Friday 16 June 2017

ईश्वर वाणी-215, भौतिक माता पिता व् भौतिक रिश्ते



ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों जिस परिवार में तुमने जन्म लिया है, जिन माता-पिता की कृपा से तुमने भौतिक देह पायी है यद्धपि तुमसे वो बुरा से बुरा अथवा अच्छा व्यवहार करे किंतु तुम्हें केवल सत्य का अनुशरण कर उनका सम्मान करना है, जब भी जहाँ भी उन्हें तुम्हारी आवश्यकता हो तुम्हें उनकी सहायता करनी बिना ये सोचे की उन्होंने तुम्हारे साथ क्या और कैसा व्यवहार किया।


हे मनुष्यों ये न भूलो की तुम्हारे सूक्ष्म शरीर तुम्हारी आत्मा का जन्म दाता मैं ही हूँ, मैं ही माता और पिता तुम्हारी आत्मा का हूँ, मेरे लिये तुम न स्त्री हो न पुरुष हो, मेरे लिये तुम सिर्फ एक आत्मा हो, तभी मैं तुम्हारे साथ कोई और किसी भी प्रकार का भेद भाव नहीं करता, किंतु तुम्हारे भौतिक माता पिता तुम्हारे भौतिक स्वरुप के अनुसार व्यवहार करते है, समाज की अनेक परम्परा को अपना कर कई बार तुम्हें अन्तर्मन तक चोट पहुचाते है, किंतु मैं फिर भी ये नहीं कहता की तुम भी उनके साथ ऐसा ही करो, यदि तुम ऐसा करते हो तो तुममे और उनमे कोई भेद नही होगा।


हे मनुष्यों जो तुम्हारे आज भौतिक माता पिता है पिछले जन्म में वो तुम्हारी अपनी संतान भी हो सकते है, मित्र व् बंधू भी हो सकते है,जो तुम्हारा रिश्ता तुम्हारे भौतिक माता पिता से आज है संभव हैं अगले जन्म में न हो, संभव है फिर कई जन्मों तक तुम एक दूसरे से न मिलो।


हे मनुष्यों ये न भूलो जैसे कर्म तुम आज करते हो उसका फल युगों तक पाते हो, इसलिये भले तुम्हारे भौतिक माता पिता तुम्हारे साथ बुरा व्यवहार करे, किंतु जब भी उन्हें तुम्हारी आवश्यकता हो बिना झिझके उनके काम आओ, साथ ही ये बात भी याद रखो ये केवल भौतिक माता पिता है, भौतिक रिश्ते तो दुखदायी होते ही है किंतु इसका अर्थ ये नहीं की जिसने तुम्हे दुःख पहुचाया उसे इससे भी अधिक कष्ट दो, उसकी आवश्यकता पर मुह मोड़ लो, उसे अकेला छोड़ दो।


हे मनुष्यों आदि काल से ले कर अनंत काल तक तुम्हारी आत्मा का जनक मैं ही हूँ, मैं ही वस्त्विक माता व् पिता हूँ,  मैं ही देह रुपी वस्त्र तुम्हे पहनने को देता हूँ, देह एक भौतिक वस्तु है इसलिये एक निश्चित समय के साथ नष्ट हो जाती है फिर दूसरा वस्त्र धारण करती है, किंतु इस बीच अनेक भौतिक रिश्ते और नाते बना अनेक सुख व् दुःख प्राप्त करती है, ये दुःख व् सुख सभी स्थायी नही होते क्योंकि ये भौतिकवाद से बने होते है, और जो भौतिक नही है वो है आत्मा और सच्चा रिश्ता है जो सिर्फ सुख की अनुभूति देता है वो है ईश्वर और आत्मा का सच्चा रिश्ता।


हे मनुष्यों मैं ये नही कहता की अपने भौतिक रिश्तों को भुला कर संन्यास धारण कर सदा मेरी ही भक्ति करो, तुम सिर्फ इतना करो कोई तुम्हारे साथ अच्छा या बुरा व्यवहार करे किंतु तुम कटुता त्याग सदा मानव पथ पर चल सत्मार्ग का अनुसरण करो, किसी के प्रति बेर भाव न रख कर जो भी व्यक्ति तुमसे सहायता माँगे उसकी सहायता करो बिना इसकी इच्छा किये की वो तुम्हारी भी कभी सहायता करेगा या काम आयेगा, हो सकता है शैतान के वशिभूत तुम्हे वो तुम्हारे उपकार के बदले नुक्सान पहुचाये किंतु तुम बेर न रखते हुए सत्मार्ग पर चलो और भौतिक रिश्ते पर ध्यान न देते हुए आत्मा और ईश्वर के पवित्र रिश्तों की सत्य मान कर नेक कर्म करते रहो, तुम्हारा कल्याण होगा।"



कल्याण हो

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