Sunday 18 June 2017

ईश्वर वाणी-216, ईश्वर का क्रोध, प्राकतिक विपत्ति आदि

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों अधिकतर तुमने प्राकृतिक आपदा, दुःख, कष्ट, विपत्ति के समय लोगों से सुना होगा अथवा कहा भी होगा की ईश्वर अथवा भगवान के नाराज़ होने पर ऐसा हुआ।

किंतु आज मैं तुम्हें बताता हूँ मैं तुमसे कभी नाराज़ नहीं होता, यदि मैं तुमसे नाराज़ ऐसे ही होता रहता तो अब तक तुम्हारा अस्तित्व रहता क्या??

हे मनुष्यों जाती, धर्म, सम्प्रदाय के नाम पर मेरे आराधनालय को तुम नष्ट करते हो, मेरी प्रतीकात्मक प्रतिमाओ को नष्ट करते हो, मेरे बताये वचनो की पुस्तको को नष्ट करते हो, झूठी परम्परा के नाम पर निरीहों कि हत्या करते हो, अपने स्वाद जीभ के पूर्ण करने हेतु जाने कितने ही मासूम जीव जन्तुओ को मौत के घाट असमय ही उतार देते हो, लोगो से छल करते हो, झूठ बोलते हो, बुरी नज़र रखते हो, चोरी डकैती करते हो,व्यभिचार करते हो,भ्रष्टाचार करते हो, देश द्रोह करते हो, रिश्तों का सम्मान नही करते, स्वार्थ पूर्ती में लगे रहते हो, सदा पाप कर्म में लीन रहते हो।
इन सब बातो के आधार पर तुमसे क्रुद्ध हो कर मैं समस्त मानव जाती का ही विनाश कर दूंगा जैसा की तुम कहते हो।

हे मनुष्यों ये न भूलो तुम्हारी आत्मा के जन्म से ले कर अनंत काल तक सब कुछ तुम्हारे विषय में लिखा जा चूका है, तुम्हारे कष्ट, तुम्हारी ख़ुशी, तुम्हारे कर्म, तुम्हारी सोच, सब कुछ पहले ही लिखा जा चूका है।

यदि कोई दुर्घटना या किसी भी प्रकार की विपत्ति तुम पर आती है तो वो भी लिखी गयी है तुम्हारे जन्म से पूर्व ही, साथ ही पिछले जन्मो और इस जन्म के तुम्हारे कर्म अनुसार तुम्हे मिलने वाला ये एक दंड मात्र है जो पहले ही लिखा जा चूका है।

इसलिये ये न सोचो की कोई दुर्घटना या विपत्ति मेरे क्रोध के कारण तुम्हारी ज़िन्दगी में आई है, क्योंकि इन्हें तो आना ही था इसलिये ये तुम्हारी ज़िन्दगी में आयी।

हे मनुष्यों मेरी अथवा मेरे किसी भी अंश की तुम पूजा करते हो भक्ति करते हो, तुम्हे उसका प्रतिफल भी मिलता है, तुम्हारी प्राथना पूर्ण होती है, ये सब पहले ही लिखा जा चूका है।

तुम इस श्रष्टि रुपी रंगमंच पर केवल अपना किरदार निभाते हो, किंतु इसका मालिक मैं हूँ, इस श्रष्टि रुपी नाटक का लेखक भी मैं हूँ, संचालक भी मैं, निर्माता भी मैं हूँ, तुम सिर्फ एक कलाकार हो जो अपना किरदार निभा कर चले जाते हो फिर नाटक में भाग लेने।

इसलिये मैं कभी किसी पर क्रोधित नही होता, तुम सब मेरे समझ एक अबोध बालक समान हो, जैसे एक बालक को पता नही गलत और सही, उसकी कई बार की गयी नासमझी की गलतियों को माता पिता नासमझ कह कर भुला देते है, न की छोटी छोटी हर गलती पर दण्डित करते है, वैसे ही तुम सब मेरे लिये उस अबोध बालक समान हो, मैं तुम्हारा पिता ईश्वर हूँ।

कल्याण हो


**अर्चना मिश्रा**







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