड मिलता है यद्दपि ऐसा नही होता तो अगले जन्म में तुम्हारे जन्म से लेकर जब तक दंड तुम्हारा पूर्ण नही होता मिलता रहता है।

हलाकि बीच में कुछ वक्त के लिए कष्ट कम जरूर हो जाते है कारण कुछ इस जन्म के अच्छे कर्म व् जो लोग तुमसे जुड़े है उनकी किस्मत तुमसे जुडी जिससे उनके पुन्य कर्म के कारण अस्थाई रूप से कुछ पल के लिए तुम्हारे भी कष्ट कम हो गए।

हे मनुष्यों इसलिये तुमसे कहता हूँ केवल भौतिक वस्तुओं की लालसा कर उन्हें प्राप्त करने के पीछे मत भागो, कर्म मत खराब करो, यही तो असल पूँजी है इसे अधिक कमाओ और संभाल के रखो क्योंकि अगले जन्म में यह ही तुम्हे मिलेगी, अगर अभी बुराई का रास्ता युही अपनाते रहे तो अगला जन्म दुःख में बीतेगा क्योंकि सुख रुपी धन बुरे कर्मो में तुम आज जो खर्च कर चुके हो,

वक्त अभी भी है, इसे न जाने दो, मेरे बताये मार्ग को अपनाओ और सच्ची पूँजी कमा के आनंद प्राप्त करो"


कल्याण हो

कॉपीराइट@अर्चना





Wednesday 21 June 2017

पौराणिक कथा- भाग-5, जब श्रवण कुमार के मन में भी जागा था पाप


बात उस समय की है जब श्रवण कुमार अपने नेत्रहीन माता-पिता को ले कर चार धाम यात्रा पर निकले थे, चलते चलते वो किसी वन में पहुचे, माता पिता को भूख लगी तो उन्होंने श्रवण कुमार से कुछ भोजन की व्यवस्था करने के लिए कहा, श्रवण उन्हें वन में एक नदी किनारे बैठा कर भोजन की व्यवस्था करने चल पड़े।
उन्हों कुछ जंगली फल मिले, उन्हें ले कर माता पिता के पास आने लगे, उन्हें थकान महसूस हुई तो सोचने लगे एक पेड़ के नीचे थोड़ा विश्राम कर लू फिर चलूँगा आगे, और वो एक पेड़ के नीचे बैठ गए, पता नही कब आँख लग गयी, पर तभी मनमे विचार आने लगे "आखिर कब तक मैं इन अंधे बूढे माता पिता को धोता फिरूँगा, मेरी अपनी भी तो ज़िन्दगी है, इन्हें छोड़ कर वापस लौट जाऊँगा और विवाह कर अपना घर बसाऊंगा और सुखी जीवन जिऊंगा, ऐसा करता हूँ इस नदी में ही इन्हें डुबो देता हूँ, नही नही ऐसा करता हूँ जगंल में ही छोड़ देता हूँ और अपने नगर लौट जाता हूँ",
इसी उधेड़बुन में ही उसकी आँख खुल गयी और वो अपने माता पिता के पास गया ये कहने की वो अब उनको नही और ढो सकता है इसलिए उन्हें इसी वन में छोड़ कर नगर लौट जाएगा विवाह कर घर बसाएगा।
माता पिता ने धैर्य पूर्वक उसकी बात सुनी और कहा "पुत्र जैसी तुम्हारी इच्छा, पर आखिरी बार ये नदी तो पार करवा दो",
श्रवण ने सोचा चलो एक आखिरी बार ये कार्य भी कर ही देता हूँ, और वो नदी पार करवाने लगे, जैसे जैसे वो नदी में बढ़ने लगे ह्रदय परिवर्तन होने लगा, सोचने लगे "मेरे माता पिता का मेरे अतिरिक्त कौन है, मेरा भी उनके अतिरिक्त कौन है, ये तो मेरा संसार है, इनकी सेवा ही मेरा कर्तव्य है, इनकी सेवा ही ईश्वर की सेवा है, हे प्रभु कैसे बुरे ख्याल दिलमे आ गए थे मेरे, स्वार्थवश मैंने माता पिता का अहित सोचा",
इस बीच नदी पार हो चुकी थी, दुःख के कारण श्रवण कुमार माता पिता के समझ रो रहे थे, छमा मांगते हुए अपनी गलती की व्याख्या कर रहे थे, तभी माता पिता बोले "पुत्र मत रो, इसमें गलती तुम्हारी नही उस भूमि की है जहाँ तुम रुके थे, अनेक राक्षस व् बुरे लोग उस धरती पर पाप कर्म करते आये है, इसलिए वो भूमि अपवित्र है,इसलिए इसने तुम्हारे मन में भी पापी विचार भर दिए किंतु ये नदी साधू संत व् ऋषि मुनियो के पूजन व् स्नान के कारन पवित्र है, तभी हमने तुमसे नदी पार कराने को कहा ताकि तुम्हारे अंदर उपजे पाप धूल सके और वही हुआ,
माता पिता की बात सुन कर श्रवण कुमार का विलाप बन्द हुआ और उन्हें यात्रा पर वो ले गए।
Just now