Tuesday 30 April 2013

ईश्वर वाणी -34, ishwar Vaan-34

नमस्कार दोस्तों आज फिर हम हाज़िर है ईश्वर वाणी में आपसे ईश्वर द्वारा बताई गयी बातों को आपसे शेयर करने यानि की बाटने, दोस्तों हमने कुछ सवाल प्रभु से करे जो हमारे मन में उठे थे और उन सवालों का जवाब प्रभु ने बड़े ही सहज और आसन शब्दों में हमे दिया,  आप अब सोच रहे होगे की आखिर हमने क्या सवाल प्रभु से करे और उनका क्या जवाब उन्होंने हमे दिया, चलिए हम और इंतज़ार आपको नहीं करवाते और बताते हैं की क्या सवाल हमने उनसे करे और क्या उन्होंने हमे उनका जवाब दिय। 


प्रश्न-१ ?  हमने प्रभु से पूछा की भगवंत पाप और गलती करने में क्या अंतर है??

प्रश्न- २? हमने प्रभु से पूछा की भगवंत पाप और गलती करने वाला मनुष्य क्या छमा का पात्र होता है या फिर नहीं या फिर गलती करने वाला होता है और पाप करने वाला नहीं या फिर पाप करने वाला छमा के काबिल  होता है और गलती करने वाला नहीं, प्रभु कृपया मार्गदर्शन करे?


उत्तर-१* 
                                                      पाप   
प्रभु बोले " जो कार्य अपने स्वार्थवश किया जाता है तथा जिसमे केवल खुद को ही फायदा होता है किन्तु दुसरे किसी निर्दोष प्राणी को तकलीफ होती है, लेकिन  ऐसा कार्य करने वाला जानता है की उसके कार्य से किसी निर्दोष को तकलीफ होगी किन्तु फिर भी वो अपने स्वार्थ के वश में और केवल खुद के फायदे के लिए और खुद की ख़ुशी के लिए  ऐसे कार्य करता है तो ऐसे कार्य पाप की श्रेणी में आते हैं, प्रभु कहते हैं की पाप करने वाला जातना है की वो क्या कर रहा है और उसके इस कार्य से किसे नुक्सान और उसे फायदा हो रहा है किन्तु फिर भी वो ऐसा करता चला जाता है, ऐसे व्यक्ति के कार्य को पाप कहा जाता है जो सब कुछ जान करा और समझ कर करते है। "


                                                गलती 

प्रभु बोले " जो कार्य नादानी और अज्ञानतावश किया जाता है यधपि उसके कार्य से किसी को नुक्स्सान भले हुआ हुआ हो वो गलती की श्रेणी में आता है क्यों की ऐसा करने वाले को सही और गलत का अंदाजा ही नहीं था, यदि होता तो वो ऐसा कार्य कदापि नहीं करता जिससे किसी का अहित होता, गलती करने वाले व्यक्ति को जब भी अपनी गलती का अहसास होता है तो वो अपने कार्यों के लिए छमा याचना करता है अवं अपने कर्मों का प्रायश्चित करने को सदा तत्पर रहता है, 

प्रभु गलती करने वाले को एक अबोध बालक के सामान मानते हैं, वो कहते हैं जिस प्रकार एक अबोध बालक अज्ञानतावश खेल ही खेल में कोई कीमती वष्टु खो देता है अथवा तोड़ देता है फिर भी दंड का भागी नहीं बनता क्यों की उसने ऐसा अज्ञानतावश किया है, यदि वो जानता की उसने किया क्या है या कर क्या रहा है तो वो ऐसे नुक्सान वाले कार्य को करता ही नहि। "

इस प्रकार प्रभु ने हमे गलती और पाप में अंतर समझाया।



उत्तर- २*                                पाप 


    प्रभु कहते हैं की जो कार्य अपने स्वार्थ सिध्ही के लिए किये जाते हैं तथा जिनके करने से किसी निर्दोष प्राणी का अहित होता है ऐसे कार्यों को पाप कहते हैं जो कदापि छमा के काबिल नहीं होते, क्यों की ऐसे कार्य स्वार्थवशऔर केवल अपने हित के लिए किये जाते है और करने वाले को सही और गलत की पूर्ण समझ होती है फिर भी व्यक्ति अपने स्वार्थ की पूर्ती हेतु दुसरे निर्दोष प्राणी को नुक्सान पहुचाता है, ऐसे मनुष्य छमा के काबिल नहीं होते। 

प्रभु कहते है भले पापी व्यक्ति दंड से भयभीत हो कर छमा मांग ले, अपने पापों के प्रय्च्चित करने को भी तैयार हो जाए फिर भी उसे दंड मुक्त नहीं करना चाहिए क्यों की जब वो पाप कर रहा था तब भली प्रकार वो अपने कार्यों के लिए नियुक्त डंडों को भी वो जानता था किन्तु फिर भी वो ऐसे कार्य करता गया, इस प्रकार ऐसे मनुष्यों को छमा करना अनुचित होग। 

                                          गलती 

    प्रभु कहते हैं जो कार्य नासमझी में किये जाते हैं तथा जिनके करने करने का सही गलत का ज्ञान नहीं होता उन्हें गलती कहते हैं, ऐसे कार्य अज्ञानता के अभाव में किये जाते हैं तथा ऐसे कार्य करने वाले व्यक्ति छम के पात्र होते हैं, क्यों ऐसे व्यक्तियों को जब अपनी गलती और अपने कार्यों का ज्ञान होता है तब वो बिना विलम्ब करे अपने कार्यों के प्रायश्चित के लिए तैयार हो जाते हैं, तथा ऐसे मनुष्य को छमा  करना उचित होता है। 







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