Wednesday 5 September 2018

ईश्वर वाणी-265, परम व सच्चा सुख

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों तुम्हारे दुख का कारण केवल भौतिक रिश्तों और भौतिक वस्तुओं के प्रति मोह है।

यद्धपि ये दुनिया ही एक माया अर्थात छलावा है, जो आज जैसा है कल वो न ऐसा होगा, जैसे तुम्हारा शरीर तुम्हारे जन्म से ले कर अब तक कितने ही रूप बदल चुका है और अंत मे एक दिन ये तुम्हारी आत्मा को भी खुद से दूर कर पंच तत्व में विलीन हो जायेगा, अर्थात ये तुम्हारी भौतिक देह भी एक माया ही है।

हे मनुष्यों में तुमसे कहता हूँ तुम इस माया का त्याग कर उस सत्य का अनुशरण करो जो तुम्हे वास्तविक सुख व शांति देता है, जो तुम्हे मुझ तक लाता है।

यद्धपि में ये नही कहता कि अपने भौतिक रिश्तो को त्याग कर वैरागी बन जाओ बल्कि उनका निर्वाह करते हुए मुझमे लीन हो जाओ, नित्य कर्म करते हुए मेरे बताये मार्ग पर चलो मेरे ही रूप को हॄदय की आँखों मे बसा मेरा ही नाम जपो, निश्चित ही तुम अपने समस्त दुखो से मुक्ति पाओगे में तुम्हे असीम शांति दूँगा, में परमात्मा हूँ।"

कल्याण हो

Chand alfaaz

[03/09 11:57 am] Meethi-khushi: Arz kiya hai
"kisi ko paane ka naam hi agar mohabbat hota-2

To aaj Krishna naa m bhi bin Radha ke adhura hota".....
[03/09 12:01 pm] Meethi-khushi: "ye jaruri nahi mohabbat mein kuch kar guzar jaaye haam,

Ae mere hamdam aise mile aaj ki tum Radha aur Krishan ban jaye ham"👌👍

कविता-टूट कर गिरता एक तारा हूँ मैं







“आसमां से टूट कर गिरता एक तारा हूँ मैं
कभी जो भी शान हुआ करता था महफ़िल की

आज लोगों की आंखों का बेबस एक नज़ारा हूँ मै
नज़्में में भी शान हुआ करती थी इस साहिल की

आज ज़मीन पर निशां ढूंढता कितना हारा हूँ मै
मोहब्बत की ज़माने से बस ये हरकत ज़ाहिल की

कभी आसमां में मेरा भी वज़ूद था औरो की तरह
बेवफ़ा से वफ़ा की उम्मीद ये अदा बस काहिल की

नाम भूल बैठा अपना शोहरत से भी आज मारा हूँ
कभी जो भी शान हुआ करता था महफ़िल की

“आसमां से टूट कर गिरता एक तारा हूँ मैं
कभी जो भी शान हुआ करता था महफ़िल की-२"

Wednesday 8 August 2018

कविता-उनसे मिल जाये कही




“ये जरूरी तो नही उनसे मिल जाये कही
जरूरी तो ये है उनके दिलमे बस जाए कभी

मोहब्बत की कहानिया सुनी हमने बहुत
काश हमारी भी दास्तान कही जाए कभी

पग पग गिरे फिर उठ कर चले हम यहाँ
अब किसी का साथ काश मिल जाये कभी

‘मीठी’ बातो से दिलमे वो ऐसे बसने लगे
‘खुशी’ से इकरार उन्हें भी हो जाये कभी

ज़िन्दगी की दौड़ में ‘खुशी’ के पल खो गए
‘मीठी’ के इश्क में ‘खुशी’ से झूम जाये कभी

नज़दीक होने पर तो सब देते है साथ यहाँ
दूर जा कर भी जो दिलमे रह जाये कभी

ये जरूरी तो नही उनसे मिल जाये कही
जरूरी तो ये है उनके दिलमे बस जाए कभी-२”

Copyright@Archana Mishra

Friday 3 August 2018

ये मेरी और तेरी कहानी है-कविता

“ये मेरी और तेरी कहानी है
यहाँ पर एक राजा और रानी है

इश्क में दीवाने दो दिल कैसे
मीठी-खुशी की हुई दीवानी है

मिली नज़रो से नज़र ऐसे
हुई ये कैसी नादानी है

इश्क में कैसे डूबे ये दो दिल
छाई ये इन पर ये रवानी है

भुला चुके जमाने को हम
लोग कहते हैं ये तो जवानी है

मिले दो दिल ऐसे फिर देखो
कैसी ये मोहब्बत की निशानी है

ये मेरी और तेरी कहानी है
यहाँ पर एक राजा और रानी है-2”

कॉपीराइट@अर्चना मिश्रा

Wednesday 25 July 2018

ईश्वर वाणी-264, प्राणियों पर दया

ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यूँ तो तुमने कई धर्म ग्रंथ पड़े सुने होंगे, उनकी कई कहानियां सुनी होंगी, कई कहानियों में ‘भगवान’ को पशु रूप में अवतार ले कर दुष्टों का अंत करना पड़ा।
दुनिया के प्राचीन धर्म ग्रंथों व कथाओं के अनुसार कई पशु पक्षी बेहद पवित्र व पूजनीय होते थे, किंतु वर्तमान समय मे उन धार्मिक मान्यताओं को लोगों द्वारा अस्वीकार कर नए धर्म व मान्यता का उदय हुआ, प्रारम्भ में तो इसका उद्देश्य नेक था, एकता, भाईचारा, दया, करुणा, समानता जैसी भावना थी किंतु समय के अनुरूप लोगों ने स्वार्थवश इसमे परिवर्तन कर सिर्फ अपने फायदे की बातों को जोड़ मानव को मानव का ही शत्रु बना दिया,जब मानव अपनी ही जाती का घोर शत्रु इस कदर बन बैठा तो अन्य जीवों के विषय मे क्या सोचेगा।

किँतु दुनिया की प्राचीन मान्यताओं व कथाओ के अनुसार साथ ही हिन्दू धर्म मे ‘भगवान’ द्वारा निम्न पशुओं का अवतार ले दुष्टों का अंत जैसी कथा का सार ये है “संसार के समस्त जीव मेरी संतान हैं, कोई मनुष्य यदि अपनी जाति को किसी भी तरह श्रेष्ट कहता है व अन्य जीवों को तुच्छ समझता है तो उससे अज्ञानी कोई नही, मनुष्य ही आत्मा को भौतिक देह के अनुसार भेद करता है किंतु मे नही, मेरे लिये सभी जीव आत्माएं समान है, मे सभी से समान प्रेम रखता हूँ।

हे मनुष्यों कई मनुष्य अपनी आधुनिक मान्यता के अनुसार कहते हैं कि मनुष्य को ईश्वर अर्थात मैंने अपने जैसा बनाया है, और इसलिए उसको अधिकार है जो चाहे वो करे धरती पर, ऐसे मनुष्य अन्य जीव जंतुओं को केवल जीभ के स्वाद से नापते है किन्तु ऐसा मैंने नही किया ये सब उनकी अपनी तुच्छ मानसिकता है।

मनुष्य भी अन्य जीवों की तरह ही मुझे प्रिये है, और मैं इंसान जैसा दिखता हूँ ये सच नही, क्योंकि मेरा कोई रूप नही, और यदि मनुष्य ही मुझे प्रिये होते तो मै श्रष्टि की रक्षा हेतु पशु पक्षियों का रूप न धारण करता।

हे मनुष्यों इसलिये मै तुमसे कहता हूं जीवो पर दया रखो, प्रेम भाव रखो, निरीहो की रक्षा करो, ये न भूलो की तुम्हें मैंने जैसे बनाया वैसे ही इन्हें भी बनाया, वैज्ञानिक आधार पर तुम्हे बताता हूँ तुम्हे और इन समस्त प्राणियों को बनाने वाले ये अति सूक्ष्म जीव है इस कारण तुम सब एक से ही उतपन्न हुए हो और वो एक जिसे मेरे ही रूप ने बनाया है, इसलिए सभी जीवों से प्रेम रखो न कि आनंद के लिए अथवा मुँह के स्वाद के लिए उनकी हत्या करो अथवा घृणा भाव रखो।"

कल्याण हो

Friday 13 July 2018

ईश्वर वाणी-263, प्रेत, भूत मोक्ष व अनन्त जीवन

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हे मैं अनेक जन्म व योनियो के विषय मे बता चुका हूँ, किँतु आज तुम्हें मैं भूत व प्रेत योनि के विषय में बताता हूँ, आखिर देह त्यागने के बाद कौन सी आत्मा प्रेत योनि में प्रवेश करती है और कौन सी भूत योनि में और कौन सी आत्मा मोक्ष को पाती है।

हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हारे जन्म के समय से पूर्व ही तुम्हारी मृत्यु तेय हो जाती है साथ ही ये निश्चित हो जाता है कि तुम्हे इस जन्म के बाद मोक्ष मिलेगा या प्रेत या भूत योनि में रह कर समय व्यतीत करना होगा।

जिस व्यक्ति की मृत्यु अचानक किसी हादसे में हो जाती है, या कोई व्यक्ति किसी कारण आत्म हत्या कर लेता है, यदि किसी की अचानक हत्या कर दी जाती है,  ऐसे व्यक्ति खुद को सांसारिक बंधनो में बंधा ही समझते हैं, और वही ध्यान और आकर्षण अपने प्रियजनों से चाहते हैं जैसे जब वो जीवित थे, दूसरे शब्दों में ऐसी आत्माये अपने को मृत नही समझ पाते अपनी मृत्यु को स्वीकार नही कर पाती, ऐसी ही आत्माये प्रेत कहलाती है, ये वो अवस्था है जिसमे जीवन और मृत्यु के बीच सूक्ष्म देह फसी रहती है, और खुद को भौतिक देह के समान ही महत्व प्रदान करवाना चाहती है, और यदि इन आत्माओं की इच्छा पूर्ण नही होती या थोड़ी भी ये नाराज़ होती है तब अपने ही परिवार को हानि पहुंचाने में भी समय नही लगती, तभी इनकी शांति की प्रार्थना व पूजा अनिवार्य होती है अन्यथा ये कई युगों तक यूँही भटकती रहती हैं।

वही भूत ये वो अवस्था होती है जब प्राणी को ये पता होता है कि उसकी मृत्यु हो चुकी है, उसे अब भौतिक रिश्तों और भौतिक वस्तुओं से कोई मतलब नही, वो एकांत में रह कर केवल अपनी मुक्ति की कामना करती है, औरजब निश्चित समय आता है उसे मुक्ति मिल जाती है और आत्मा नए जीवन मे प्रवेश करती है, आमतौर ये आत्माये शांत होती है और मुक्ति की अभिलाषी होती है।

वही मोक्ष प्राप्त आत्मा देह त्यागने के बाद बहुत जल्दी ही दूसरा जन्म ले लेती है, इससे उन्हें प्रेत व भूत योनि में नही भटकना पड़ता, ये सब उसके कर्म पर निर्भर होता है, औरकर्म इसके जन्म के पूर्व ही निश्चित हो जाते हैं।

हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हारे लिये ये निम्न रूप व योनियां हो किंतु मेरे लिए तुम सब एक आत्मा हो, जो मुझसे ही निकल कर मुझमे ही जब समा जाती है तब अनन्त जीवन और मोक्ष को प्राप्त होति है और मैं ईश्वर हूँ।"

कल्याण हो