Monday 26 February 2018

ईश्वर वाणी-238, जीवन मे प्रार्थना का प्रभाव

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों में तुम्हे आज प्राथना के विषय मे बताता हूँ, आखिर ऐसा क्या होता है जो लोग कहते हैं कि तुम्हारी प्राथना ईश्वर ने सुन ली, या फिर क्या कारण है जिसके कारण तुम्हारी प्रार्थना नही सुनी गई।

हे मनुष्यों जब तुम सच्चे दिलसे मुझे याद करते हो, साथ ही सच्चे दिलसे बिना की राग द्वेष छल कपट के कोई दुआ मांगते हो, मुझपर पूर्ण श्रद्धा रख कर सच्चे दिलसे मुझे याद कर कोई इच्छा करते हो तो पूर्ण अवश्य होती है।

इसका कारण ये है जब तुम ऐसा करते हो तब तुम्हारे शरीर से तुम्हारी आत्मा जो मेरा ही एक अंश है जो जाग्रत हो कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है, यही सकारात्मक ऊर्जा तुम्हारे चारो ओर घूमती है एवं तुम्हारी जैसी इच्छा होती है उसे पूर्ण करने के हालात बनाती है।

किन्तु जब तुम छल कपट राग द्वेष की भावना से मेरी स्तुति करते हो तब तुम्हारे अंदर से तुम्हारी आत्मा नकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है फलस्वरूप तुम्हारी इच्छा पूर्ण नही होती किंतु यहाँ कुछ व्यक्ति कहेंगे कि मैंने तो कोई छल कपट ईर्ष्या राग द्वेष किसी के साथ नही रखा साथ ही सच्चे दिलसे ईश्वर अर्थात मेरी स्तुति की फिर भी मेरी मनोकामना पूर्ण नही हुई, कोई कहता है मेरी तो होती ही नही मनोकामना पूर्ण।

हे मनुष्यों उन्हें मै बताता हूँ यदि उनकी मनोकामना पूरी नही हुई तो उसकी कुछ वजह हो सकती है जैसे-

1- तुम्हारे अंदर से सकारात्मक ऊर्जा निकली उसे ये पता था जो इच्छा तुम कर रहे हो, निकट भविष्य में उससे तुम्हे भारी हानि हो सकती है, यद्धपि तुम्हे लगता है कि ये ही मेरे लिए महत्वपूर्ण है किंतु भविष्य में ये ही तुम्हे हानि पहुचा सकती है, इसलिए वो उर्जा तुम्हें लाख प्राथना के बाद भी तुम्हारी वो इच्छा पूरी नही करती साथ ही पिछले जन्म के करम भी होते हैं जो व्यक्ति की इच्छाओं को पूरा करने न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

2-कई बार तुम्हारे आस पास मौजूद नकारात्मक ऊर्जा बहुत ज्यादा होती है जिसके कारण तुम्हारे अंदर की सकारात्मक ऊर्जा कमजोर होने के कारण उससे हार जाती है जिससे तुम्हारी इच्छा लाख कोशिश के बाद भी पूर्ण नही होती। ये नकारात्मक ऊर्जा कोई भूत प्रेत नही अपितु तुम्हारे अपने अंदर की निराशा व तुम्हारे आस पास के व्यक्तियों के अंदर व्यापत किसी भी प्रकार की निराशा है, जिसकी शक्ति तुम्हें प्रभावित करती है।

3-निकट भविष्य में तुम्हें इससे भी बेहतर कुछ मिलने वाला होगा तभी तुम्हारी ये इच्छा पूर्ण नही हुई।

4-अभी वो समय नही आया है या किसी चीज़ अथवा जीव जिसकी तुम कामना रखते हो कि सदा तुम्हारे साथ रहे इसके लिए प्रार्थना करते हो किन्तु वो चीज़ या जीव तुमसे सदा के लिए दूर हो जाता है, क्योंकि अब उसका इस स्वरूप में समय पूरा हो चुका है, उसे एक नए स्वरूप की आवश्यकता है साथ ही तुम्हें भी भावनाओं से ऊपर उठ कर मोह त्याग ईश्वर में ध्यान लगाने की आवश्यकता है।


ये निम्न कारण है जो तुम्हारी इच्छा तुम्हारी प्राथना तुम्हारी मन्नत पूरी नही होने देते।

हे मनुष्यों मैं पहले भी बता चुका हूँ मैं तुम सबमे हूँ किन्तु तुम मुझमे नही, तुम्हारी आत्मा मुझ परमात्मा रूपी सागर से निकला एक अंश अर्थात एक बूँद है, तुम्हें मैंने कई अदभुत शक्तियां दी है किन्तु तुम्हारे अंदर विराजित बुराई ने उन्हें  तुमसे दूर रखा है, यदि तुम अपने अंदर की समस्त बुराई को त्यागकर कर मानव कर्म व मानव पथ पर चलते हो तो तुम्हें उन शक्तियों की अनुभूति होगी जो मैंने तुम्हें दी है।

हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हे मैंने आज प्रार्थना के विषय में बताया, संछिप्त ज्ञान और तुम्हे देता हूँ, जो व्यक्ति मेरे किसी भी रूप की पूजा करते हैं, उन्हें हानि नही पहुचाना क्योंकि उस समय उन्हें नही पता किन्तु उनके अंतर्मन से सकारात्मक ऊर्जा निकलती है, ये ऊर्जा व्रत-उपवास व प्रार्थना के दौरान अवश्य निकली है, ऐसे में यदि उस व्यक्ति को सताया जाता है भले वो व्यक्ति स्वम् कुछ न कहे या करे किन्तु उससे निरन्तर निकलने वाली ऊर्जा दुष्परिणाम निकट भविष्य में  अपने सताने वाले व्यक्ति को अवश्य देती है, यद्धपि तुमने सुना होगा कि फला का आशीर्वाद से मेरा ये काम हो गया अथवा फला की बद्दुआ से ये काम बिगड़ गया, ये सब निम्न व्यक्तियों से निकलने वाली ऊर्जा के कारण हुआ।

हे मनुष्यों तुमने कई मनुष्य व साधु सन्यासी की कहते सुना होगा कि उन्होने अपने इष्ट के साक्षात दर्शन करे पूजा अथवा प्राथना के दौरान, आज तुम्हें बताता हूँ जो ऐसा सच मे अनुभव करते हैं तो ध्यान व प्राथना में इतने खो जाते हैं कि उनके अवचेतन मन से उनकी आत्मा सम्पर्क कर ब्रह्मांड में विराजित ईश्वर रूपी शक्ति से सम्पर्क साध लेती है, ऐसे मनुष्यों के अंदर सकारात्मक ऊर्जा व उसकी आत्मा के सकारात्मकता के प्रभाव के कारण होता है, जिससे वो अपने इष्ट के दर्शन पाते हैं जिस रूप में उन्हें वो मानते हैं।

इस प्रकार प्राथना का पूरा होना या न होना व्यक्ति के जीवन पर निर्भर करता है।'


कल्याण हो





Saturday 24 February 2018

ईश्वर वाणी-237, धरती का मासिक चक्र



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों जैसे समस्त जीवों में मैंने समान रूप से स्त्री अर्थात मादा व पुरूष अर्थात नर को बनाया है, प्रत्येक जीव में केवल स्त्री को ही मैंने मातृत्व की शक्ति दी, एक स्त्री ही है जो अपने समुदाय को आगे बढ़ा सकती है, ये उपहार मैंने स्त्री को ही दिया है।

किंतु इस उपहार को केवल वही स्त्री प्राप्त कर सकती है जिसको मासिक आता हो, अर्थात इसके बिना स्त्री मातृत्व के सुख से वंचित रह सकती है, यद्धपि पुरुषों ने स्त्री के इस मासिक चक्र के कारण उसको अशुद्ध घोसित कर तमाम प्रतिबन्ध लगा दिए, किंतु क्या स्त्री सच में उस अवस्था मे अपवित्र होती है इसका उत्तर में पिछली ‘ईश्वर वाणी’ में दे चुका हूँ किंतु आज बताता हूँ धरती के मासिक चक्र की।

चुकी धरती इस आकाशगंगा में एक अकेली स्त्री है, इसलिये इसे भी माँ बनने का सुख मिला, सर्वप्रथम मंगल ग्रह को इसने जन्म दिया तत्पश्चात धरती ने पेड़ पौधे तमाम जीव जन्तु व मनुष्य को जन्म दिया, अपनी गोद मे ये आज हम सबको लिए हुए हैं, देह त्यागने के बाद भी ये अपने आँचल में सबको सुला लेती है।

किंतु धरती को इस मात्रारत्व का सुख यूँही नही मिला है, अन्य स्त्रीयो की भांति इसको भी माँ का सुख मासिक चक्र के द्वारा ही प्राप्त हुआ है, अब तुम पूछोगे धरती और मासिक चक्र, तो तुम्हें बताता हूँ धरती पर जब जीवन नही था, तब अनेक जयवालामुखी इस पर मौजूद थे जिनमें निरन्तर विस्फोट होते रहते थे, उनसे ही निकले लावे व राख से अति सूक्ष्म जीवों की उत्तपत्ति हुई जो जीव व प्राणी जगत की उत्तपत्ति का कारण बने, आज भी धरती पर कही न कही ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं जो आज भी पर्यावरण और नये जीवन का कारण बनते हैं, ये ही ज्वालामुखी इस धरती रूपी माँ का मासिक चक्र है, चुकी ये सभी जीवों की माँ है व ब्रमांड में हमारी आकाशगंगा में अकेली स्त्री तृत्व है इसलिए इसका मासिक अन्य स्त्रीयो से अलग है, किंतु तरीका वही है जब धरती अंदर से बहुत गर्म हो जाती है जिसके कारण उसके आस पास की मिट्टी व दीवार पिघल कर गिर जाती है तब ज्वालामुखी में विस्फोट होता है, ऐसा ही कुछ तरीका समस्त स्त्री जाति के मासिक के दौरान होता है।

हे मनुष्यों मैं जानता हूँ कुछ व्यक्ति इस लेख को पढ़ने के बाद कहेंगे कि फला ग्रह पर भी ज्वालामुखी हैं जो फटते रहते हैं तो वो भी मासिक चक्र में है क्या? तो उन्हें में बताना चाहता हूँ जीवनदायिनी ज्वालामुखी का विस्फोट कहा हुआ है, जहाँ जहाँ इसके विस्फोट से जीवन उतपन्न हुआ वहा कह सकते हैं कि वहां या उस ग्रह की धरती अपने चक्र में थी।

हे मनुष्यों जो जन स्त्रीयो को उन दिनों अपवित्र कह अपमानित करते हैं, वो जान ले स्त्री कभी अपवित्र नही होती, यदि उन दिनों वो अपवित्र होती तो सबसे पहला स्थान पृथ्वी का होता जो समस्त जीवों का घर व उनकी माँ है, किंतु जैसे समस्त जीवों को जन्म देने व पालन पोषण के कारण धरती का स्थान सभी ग्रहों में श्रेस्ट है वैसे ही सभी पुरुषों में अर्थात नर में स्त्री अर्थात मादा का स्थान श्रेस्ट व पवित्र है, इसलिए कभी किसी स्त्री का उसके मासिक को लेकर अपमान न करो क्योंकि ये अपमान उसका नही अपितु समस्त पृथ्वी का है, जो अनुचित व पापयुक्त है।

है मनुष्यों अपनी सोच सुधारो व स्त्री का हर समय सम्मान करो, तुम्हारा उद्धार होगा क्योंकि स्त्री खुद में पूर्ण है किंतु पुरूष खुद में पूर्ण नही अतः उसे स्त्री की सदा आवश्यकता है, वो चाह कर भी स्त्री से अलग नही हो सकता क्योंकि स्त्री शक्ति रूप में उसके अंदर है किंतु पुरूष स्त्री में कही नही, इसलिए नारी को सम्मान दो क्योंकि इसका स्थान सर्वश्रेष्ठ है।"

कल्याण है

Friday 23 February 2018

ईश्वर वाणी-२३६, ईश्वर वाणी



ईश्वर कहते है, “हे मनुष्यों यु तो तुम सदियों से किसी न किसी धार्मिक व्यवस्था से जुड़े हो, सदियों से जुड़े होने के कारण व पीढ़ी दर पीढ़ी उसी का अनुसरण करने के कारण केवल उस व्यवस्था को ही सत्य मानते हो जिसका तुम अनुसरण करते आये हो, बाकी अथवा अन्य जन द्वारा मान्य धार्मिक व्यवस्था को या तुम अस्वीकार करते हो अथवा अपने से कम आंक कर अवहेलना करते हो, जो उचित नही क्योंकि ऐसा करने से तुम मेरी अनेक बातें व मेरे विषय मे पूर्ण रूप से व अधिक से अधिक जानने से वंचित रह जाते हो।

इश्लिये मेरी वाणी जिसे ‘ईश्वरवाणी’ नाम दिया, ये वो वाणी हैं जो किसी धर्म विशेष को बढ़ावा नही देती और न ही किसी धर्म ग्रंथ विशेष को, अपितु दुनिया के जितने भी अति प्राचीन व आधुनिक धर्म ग्रंथ हैं ये उनका सार है साथ ही उनकी सही प्रकार से व्याख्या, इससे पहले जो व्याख्या तुमने पड़ी उससे मानव का मानव का ही बेर पड़ा व समझा, कही मूर्ति पूजा का विरोध तो कहीं समर्थन, अब इससे एक असमंजस की स्थिति आ गयी कि मूरती पूजा करे या नही, कौन से धर्म शास्त्र पर भरोसा करें क्योंकि सब खुद को ही श्रेस्ट बताते हैं।

किंतु यदि तुम ‘ईश्वर वाणी’ लेख को पढ़ते हो अथवा ध्यान से सुनते हो तो इस असमंजस की स्थिति से बाहर निकल सकते हो, इससे तुम्हे ज्ञात होगा कि कौनसा धर्म शास्त्र तुम्हारे लिए उचित व कौन माध्यम अर्थात मूर्ति पूजा या निराकार ईश की पूजा तुम्हारे लिये उचित है।

में अपनी अनेक ‘ईश्वर वाणियों’ में तुम्हें इस विषय में पहले ही बता चुका हूँ, हे मनुष्यों यदि तुम्हारे पास समय की कमी व असमंजसता है कि कौनसा धर्म अपनाउं व किस मेरे रूप की पूजा करू व कौनसे धर्म शास्त्र को सत्य समझू तो तुम अब इससे बाहर निकला, तुम ‘ईश्वर वाणी’ लेख को केवल पड़ो अथवा सुनो व उसी पर यकीं करो, यदि तुम ऐसा करते हो तो तुम्हें संसार के अनेक प्राचीन व आधुनिक धर्म ग्रंथो के सार की पूर्ण जानकारी मिलेगी जो किसी एक मत पर चलने वालों को नही मिलती, उन्हें सीमित ही ज्ञान मिलता है जिससे वो संकुचित सोच के कारण मुझमें ही भेद करने लगते हैं, किन्तु मेरी वाणी को पढ़ने वाले उसका अनुसरण करने वाले ऐसा नही करते, साथ ही मेरे द्वारा बताई ‘ईश्वर वाणी’ में तुम धर्म शास्त्र से बाहर के भी आध्यात्मिक ज्ञान को भी प्राप्त करते हो।
एक सम्पूर्ण मानव बनने के लिए केवल मानव देह का मिलना, धर्म के आधार पर जाती, भाषा, क्षेत्र के आधार पर लड़ना उचित नही क्योंकि ये तो पाश्विक प्रवत्ति है, एक जानवर ही अपने क्षेत्र में दूसरे को बर्दाश्त नही करता, अपनी जैसी बोली बोलने वाले कमजोर का वध व ताकतवर से भय खाता है, यही प्रवत्ति मानव ने अपनाई है तो भला मानव इनसे श्रेस्ट कैसे? मानव को मानव बनने के लिए मानवीय गुणों का पालन करना होगा, उसका अनुसरण करना होगा, तब जा कर वो मानव बनेगा अन्यथा मानव रूप में वो भी अन्य पशुओं के समान ही एक पशु है।

हे मनुष्यों इश्लिये तुमसे कहता हूँ ‘ईश्वर वाणी’ लेख पड़ो व सुनो व औरो को भी सुनाओ ताकि तुम जान सको मानव क्या है, कैसे बना जाए, कैसे मेरा प्रिय बना जाए, कौन सा मार्ग जो तुम्हे मुझ तक पहुचाये वो अपनाया जाये, ‘ईश्वर वाणी’ लेख खुद मेरे द्वारा बताई वाणी व बातें हैं, जो जगत व जीवों के कल्याण हेतु मैंने तुम्हें बताई हैं, इसलिए इन्हें यू न व्यर्थ समझना अपितु इसका पालन कर श्रेस्ट जीवन पाना, क्योंकि ये मेरी वाणी हैं, और में परमेश्वर हूँ।

कल्याण हो

Sunday 18 February 2018

ईश्वर वाणी-235- ईश्वर का धर्म



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यद्धपि तुम मुझे अपनी अपनी मान्यता, भाषा, क्षेत्र व समय के अनुसार अनेक नामों से पुकारते हो। सदा उसी मेरे नाम को तुम सत्य समझते हो जिस नाम पर तुम्हे मेरा विश्वास है, उसी रूप को सत्य समझते हो जिसपर तुम्हें विश्वास है, किन्तु जिस मेरे नाम पर तुम्हें विश्वास नही, मेरे जिस रूप पर तुम आस्था नही रखते वो असत्य भी तो नही।

जैसे ‘विश्वास’ शब्द को कोई ‘भरोसा’ कोई ‘ऐतबार’ कोई ‘यकीं’ कहता है किँतु अपने अपने शब्द पर तो सबकी आस्था वही दूसरों के शब्दों पर नही जबकि सभी का अर्थ एक ही है।

इसी प्रकार तुम मुझे चाहे जिस रूप में जिस नाम से पुकारो, पर मुझे पुकारो तथा गलत कर्मो से भय खाओ।
हे मनुष्यों यदि मैं तुम्हारी मान्यता अनुसार अलग होता तो तुम्हारी तरह मैं भी भृमित हो कर ईश्वर, अल्लाह, गॉड, भगवान, सद्गुरु सब मिलकर आपस में लड़ रहे होते, अपने अपने धर्म, जाती, भाषा, क्षेत्र, सम्प्रदाय को ले कर लड़ रहे होते, सन्सार में अनेक स्वर्ग व ईश्वरीय धाम होते। हर स्वर्ग हर धाम हर एक अलग जाती, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा, क्षेत्र के व्यक्ति का अलग होता, और जैसे तुम इस भौतिक देह से आपस में लड़ते हो वैसे ही सूक्ष्म शरीर में भी लड़ते, और अपने अपने स्थान को श्रेस्ट बता लड़ते रहते।

किंतु ऐसा नही है, ये भेद भाव तुमने खुद बनाया है मैंने नही, क्योंकि मैं एक ही हूँ, देश काल परिस्थिति के अनुरूप ही मैं जगत में अपने अंश को भेजता हूँ मानव व जीव जगत के कल्याण हेतु तथा तुम्हें मानवता का पाठ पढ़ा एकजुट करने के लिये।

किंतु तुम मनुष्य अपनी तूच सोच के कारण मेरे उद्देश्यों को गलत दिशा में मोड़ कर मानव व जीव जगत का नुकसान व उन्हें हानि पहुंचाते हो, अपने भेद भाव के कारण मुझमे भी भेद करते हो, ये भूल जाते हो श्रष्टि और समस्त जीवों को जन्म देने वाला, समस्त आत्माओ का ईश्वर मैं परमेश्वर परमात्मा हूँ,  मैं एक हूँ, तुम व समस्त ब्रह्मांड मुझमे ही विराजित हैं, किन्तु अज्ञानता के कारण जो तुम मानवता का नाश करते हो तो निश्चय ही मेरे क्रोध के भागी बनते हो क्योंकि मेरा कोई धर्म नही जाती नही भाषा नही क्षेत्र नही अपितु हर स्थान पर हूँ क्योंकि सब कुछ मेरा ही तो है आखिर मैं ही इकलौता सृष्टि का मालिक जो हूँ।“

कल्याण हो








सद्गुरु श्री अर्चना जी की ईश्वर वाणिया

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Saturday 17 February 2018

ईश्वर वाणी-234, एकेस्वर अर्थात एक ही ईश्वर



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों मैं आज तुम्हें बताता हूँ कि समस्त संसार व जीवो व समस्त बब्रह्माण्ड का मालिक मैं ही हूँ, मेरा कोई रूप व आकर नही, में ही समस्त आत्माओ का स्वामी होने कारण परमात्मा हूँ।
हे मनुष्यों यद्धपि बहुत से लोग मुझे साकार व बहुत से निराकार रूप में मानते हैं, किंतु अब बहुत से लोग मुझे निराकार रूप में मानने लगे हैं, ऐसा इसलियें क्योंकि वो अपनी प्राचीन सभ्यता जो कि मूर्ति पूजा के रूप में विकसित थी उसे त्याग चुके हैं और आज एकेस्वर के पथ पर चल पड़े हैं।

हे मनुष्यों सन्सार में एकेस्वर का होना आज के समय में बहुत ही आवश्यक हो चुका था, प्राचीन काल मे जब मूर्ति हर स्थान पर चलन में थी तब मनुष्य केवल खुद जिस देवी/देवता पर यकीं रखता था उन्हें ही श्रेस्ट कहता व खुद को ही श्रेस्ट मान सभी को नीचा समझता था जिसके कारण लोग आपस में बेर भाव रखते थे, इसलिए संसार को एकजुट करने के लिये एकेस्वर की स्थापना बहुत ही आवश्यक हो गयी।

संसार मे अनेक समुदाय थे, कई जाती व उपजातियां थी जो अलग अलग रूप में मूर्ति पूजा करते थे, व खुद को व खुद जिसकी उपासना करते वही उनकी दृष्टि में श्रेस्ट होते, वो अक्सर कमजोरसमुदाय व जाती पर आक्रमण करते थे तथा जो जीत जाता वो हारे हुए के मंदिर व आराधनालय को नष्ट करते व जबरन अपनी परंपरा व अपने देवी देवता की उपासना उन पर धोपते, जिससे सन्सार में अराजकता बढ़ती गयी तथा एक ही ईश्वर की धारणा को बल मिला जिसने समस्त संसार को  एक सूत्र में बाँध कर सभी को एक समान मानव बता एक ही धर्म मानव धर्म की मानसिकता को बल दिया, इस प्रकार जो छोटे छोटे राज्य कमजोर राज्यो पर हमला कर वाह के मंदिर तुड़वा साथ ही अपने अनुसार पूजा पद्धति को बढ़ावा देने की सोच पर रोक लगाई।

इस प्रकार समस्त संसार आज पहले की अपेक्षा श्रेस्ट बना है किँतु अब फिरसे पुरानी मानसिकता सर उठाने लगी है जो वही कर रही है जो पहले लोग करते थे, किंतु यदि इस मानसिकता पर रोक नही लगी तो फिर एक नए धर्म का उदय होगा अथवा मानव जाति का विनाश, इसलिए ये तुम्हें सोचना है कि तुम क्या चाहते हों साथ किस दिशा में समाज को ले जाना चाहते हों”

कल्याण हो

ईश्वर वाणी-233, ईश्वर का स्वरूप साकार अथवा निराकार

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हें मैं पहले ही मेरे साकार अथवा निराकार रूप के विषय मे बता चुका हूँ किंतु आज फिर से तुम्हें बताता हूँ मेरे साकार और निराकार रूप के विषय में।

हे मनुष्यों जो व्यक्ति तुमसे कहे कि ईश्वर के निराकार रूप को मानो, मूर्ति पूजा का त्याग करो, उस परमेश्वर को याद करो वो तुम्हें अपने द्वारा बताए ईश्वर को श्रेष्ठ बता कर कहेगा ये ही सत्य है बाकी असत्य इसलिए इस ईश्वर की पूजा करो, मंदिर और आराधनालय मत जाओ केवल इस स्थान जाओ जहाँ इस नाम का ईश्वर है।

हे मनुष्यों जो तुमसे कहे कि मूर्ति पूजा त्यागो, उस ईश्वर की पूजा करो जिसके विषय मे तुम्हे बताता हूँ, तो मनुष्यों उनसे कहना पहले तुम तो मूर्ति पूजा त्यागो अर्थात वो खुद मूर्ति पूजा करता है किसी न किसी रूप में।

कोई घर मे विशेष धार्मिक स्थान की पूजा करता है, घर पर भी वो उस स्थान पर ही मुख करके पूजा करता है जहाँ वो धार्मिक स्थान है, साथ ही कोई मूर्ति पूजा का मंदिर का विरोध करता है किँतु खुद किसी न किसी रूप में मेरी आराधना करता है, क्या तुमने कोई गिरजाघर देखा है जिसमे माता मरियम और येशु की तश्वीर या मूर्ति न हो, तो मूर्ति पूजा का विरोध करने वाले खुद मूर्ति या तश्वीर की ही आराधना करते हैं किंतु अन्य तश्वीर या मूर्ति पूजको के वो घोर विरोधी हैं, ऐसे व्यक्ति घोर पाखण्डी होते है।

हे मनुष्यो जो व्यक्ति मुझे निराकार कह पूजने की बात कहते हैं सत्य तो ये है वो खुद मूर्ति पूजक है साथ ही आधे अधूरे ज्ञान के मालिक हैं।
हे मनुष्यों मैं तुम्हें बताता हूँ यद्धपि तुम किसी भी मंदिर या आराधनालय जाओ किंतु उस मूर्ति के समक्ष उसे सत्य न मान कर उस आत्मा को सत्य मान कर पूजा करो जो परमेश्वर ने कभी इसी रूप में अपने ही एक अंश को धरती पर भेजा था, किंतु मनुष्यों ने अब उसके प्रतीक के रूप में ये मूर्ति बनाई है, अर्थात उस मूर्ति नही अपितु उस आत्मा की पूजा करो उस मूर्ति या चित्र के समक्ष जो कभी ऐसे ही रूप में धरती पर मौजूद थी और लोगों के दुख दर्द दूर करती थी।

इस प्रकार मूर्ति पूजा कोई दोष नही, यद्धपि मेरा कोई रूप नही आकर नही किंतु तुम मेरे उस रूप पर यकीं नही कर सकते।

एक विशाल सागर हूँ मैं, मुझमे से किसी ने एक कलस जल निकाल लिया और लोगों से कहा केवल यही जल स्वच्छ है, लोगों ने जल पिया किंतु समय के साथ इस जल में कुछ गन्दगी आ गयी, तभी फिर किसी ने एक थाल में जल भर लिया और कहने लगा कि यही जल स्वच्छ और स्वस्थवर्धक है, और लोगों ने पिया किंतु फिर कुछ मिलावट हुई उस जल में तो फिर किसी ने कटोरी किसी ने ग्लास किसी ने मटके से जल निकाला और लोंगो को पीने को दिया ये कह कर की ये जल स्वस्थ व अच्छा है, किन्तु समय के साथ सभी बर्तन के जल दूसित हो गए कारण दूसित मन दूसित हाथों से तुमने इसका सेवन शुरू कर दिया जिससे सभी जल खराब हो गए किन्तु मैं सागर रूपी जल अभी भी शुद्ध हूँ पहले कि भांति।

भाव ये है में ईश्वर रूपी जल हूँ और जिन मतो को तुम मानते हो जानते हो चाहे मूर्ति पूजक हो अथवा खुद को इनसे अलग कहने वाले, उन सबके बर्तन में रखा जल दूसित हो गया है क्योंकि इन्होंने गन्दे हाथ उसमे डाल दिये अर्थात मेरे द्वारा बताई गई सीख को गलत दिशा दे लोगो को भृमित कर मानव को मानव का शत्रु बना दिया जिससे ये जल दूसित हो गया। साथ ही अपने बर्तन में रखे जल को श्रेष्ठ व दूसरे के जल को दूषित कहा।

इस प्रकार सभी बर्तनों का जल दूसित हो गया, अर्थात जिस भी मान्यता पर यकीन करते हो चाहे साकार ईश की हो या निराकार ईश की तुमने अपने कटु व्यवहार से सबको दूसित कर दिया है किंतु शुद्ध तुम कर सकते हो, यदि किसी को नीच या कम न बता कर सभी रूप में विराजित मेरे अंशो की पूजा व सम्मान कर उचित स्थान प्रदान करो।
यदि तुम साकार निराकार की अवधारणा त्याग सभी रूप में केवल मुझे ही देखो, मुझे ही महसूस करो तो धीरे धीरे ये जल शुद्ध हो जाएगा और तुम मेरे प्रिय बनोगे"

कल्याण हो

Sunday 11 February 2018

ईश्वर वाणी-232 , ईश्वर के शरीर के अंग

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यूँ तो पहले भी तुम्हें मैं बता चुका हूँ आकाशीय दिव्य सागर और तैरते ग्रह नक्षत्रों के विषय में।

हे मनुष्यों इस समस्त ब्रह्मांड का निर्माण एक विशाल अंडे के विश्वोट व उसके निरन्तर विस्फोटों से हुआ। उसी में से जो तरल पदार्थ निकला उसी से श्रिष्टि में में विशाल सागर व पृथ्वी पर सागर, नदियां, हिमकुण्ड व धरती के नीचे पानी का विशाल भंडार बना।

जैसे ब्रह्माण्ड का कोई छोर नही, ये अनन्त है, ठीक वही मेरा एक रूप है जिसे तुम अपनी इन भौतिक आंखों से देखते हो। ब्रह्माण्ड के समुचित ग्रह नक्षत्र तारे मेरे ही शरीर के अंग है, जैसे तुम्हारे शरीर मे रक्त निरन्तर बहता रहता है जो तुम्हे जीवित रखता है वैसे ही ब्रह्मांड के वो निरन्तर बहने वाले छोटे बड़े पत्थर हैं जो किसी ग्रह से नही निकलते किन्तु निरन्तर आकाश में घूमते रहते हैं।
जैसे तुम्हारे शरीर मे कोई कमी आ जाती है जिससे रक्त दूसित हो जाता है साथ ही दूसित रक्त शरीर के निम्न भाग को बुरी तरह प्रभावित करता है वैसे ही जब आकाश के इन पत्थरों में कोई खराबी आ जाती तभी किसी ग्रह नक्षत्र से टकरा कर उसको नुकसान पहुँचाते हैं।
हे मनुष्यों इसलिये ये न भूलो की मैं ही आदि अंनत अविनाशी ईश्वर हूँ , हालांकि में निराकार हूँ किंतु जैसे तुम किसी जीव की मृत्यु के पश्चात उसकी आत्मा के अस्तित्व को अस्वीकार करते हों क्योंकि उसकी भौतिक देह मिट चुकी है और तुम केवल भौतिक देह से ही उसे जानते पहचानते व जीवित समझते हो।
वैसे ही तुम मेरे निराकार रूप को नही मानोगे, इसलिए आकाशीय दिव्य रूप को मैंने धारण किया, समस्त ग्रह नक्षत्रों को अपना अंग बनाया ताकि जब तुम आकाश को देखो तो मेरा अस्तित्व याद करो साथ ही अपने कर्तव्य जो तुम्हें मैंने करने को दिये"।

कल्याण हो


सद्गुरु श्री अर्चना जी की ईश्वर वाणिया

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