Wednesday 21 June 2017

पौराणिक कथा- भाग-5, जब श्रवण कुमार के मन में भी जागा था पाप


बात उस समय की है जब श्रवण कुमार अपने नेत्रहीन माता-पिता को ले कर चार धाम यात्रा पर निकले थे, चलते चलते वो किसी वन में पहुचे, माता पिता को भूख लगी तो उन्होंने श्रवण कुमार से कुछ भोजन की व्यवस्था करने के लिए कहा, श्रवण उन्हें वन में एक नदी किनारे बैठा कर भोजन की व्यवस्था करने चल पड़े।
उन्हों कुछ जंगली फल मिले, उन्हें ले कर माता पिता के पास आने लगे, उन्हें थकान महसूस हुई तो सोचने लगे एक पेड़ के नीचे थोड़ा विश्राम कर लू फिर चलूँगा आगे, और वो एक पेड़ के नीचे बैठ गए, पता नही कब आँख लग गयी, पर तभी मनमे विचार आने लगे "आखिर कब तक मैं इन अंधे बूढे माता पिता को धोता फिरूँगा, मेरी अपनी भी तो ज़िन्दगी है, इन्हें छोड़ कर वापस लौट जाऊँगा और विवाह कर अपना घर बसाऊंगा और सुखी जीवन जिऊंगा, ऐसा करता हूँ इस नदी में ही इन्हें डुबो देता हूँ, नही नही ऐसा करता हूँ जगंल में ही छोड़ देता हूँ और अपने नगर लौट जाता हूँ",
इसी उधेड़बुन में ही उसकी आँख खुल गयी और वो अपने माता पिता के पास गया ये कहने की वो अब उनको नही और ढो सकता है इसलिए उन्हें इसी वन में छोड़ कर नगर लौट जाएगा विवाह कर घर बसाएगा।
माता पिता ने धैर्य पूर्वक उसकी बात सुनी और कहा "पुत्र जैसी तुम्हारी इच्छा, पर आखिरी बार ये नदी तो पार करवा दो",
श्रवण ने सोचा चलो एक आखिरी बार ये कार्य भी कर ही देता हूँ, और वो नदी पार करवाने लगे, जैसे जैसे वो नदी में बढ़ने लगे ह्रदय परिवर्तन होने लगा, सोचने लगे "मेरे माता पिता का मेरे अतिरिक्त कौन है, मेरा भी उनके अतिरिक्त कौन है, ये तो मेरा संसार है, इनकी सेवा ही मेरा कर्तव्य है, इनकी सेवा ही ईश्वर की सेवा है, हे प्रभु कैसे बुरे ख्याल दिलमे आ गए थे मेरे, स्वार्थवश मैंने माता पिता का अहित सोचा",
इस बीच नदी पार हो चुकी थी, दुःख के कारण श्रवण कुमार माता पिता के समझ रो रहे थे, छमा मांगते हुए अपनी गलती की व्याख्या कर रहे थे, तभी माता पिता बोले "पुत्र मत रो, इसमें गलती तुम्हारी नही उस भूमि की है जहाँ तुम रुके थे, अनेक राक्षस व् बुरे लोग उस धरती पर पाप कर्म करते आये है, इसलिए वो भूमि अपवित्र है,इसलिए इसने तुम्हारे मन में भी पापी विचार भर दिए किंतु ये नदी साधू संत व् ऋषि मुनियो के पूजन व् स्नान के कारन पवित्र है, तभी हमने तुमसे नदी पार कराने को कहा ताकि तुम्हारे अंदर उपजे पाप धूल सके और वही हुआ,
माता पिता की बात सुन कर श्रवण कुमार का विलाप बन्द हुआ और उन्हें यात्रा पर वो ले गए।
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