Wednesday 10 April 2013

Ishwar Vaani(Hindi)-25 **तुझ **

ईश्वर  कहते  हैं की जो कोई खुद को तुझ समझेगा, खुद को छोटा समझ के सदा गरीब, असहाय, निर्बल, विकलांग, जरूरतमंद एवं पशु-पक्षियों के प्रति न सिर्फ दयावान होगा अपितु खुद को तुझ समझ के इनकी सेवा-सत्कार करेगा उसका हर पाप छमा  किया जाएगा एवं उससे मृत्यु पश्चात स्वर्ग की प्राप्ति होगी, किन्तु जो कोई खुद को बड़ा समझ के अवं अपने अहंकार एवं धन-दौलत के नशे में मस्त कर इनका निरादर करेगा वो चाहे जितनी भी पूजा-पाठ कर ले, दान-धर्म कर ले किन्तु उसका पाप छमा नहीं किया जाएगा, उसका अहंकार में किया दान ईश्वर कभी स्वीकार नहीं करेंगे, ऐसे मनुष्य मृत्यु पश्चात स्वर्ग के अधिकारी नहीं अपितु जन्म-जन्मान्तर तक मृत्यु लोक में रह कर विभिन्न यौनियों के दुखों को भोगते हैं, किन्तु जो मनुष्य भले ईश्वर भक्ति न करे किन्तु जो कोई खुद को तुझ समझ के , खुद को छोटा समझ के सदा गरीब, असहाय, निर्बल, विकलांग, जरूरतमंद एवं पशु-पक्षियों के प्रति न सिर्फ दयावान होगा अपितु खुद को तुझ समझ के इनकी सेवा-सत्कार करेगा उससे निश्चाय ही स्वर्ग की प्राप्ति होगी,




ईश्वर कहते हैं जो लोग सदेव भोतिक सुखों की प्राप्ति में लगे रहते हैं, जो लोग न उस परमेश्वर का नाम लेते हैं अपितु सदेव भोग विलास में लगे रहते हैं,गरीब, असहाय, निर्बल, विकलांग, जरूरतमंद एवं पशु-पक्षियों के प्रति दयावान नहीं होते अपितु सदेव अपने हित अवं अपने भोतिक सुखों के बारे में ही सोचते हैं उससे निश्चय ही मृत्यु के पश्चात कठोर पीड़ा का सामना करना पड़ता है, इसके साथ ही उन्हें कई योनियो तक इस्सी धरा पर जन्म-मरण के बंधन में बंधा रहना पड़ता है,



ईश्वर कहते हैं की परम सुख तो इश्वरिये सुख हैं जो मृत्यु के पश्चात प्राप्त होता है, प्रभु कहते  हैं की उन्होंने मानव जीवन उस परमेश्वर का साथ पाने और उसके द्वारा दिए गए विशेष उद्देश्यों की पूर्ती हेतु ही मानव को धरती पर भेजा  है किन्तु मानव अपने मूल कर्तव्यों को भूल तमाम भोतिक वाश्तुओं के भोग-विलास में लींन  हो कर ईश्वरिये  उद्देश्यों को भूल गया अथवा भूलता जा रहा है, ऐसे में मानव उस सच्चे सुख जो की इश्वरिये  साध्य में है उससे विमुख हो कर दुखों के भवसागर में पड़ कर जन्म जन्मान्तर की पीड़ा भोग रहा 


प्रभु कहते हैं मानव आज भोतिक सुखों को प्राप्त कर खुद को श्रेष्ट अवं बड़ा समझता है, किन्तु वो ये नहीं जानता की श्रेष्ठ अवं बड़ा केवल वो ही हो सकता है जिससे मैंने चुन हो, और मैं केवल उससे ही चुनता हूँ जो मेरी बताई गयी बातों पर चलता है अवं उससे निःस्वार्थ भाव से मानता है !!

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