Wednesday 24 January 2018

ईश्वर वाणी-228, आत्मा रूपी नमक

ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों जैसे भोजन चाहे कितना भी स्वादिष्ट क्यों न हो किंतु बिना नमक के वो स्वादहीन ही होता है, किंतु यदि भोजन को स्वादिष्ट बनाने वाले नमक का ही स्वाद बिगड़ जाए तो क्या उसका उपयोग भोजन को स्वाद प्रदान कर पायेगा?

हे मनुष्यों तुम्हारी आत्मा वो ही नमक व तुम्हारी देह वही स्वादिष्ट भोजन है, जैसे भोजन का स्वाद बिना नमक के नही है वैसे ही ये देह कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो बिन आत्मा के उसकी कोई अहमियत नही अपितु मिट्टी की काया मात्र है।

हे मनुष्यों इस देह की अशुद्धता को स्नान करके दूर किया जा सकता है किंतु आत्मा की अशुद्धता को केवल अच्छे विचारों और सत्कर्मों से ही दूर किया जा सकते है। क्योंकि ये आत्मा ही शरीर रूपी भोजन का नमक है और यदि इसका स्वाद बिगड़ा तो पूरा देह रूपी भोजन ही बिगड़ जाता है और दुःख पाता है।

इसलिये हे मनुष्यों सुंदर आचरण करो साथ ही जितना ध्यान तन को साफ और सुंदर बनाने के लिए करते हो आत्मा को सुंदर बनाने में उसका एक मात्र हिस्सा भी कर लेते हो तो इस भोजन रूपी देह को अति सुंदर और स्वादिष्ट बना पाने में सफल हो पाओगे।

कल्याण हो

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