Sunday 18 February 2018

ईश्वर वाणी-235- ईश्वर का धर्म



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यद्धपि तुम मुझे अपनी अपनी मान्यता, भाषा, क्षेत्र व समय के अनुसार अनेक नामों से पुकारते हो। सदा उसी मेरे नाम को तुम सत्य समझते हो जिस नाम पर तुम्हे मेरा विश्वास है, उसी रूप को सत्य समझते हो जिसपर तुम्हें विश्वास है, किन्तु जिस मेरे नाम पर तुम्हें विश्वास नही, मेरे जिस रूप पर तुम आस्था नही रखते वो असत्य भी तो नही।

जैसे ‘विश्वास’ शब्द को कोई ‘भरोसा’ कोई ‘ऐतबार’ कोई ‘यकीं’ कहता है किँतु अपने अपने शब्द पर तो सबकी आस्था वही दूसरों के शब्दों पर नही जबकि सभी का अर्थ एक ही है।

इसी प्रकार तुम मुझे चाहे जिस रूप में जिस नाम से पुकारो, पर मुझे पुकारो तथा गलत कर्मो से भय खाओ।
हे मनुष्यों यदि मैं तुम्हारी मान्यता अनुसार अलग होता तो तुम्हारी तरह मैं भी भृमित हो कर ईश्वर, अल्लाह, गॉड, भगवान, सद्गुरु सब मिलकर आपस में लड़ रहे होते, अपने अपने धर्म, जाती, भाषा, क्षेत्र, सम्प्रदाय को ले कर लड़ रहे होते, सन्सार में अनेक स्वर्ग व ईश्वरीय धाम होते। हर स्वर्ग हर धाम हर एक अलग जाती, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा, क्षेत्र के व्यक्ति का अलग होता, और जैसे तुम इस भौतिक देह से आपस में लड़ते हो वैसे ही सूक्ष्म शरीर में भी लड़ते, और अपने अपने स्थान को श्रेस्ट बता लड़ते रहते।

किंतु ऐसा नही है, ये भेद भाव तुमने खुद बनाया है मैंने नही, क्योंकि मैं एक ही हूँ, देश काल परिस्थिति के अनुरूप ही मैं जगत में अपने अंश को भेजता हूँ मानव व जीव जगत के कल्याण हेतु तथा तुम्हें मानवता का पाठ पढ़ा एकजुट करने के लिये।

किंतु तुम मनुष्य अपनी तूच सोच के कारण मेरे उद्देश्यों को गलत दिशा में मोड़ कर मानव व जीव जगत का नुकसान व उन्हें हानि पहुंचाते हो, अपने भेद भाव के कारण मुझमे भी भेद करते हो, ये भूल जाते हो श्रष्टि और समस्त जीवों को जन्म देने वाला, समस्त आत्माओ का ईश्वर मैं परमेश्वर परमात्मा हूँ,  मैं एक हूँ, तुम व समस्त ब्रह्मांड मुझमे ही विराजित हैं, किन्तु अज्ञानता के कारण जो तुम मानवता का नाश करते हो तो निश्चय ही मेरे क्रोध के भागी बनते हो क्योंकि मेरा कोई धर्म नही जाती नही भाषा नही क्षेत्र नही अपितु हर स्थान पर हूँ क्योंकि सब कुछ मेरा ही तो है आखिर मैं ही इकलौता सृष्टि का मालिक जो हूँ।“

कल्याण हो








सद्गुरु श्री अर्चना जी की ईश्वर वाणिया

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Saturday 17 February 2018

ईश्वर वाणी-234, एकेस्वर अर्थात एक ही ईश्वर



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों मैं आज तुम्हें बताता हूँ कि समस्त संसार व जीवो व समस्त बब्रह्माण्ड का मालिक मैं ही हूँ, मेरा कोई रूप व आकर नही, में ही समस्त आत्माओ का स्वामी होने कारण परमात्मा हूँ।
हे मनुष्यों यद्धपि बहुत से लोग मुझे साकार व बहुत से निराकार रूप में मानते हैं, किंतु अब बहुत से लोग मुझे निराकार रूप में मानने लगे हैं, ऐसा इसलियें क्योंकि वो अपनी प्राचीन सभ्यता जो कि मूर्ति पूजा के रूप में विकसित थी उसे त्याग चुके हैं और आज एकेस्वर के पथ पर चल पड़े हैं।

हे मनुष्यों सन्सार में एकेस्वर का होना आज के समय में बहुत ही आवश्यक हो चुका था, प्राचीन काल मे जब मूर्ति हर स्थान पर चलन में थी तब मनुष्य केवल खुद जिस देवी/देवता पर यकीं रखता था उन्हें ही श्रेस्ट कहता व खुद को ही श्रेस्ट मान सभी को नीचा समझता था जिसके कारण लोग आपस में बेर भाव रखते थे, इसलिए संसार को एकजुट करने के लिये एकेस्वर की स्थापना बहुत ही आवश्यक हो गयी।

संसार मे अनेक समुदाय थे, कई जाती व उपजातियां थी जो अलग अलग रूप में मूर्ति पूजा करते थे, व खुद को व खुद जिसकी उपासना करते वही उनकी दृष्टि में श्रेस्ट होते, वो अक्सर कमजोरसमुदाय व जाती पर आक्रमण करते थे तथा जो जीत जाता वो हारे हुए के मंदिर व आराधनालय को नष्ट करते व जबरन अपनी परंपरा व अपने देवी देवता की उपासना उन पर धोपते, जिससे सन्सार में अराजकता बढ़ती गयी तथा एक ही ईश्वर की धारणा को बल मिला जिसने समस्त संसार को  एक सूत्र में बाँध कर सभी को एक समान मानव बता एक ही धर्म मानव धर्म की मानसिकता को बल दिया, इस प्रकार जो छोटे छोटे राज्य कमजोर राज्यो पर हमला कर वाह के मंदिर तुड़वा साथ ही अपने अनुसार पूजा पद्धति को बढ़ावा देने की सोच पर रोक लगाई।

इस प्रकार समस्त संसार आज पहले की अपेक्षा श्रेस्ट बना है किँतु अब फिरसे पुरानी मानसिकता सर उठाने लगी है जो वही कर रही है जो पहले लोग करते थे, किंतु यदि इस मानसिकता पर रोक नही लगी तो फिर एक नए धर्म का उदय होगा अथवा मानव जाति का विनाश, इसलिए ये तुम्हें सोचना है कि तुम क्या चाहते हों साथ किस दिशा में समाज को ले जाना चाहते हों”

कल्याण हो

ईश्वर वाणी-233, ईश्वर का स्वरूप साकार अथवा निराकार

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हें मैं पहले ही मेरे साकार अथवा निराकार रूप के विषय मे बता चुका हूँ किंतु आज फिर से तुम्हें बताता हूँ मेरे साकार और निराकार रूप के विषय में।

हे मनुष्यों जो व्यक्ति तुमसे कहे कि ईश्वर के निराकार रूप को मानो, मूर्ति पूजा का त्याग करो, उस परमेश्वर को याद करो वो तुम्हें अपने द्वारा बताए ईश्वर को श्रेष्ठ बता कर कहेगा ये ही सत्य है बाकी असत्य इसलिए इस ईश्वर की पूजा करो, मंदिर और आराधनालय मत जाओ केवल इस स्थान जाओ जहाँ इस नाम का ईश्वर है।

हे मनुष्यों जो तुमसे कहे कि मूर्ति पूजा त्यागो, उस ईश्वर की पूजा करो जिसके विषय मे तुम्हे बताता हूँ, तो मनुष्यों उनसे कहना पहले तुम तो मूर्ति पूजा त्यागो अर्थात वो खुद मूर्ति पूजा करता है किसी न किसी रूप में।

कोई घर मे विशेष धार्मिक स्थान की पूजा करता है, घर पर भी वो उस स्थान पर ही मुख करके पूजा करता है जहाँ वो धार्मिक स्थान है, साथ ही कोई मूर्ति पूजा का मंदिर का विरोध करता है किँतु खुद किसी न किसी रूप में मेरी आराधना करता है, क्या तुमने कोई गिरजाघर देखा है जिसमे माता मरियम और येशु की तश्वीर या मूर्ति न हो, तो मूर्ति पूजा का विरोध करने वाले खुद मूर्ति या तश्वीर की ही आराधना करते हैं किंतु अन्य तश्वीर या मूर्ति पूजको के वो घोर विरोधी हैं, ऐसे व्यक्ति घोर पाखण्डी होते है।

हे मनुष्यो जो व्यक्ति मुझे निराकार कह पूजने की बात कहते हैं सत्य तो ये है वो खुद मूर्ति पूजक है साथ ही आधे अधूरे ज्ञान के मालिक हैं।
हे मनुष्यों मैं तुम्हें बताता हूँ यद्धपि तुम किसी भी मंदिर या आराधनालय जाओ किंतु उस मूर्ति के समक्ष उसे सत्य न मान कर उस आत्मा को सत्य मान कर पूजा करो जो परमेश्वर ने कभी इसी रूप में अपने ही एक अंश को धरती पर भेजा था, किंतु मनुष्यों ने अब उसके प्रतीक के रूप में ये मूर्ति बनाई है, अर्थात उस मूर्ति नही अपितु उस आत्मा की पूजा करो उस मूर्ति या चित्र के समक्ष जो कभी ऐसे ही रूप में धरती पर मौजूद थी और लोगों के दुख दर्द दूर करती थी।

इस प्रकार मूर्ति पूजा कोई दोष नही, यद्धपि मेरा कोई रूप नही आकर नही किंतु तुम मेरे उस रूप पर यकीं नही कर सकते।

एक विशाल सागर हूँ मैं, मुझमे से किसी ने एक कलस जल निकाल लिया और लोगों से कहा केवल यही जल स्वच्छ है, लोगों ने जल पिया किंतु समय के साथ इस जल में कुछ गन्दगी आ गयी, तभी फिर किसी ने एक थाल में जल भर लिया और कहने लगा कि यही जल स्वच्छ और स्वस्थवर्धक है, और लोगों ने पिया किंतु फिर कुछ मिलावट हुई उस जल में तो फिर किसी ने कटोरी किसी ने ग्लास किसी ने मटके से जल निकाला और लोंगो को पीने को दिया ये कह कर की ये जल स्वस्थ व अच्छा है, किन्तु समय के साथ सभी बर्तन के जल दूसित हो गए कारण दूसित मन दूसित हाथों से तुमने इसका सेवन शुरू कर दिया जिससे सभी जल खराब हो गए किन्तु मैं सागर रूपी जल अभी भी शुद्ध हूँ पहले कि भांति।

भाव ये है में ईश्वर रूपी जल हूँ और जिन मतो को तुम मानते हो जानते हो चाहे मूर्ति पूजक हो अथवा खुद को इनसे अलग कहने वाले, उन सबके बर्तन में रखा जल दूसित हो गया है क्योंकि इन्होंने गन्दे हाथ उसमे डाल दिये अर्थात मेरे द्वारा बताई गई सीख को गलत दिशा दे लोगो को भृमित कर मानव को मानव का शत्रु बना दिया जिससे ये जल दूसित हो गया। साथ ही अपने बर्तन में रखे जल को श्रेष्ठ व दूसरे के जल को दूषित कहा।

इस प्रकार सभी बर्तनों का जल दूसित हो गया, अर्थात जिस भी मान्यता पर यकीन करते हो चाहे साकार ईश की हो या निराकार ईश की तुमने अपने कटु व्यवहार से सबको दूसित कर दिया है किंतु शुद्ध तुम कर सकते हो, यदि किसी को नीच या कम न बता कर सभी रूप में विराजित मेरे अंशो की पूजा व सम्मान कर उचित स्थान प्रदान करो।
यदि तुम साकार निराकार की अवधारणा त्याग सभी रूप में केवल मुझे ही देखो, मुझे ही महसूस करो तो धीरे धीरे ये जल शुद्ध हो जाएगा और तुम मेरे प्रिय बनोगे"

कल्याण हो

Sunday 11 February 2018

ईश्वर वाणी-232 , ईश्वर के शरीर के अंग

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यूँ तो पहले भी तुम्हें मैं बता चुका हूँ आकाशीय दिव्य सागर और तैरते ग्रह नक्षत्रों के विषय में।

हे मनुष्यों इस समस्त ब्रह्मांड का निर्माण एक विशाल अंडे के विश्वोट व उसके निरन्तर विस्फोटों से हुआ। उसी में से जो तरल पदार्थ निकला उसी से श्रिष्टि में में विशाल सागर व पृथ्वी पर सागर, नदियां, हिमकुण्ड व धरती के नीचे पानी का विशाल भंडार बना।

जैसे ब्रह्माण्ड का कोई छोर नही, ये अनन्त है, ठीक वही मेरा एक रूप है जिसे तुम अपनी इन भौतिक आंखों से देखते हो। ब्रह्माण्ड के समुचित ग्रह नक्षत्र तारे मेरे ही शरीर के अंग है, जैसे तुम्हारे शरीर मे रक्त निरन्तर बहता रहता है जो तुम्हे जीवित रखता है वैसे ही ब्रह्मांड के वो निरन्तर बहने वाले छोटे बड़े पत्थर हैं जो किसी ग्रह से नही निकलते किन्तु निरन्तर आकाश में घूमते रहते हैं।
जैसे तुम्हारे शरीर मे कोई कमी आ जाती है जिससे रक्त दूसित हो जाता है साथ ही दूसित रक्त शरीर के निम्न भाग को बुरी तरह प्रभावित करता है वैसे ही जब आकाश के इन पत्थरों में कोई खराबी आ जाती तभी किसी ग्रह नक्षत्र से टकरा कर उसको नुकसान पहुँचाते हैं।
हे मनुष्यों इसलिये ये न भूलो की मैं ही आदि अंनत अविनाशी ईश्वर हूँ , हालांकि में निराकार हूँ किंतु जैसे तुम किसी जीव की मृत्यु के पश्चात उसकी आत्मा के अस्तित्व को अस्वीकार करते हों क्योंकि उसकी भौतिक देह मिट चुकी है और तुम केवल भौतिक देह से ही उसे जानते पहचानते व जीवित समझते हो।
वैसे ही तुम मेरे निराकार रूप को नही मानोगे, इसलिए आकाशीय दिव्य रूप को मैंने धारण किया, समस्त ग्रह नक्षत्रों को अपना अंग बनाया ताकि जब तुम आकाश को देखो तो मेरा अस्तित्व याद करो साथ ही अपने कर्तव्य जो तुम्हें मैंने करने को दिये"।

कल्याण हो


सद्गुरु श्री अर्चना जी की ईश्वर वाणिया

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Saturday 10 February 2018

ईश्वर वाणी-231, मानव जाति व मनुष्य धर्म



Sat, Feb 10, 2018 at 10:58 PM


ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों मैने जैसे संसार में जीव जंतुओं की जाती
बनाई जैसे-शेर, भालू, गाये, बकरी, मछली, चिड़िया इत्यादि उसी के अनुरूप
मैंने मानव जाति बनाई।
किंतु मानव को मैंने ज्ञान व बुद्धि अन्य जीवों से अधिक दी ताकि समूची
पृथ्वी और जीवो पर वो राज कर सके, उसकी कुशलता पूर्वक शाशन कला को ही
मैंने मानवीय धर्म की संज्ञा दी।
किन्तु मनुष्य ने अपने इस अधिकार का दुरुपयोग शुरू किया, उसे मैंने यहाँ
राज करने भेजा था, जैसे एक राजा एक पिता की तरह अपनी प्रजा का ख्याल रखता
है, उनकी आवश्यकता को पूरा करता है, वैसे ही मनुष्य अन्य जीवों पर शाशन
अवश्य करे किंतु जंग में जीते हुए क्रूर शाशक की तरह जो गुलामो को अनेक
कष्ट पहुचाते है उनकी भाति न हो कर जैसे एक पिता अपने बालकों के ध्यान
रखता है वैसे।
एक पिता अपने अबोध बालकों के स्वामी ही होता है, उसके बिन बालक का जीवन
कितना कष्टदायक होगा ये तो तुम्हें पता है।
हे  मनुष्यों ठीक उसी प्रकार मैंने तुम्हें इन जीवों सहायता व इनका ध्यान
रखने हेतु भेजा था, ये नहीं भूलना चाहिए कि एक राजा भी प्रजा का ही सेवक
होता है, यदि वो ऐसा करने में असफल होता है तो प्रजा को अधिकार है दूसरा
राजा गद्दी पर बैठाय।

किन्तु यहाँ ये निरीह बेजुबान जीव ऐसा नही कर सकते, ये एक अबोध बालक की
तरह है जो अनेक अत्याचार अपना कहने वालों के सहता है पर उनके खिलाफ कुछ
नहि कर सकता क्योंकी न उसे अधिकारों की जानकारी है न ही प्रक्रिया
फलस्वरूप नियति मान उमर भर ये सहता रहता है।

हे मनुष्यों मै तुमसे कहता हूँ अब भी सुधर जाओ और जिस कार्य के लिए
तुम्हें मैंने यहाँ का आधिपत्य दिया है उसका पालन करो, जो जाती धर्म
तुमने बनाये हैं उनपर नही अपितु जो मैंने विरासत में तुम्हें दिए हैं
उनका अनुसरण करो।"

कल्याण हो








सद्गुरु श्री अर्चना जी की ईश्वर वाणिया

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ईश्वर वाणी-230 मासिक चक्र

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों आज तुम्हें मैं महिलाओं में होने वाले मासिक के विषय मे बताता हूँ, सदियों से विभिन्न सम्प्रदाय में ये धारणा है कि महिलाएं उन दिनों अशुद्ध होती है, उनके साथ अछूतो की भांति व्यवहार किया जाता है किंतु ईश्वर की दृष्टि में क्या वाकई एक स्त्री उन दिनों अशुद्ध होती है इसलिए किसी पूजा पाठ धार्मिक अनुष्ठान में शामिल नही हो सकती, व्रत उपवास नही कर सकती, धार्मिक स्थान नही जा सकती, धार्मिक पुष्तक नही पड़ सकती।

हे मनुष्यों एक स्त्री उन दिनों ऐसा नही कर सकती किंतु इसलिए नही की वो अपवित्र या अशुद्ध है, अपितु एक स्त्री खुद इतनी सक्षम है कि एक नया जीवन धरती पर ला सकती है।
अर्थात एक स्त्री जब मासिक चक्र में होती है तब वो समस्त देवो सहित ईश्वर की भी पूजनीय होती है, उसका स्थान सबसे श्रेष्ठ होता है। जैसे एक राजा राजगद्दी पर रहते हुये एक दरबान के आगे नही झुक कर नमस्कार कर सकता न ही वो दरबान की नौकरी का आवेदन कर सकता है, किंतु इसका अभिप्राय ये नही की राजा अशुद्ध या अपवित्र है जो वो ऐसा नही कर सकता।
ठीक हर स्त्री भी उन दिनों इतनी ही पवित्र होती है, जगत जननी जगदम्बा स्वरूप जगत जननी स्त्री होती है, यदि स्त्री को मासिक चक्र न हो तो सृष्टि में जीवन ही सम्भव नही है, एक स्त्री खुद में पूर्ण होती है किंतु पुरूष कभी खुद में पूर्ण नही। एक स्त्री हर पुरुष में शक्ति रूप में विराजित है किंतु पुरुष स्त्री में शामिल नही है।ठीक स्त्री बिना पुरुष के एक संतान को एक जीवन की धरती पर ला सकती है उदाहरण-माता कुंती, माता मरियम, इन्होंने बिना किसी पुरूष के एक जीवन को धरती पर जन्म दिया, इसलिए एक स्त्री को ही जगत जननी कहा जाता है, संसार में मेरे स्वरूप को छोड़कर कोई ऐसा पुरूष नही जिसने बिना नारी के किसी नवजीवन को जन्म दिया हो।
हे मनुष्यों ऐसा नही केवल मनुष्यों की स्त्री ही पूजनीय है अपितु संसार मे जितने भी प्राणी है उनकी आधी संख्या नारी की है और सभी पूजनीय है।
हे मनुष्यों कुछ धूर्त, कुटिल, कपटी, नारी विरोधी व्यक्तियों ने नारी को दोयम, नीच, दबाने, शोषण करने हेतु साथ ही पुरूष को अधिक प्रधनता दे उनको अधिक महत्व देने हेतु ये भरम फैला दिया कि नारी उन दिनों अपवित्र अशुद्ध होती है, एक माता का रक्त जो एक नया जीवन प्रदान करता हो वो अशुद्ध वो नारी अपवित्र कभी नही हो सकती अपितु वो तो मुझसे भी पूजनीय होती है, अपनी ज़िंदगी को खतरे में डाल एक जीवन को वो संसार मे लाती है, ऐसा साहस तो मुझमें भी नही।

हे मनुष्यों नारी को सम्मान दो न कि उसे अपवित्र बता उसका अपमान करो, यदि तुम ऐसा करते हों, उसके मासिक चक्र के दैरान उसके साथ अछूता अपवित्र जैसा व्यवहार करते हो तो निश्चय ही मेरे क्रोध के भागी बनते हो।"
कल्याण हो

Sunday 4 February 2018

फिर एक प्रेम कहानी भाग-5(स्टोरी)


सुबह 11 बजकर 25 मिनट 1932 आसिफ के फोन की घण्टी बजती है आसिफ फ़ोन उठाता और पूछता है कौन?
आवाज़ सुन कर हैरान रह जाता है जब उसे पता चलता है फ़ोन पर संजय है, आखिर इतने साल बाद संजय ने फोन क्यों किया, ये ही सोच रहा था कि संजय ने कहा-
संजय- “आसिफ जल्दी से जल्दी रिया के घर आ जाओ”
आसिफ- “पर क्यों हुआ क्या है”
संजय- “सवाल मत करो आ जाओ, तुम्हारी रिया हमारी रिया”, ये बोल कर संजय फूट फूट के रोने लगता है।
आसिफ- “क्या हुआ रिया को, में अभी आता हूँ ।
 इतना कह कर आसिफ रिया के घर चल देता है।

वहा जा कर पता चलता है रिया नही रही, आसिफ को गहरा धक्का लगता है, इतने में रिया की दोस्त और उसकी अस्सिस्टेंट रितिका जो पिछले 10 साल से रिया के साथ थी, आसिफ को रिया के हाथ का लिखा आखिरी खत थमाती है और कहती है-
रितिका- “ये खत उसने पेरिस में अपनी बीमारी के इलाज के दौरान लिखा था, वो चाहती थी आखिरी बार तुम्हे देख ले, फिर सोचती तुम काम मे व्यस्त होंगे, आखिर कल उसने ये खत मुझे दिया और कहा आज जब तुम उससे आखिरी बार मिलने आओ तब तुम्हे इसे दे दु, जो दे दिया, अपनी टीबी की लाइलाज बीमारी और तड़प तड़प के यू मरने से बेहतर इसने खुद ज़हर खा कर जान दे दी, अब इसे न सिर्फ बीमारी बल्कि अकेलेपन से भी मुक्ति मिल गयी”। इतना कह रितिका वहां से चली गयी।

आसिफ ने खत खोला और पढ़ने लगा जिसमे रिया ने लिखा था “मेरे प्रिये तुम नही जानते तुम मेरे लिए आज भी कितनी    अहमियत रखते हो लेकिन लगता है तुम सब कुछ भूल चुके हो, शायद दुनियादारी और व्यवसाय ने तुम्हे ऐसा बना दिया क्योंकि तुम अब वो नही जिसको मैंने चाहा था। लेकिन जितनी मोहब्बत की है तुमसे मैंने शायदि किसी ने की हो, में तुमसे आज भी उतनी ही मोहब्बत करती हूँ जितनी पहले, पर शायद तुम अब वो नही रहे जिसने कभी मुझे चाहा था।
प्रिये मुझे एक कली से फूल तुमने और तुम्हारे प्यार ने बनाया था” ये अल्फ़ाज़ पड़ कर आसिफ उन दिनों की याद में खो जाता है जब रिया अपना सब कुछ छोड़ कर उसके पास चली आयी थी।

रिया- “आसिफ मैंने वो घर छोड़ दिया है, अब तुम्हे मुझसे कोई अलग नही कर सकता, अब मैं तुम्हारी हूँ आसिफ”,
आसिफ- “ओह रिया तुम नहीं जानती मैं कितना खुश हूं तुम्हें अपने पास आज यू बेफिक्र देख कर तुम्हें अंदाज़ा भी न होगा पर प्रिये अभी हमारी शादी नही हुई है, ऐसे में तुम्हे मैं अपने साथ नही रख सकता, जब तक हमारी शादी नह होती तुम मेरे दूसरे  घर मे रहना, रहोगी न प्रिये”,
रिया-“क्यों नहीं”,
आसिफ- “रिया तुम तो जानती हो मैं तुम्हारे भईया के व्यापार में सहायक था, किँतु जबसे उन्होंने मुझे निकाला है अकेले ही अपना काम सम्भाल रहा हूँ, मेरे बहनोई मेरी सहायता इसमे कर रहे हैं, मेरे जो क्लाइन्ट है वो सभी फ़िलहाल मुस्लिम है, मुझे उनके साथ कि अभी बहुत जरूरत है, ऐसे में उन्हें ये पता लग गया कि मैंने एक हिन्दू लड़की से शादी की है तो वो व्यापारिक रिश्ते तोड़ देंगे और फिर कभी मैं आर्थिक रूप से मजबूत नही हो पाऊंगा, मेरा कैरियर तबाह हो जायेगा”,

रिया- “अगर मैं मुस्लिम बन जाऊं तो????”
आसिफ- “अगर तुम मुस्लिम बन जाओ तब तुमसे शादी करू में तो ये मसला हल हो सकता है, लेकिन मैं तुमसे ऐसा बिल्कुल भी नही करने को कहूँगा,
रिया-“ओह आसिफ आखिर हर लड़की को शादी के बाद पति का नाम उपनाम मज़हब जाती स्वीकार करनी ही होती है, क्या हुआ जो मैं शादी से पहले स्वीकार करती हूँ और वैसे भी कुछ साल पहले भारत के एक नामी वकील ने भी तो एक पारसी लड़की से शादी की, हमारी प्रेम कहानी कुछ उनकी जैसी ही तो है, जैसे उस लड़की ने भी तो इस्लाम स्वीकार किया और उन नामी वकील से शादी की, क्या होगा जो मैं भी कर लुंगी"

असीफ-"ओह रिया तुम सच मे बहुत अच्छी हो, नसीब वाला हूँ मैं जो तुम मुझे जीवनसाथी मिली, आई लव यू”।
रिया इस्लाम कबूल करती है और 19 अप्रैल 1921 को इस्लामी रीति से दोनों की शादी होती है, शादी में रिया को 110की मेहर तय होती है पर आसिफ 1000 लाख रुपये उसे अपनी खुशी से देते है।

शादी के बाद ये जोड़ा हनीमून के लिये पेरिस जाता हैं, शादी के एक साल तक रिया और आसिफ पेरिस ही रहते हैं। पेरिस में ही एक नाटक देखते हुये रिया की तबियत खराब हो जाती है, जल्दी जल्दी उसे अस्पताल में भर्ती कराता है जहाँ रिया एक बेटी को जन्म देती है जिसका नाम वो दोनों रेहाना रखते हैं। रेहाना के दो महीने कि होने पर ये जोड़ा वापस भारत लौट आता है।

आसिफ ख़त में आगे पड़ता है “ मुझे उम्मीद है तुम मुझे उस फूल की तरह याद करोगे जिसने बाग से तोड़ कर अपने गमले में सजाया था कभी, न कि उस फूल की तरह जिसने पेड़ से तोड़ कर अपने पैरों तले रौंद डाला था”, ये अल्फ़ाज़ पड़ आसिफ याद करने लगता है जब वो अपनी पत्नी और बेटी के साथ भारत लौटा था रेहाना के जन्म के बाद पहली बार।

रिया- “ऑफ हो आसिफ तुम्हारे पास वक्त ही नही है हमारे लिये, जब से पेरिस से लौटे हो काम ही काम”,
आसिफ- “ओह रिया काम भी तो जरूरी है, तुम जाओ में आता हूँ”।

दिन यू ही बीत रहे थे, आसिफ रिया को केवल बिज़नेस पार्टनर्स अथवा उनकी पार्टी में ही साथ ले जाता, पर रिया के साथ सिर्फ रिया के लिये वो नही जाता था।
एक रोज़ रिया बहुत ही बन ठन के आसिफ के ऑफ़स गयी, आसिफ मीटिंग में व्यस्त था,  वो उसके मीटिंग रूम में जा कर उसके पास जा कर टेबल पर बैठ गयी और पैर हिलाने लगी पर आसिफ ने उस पर कोई ध्यान नही दिया, रिया भी कुछ नही बोली केवल मीटिंग खत्म होने का इंतज़ार करती रही, जैसे ही मीटिंग खत्म हुई आसिफ बोला-
आसिफ- “ये क्या है रिया, क्या चाहती हो”
रिया- “तुम्हारे साथ अकेले घूमने”
और आसिफ रिया के साथ गाड़ी में घूमने चल देता है, पर शायद ये आखिरी दिन था जब वो दोनों केवल एक दूसरे के लिए बाहर अकेले घूमने गए।

वक्त के साथ आसिफ व्यापार में इतना व्यस्त हुए की उन्हें ये भी याद न रहता कि उनकी एक बेटी और पत्नी भी घर मे है, बेटी अब स्कूल भी जाने लगी है आसिफ को पता ही था, धीरे धीरे उनके रिश्ते में दूरी आने लगी, उम्र फासला भी साफ नजर आने लगा, बस दोनों को जिसने जोड़े रखा था वो थी एक दूजे से बेइंतहा मोहब्बत, लेकिन इज़हार करने वाला साथी साथ न था।

रिया गम मिटाने के लिये शराब और सिगरेट पीने लगी, और धीरे धीरे उसकी तबियत खराब होने लगी, लेकिन आसिफ को इसकी कोई चिंता नही थी।
एक रोज़ इसी हालात में वो संजय के घर चली गयी, संजय हैरान हुआ बहन को इस हालत में देख कर, इलाज के लिए वो उसे पेरिस ले गया, जहाँ जाँच में लाइलाज बीमारी टीबी के बारे में डॉक्टर ने बताया। रिया धीरे धीरे मौत की ओर बढ़ रही थी, संजय ने आसिफ को रिया की बीमारी के विषय मे बताने की इच्छा की लेकिन रिया ने मना कर दिया और भारत अपने घर ले चलने की इच्छा जताई, संजय उसे भारत मे उसके पति आसिफ  घर ले आया साथ ही रिया की ज़िद के कारण उसने आसिफ को रिया की इस जानलेवा बीमारी को भी नही बताया और चुपचाप अपने घर चला गया लेकिन आसिफ के घर अकेलेपन और तन्हाई के साथ कुछ दिनों बाद अंतिम सांस ली।

खत पूरा पड़ने के उपरांत रिया को गले लगा कर आसिफ बहुत रोया, मुस्लिम रीति अनुसार रिया को दफना दिया गया। साथ ही चूँकि आसिफ रिया के साथ अब नही रहता था, एक ही शहर में रहते हुए दोनों एक दूसरे से अलग रहते थे, अपने व्यपार को संभालते संभालते कब आसिफ का घर बिखर गया इसका अहसास रिया के जाने के बाद उन्हें हुआ। आसिफ को ये भी नही पता था कब रिया संजय से मिली और पेरिस इलाज़ के लिए गयी और कब वापस लौटी साथ ही संजय और उसकी पत्नी रिया का हाल जानने उसके घर आते थे। अपने मज़हबी कार्यो और व्यवसाय को शिखर तक पहुचाते पहुचाते कब उनका रिश्ता ज़मीदोज़ हो गया ये बहुत देर में पता चला।

तभी घर की घण्टी बजती है, एक नौकर दरवाज़ा खोलता है, आसिफ पूछता है कौन आया है?
नौकर- “साहब रेहाना मेम साहब अपने शौहर के साथ आई हैं” ये कह नौकर वहाँ से चला जाता है।
आसिफ रेहाना से कहता है “आखिर दिल की कर ही ली, जाओ तुमसे मेरा कोई सम्बन्ध नही”
रेहाना-“क्या सचमुच पापा, जरा नज़र मिला कर तो कहिये प्लीज ये”
आसिफ उसके करीब जाता है और गले लगा लेता है।