Wednesday 24 January 2018

ईश्वर वाणी-229, आत्मिक रूप से जानना

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों जैसे तुम मनुष्यों और अन्य जीव जन्तुओं को केवल उनकी देह से जानते हो उसी से पहचानते हो, उसी प्रकार तुमने मुझे भी देह के अनुसार ही बाट दिया है।

जिस प्रकार तुम्हरे सगे सम्बन्धी, अनुज, मित्र-,सखा, पड़ोसी, सहकर्मी, सह-साथी, अध्यापक, तुम्हारे सह-कर्मी, तुम्हारे कर्मचारी अथवा तुम्हारे मालिक आदि है, उन्हें केवल भौतिक देह के आधार पर ही जानते हो किंतु जब उनकी देह तुम्हारे सामने मिट जाती है तो तुम्हारे लिये उसका अस्तित्व खत्म हो जाता है क्योंकि तुम उसे केवल उस भौतिक देह से ही जानते हो इसलिए उसके नष्ट होने पर तुम्हारा उससे नाता भी खत्म हो जाता है।

किंतु यदि आत्मिक रूप से किसी को तुम यदि जानते हो तो पाओगे की संसार मे किसी की मृत्यु नही हुई किंतु देह जो कि भौतिक है नाशवान है उस वस्त्र के समान है जिसे तुम अपने भौतिक देह को ढकने के लिए करते हो वैसे ही आत्मा को ढकने के लिए ये भौतिक देह होती है, जैसे वस्त्र पुराना हो कर फट जाता है एवं नए वस्त्र की आवश्यकता पड़ती है तन ढकने हेतु वैसे ही आत्मा को नई देह की आवश्यकता होती है निश्चित समय के बाद।
जैसे तुम्हारी भौतिक देह कई बीमारियों का शिकार हो जाती जैसे तुमने कोई नया वस्त्र धारण किया किंतु गुडवत्ता की कमी या तुम्हारी ही लापरवाही के कारण कोई सिलाई निकल गयी या किसी नुकीली चीज़ में फस कर उसमें छेद हो गया तो उसको ठीक करने के लिए सिलाई करोगे।
वैसे ही भौतिक देह में आने वाली बीमारी, रोग व कष्ट हैं जिन्हें ठीक करने हेतु तुम्हे निम्न उपाये करने पड़ते हैं।

हे मनुष्यों जगत का जन्मदाता परमेश्वर में ही हूँ, मेरे ही अंश धरती पर देश, काल, परिस्थिति के अनुसार जन्म लेते हैं व धर्म की स्थापना करते हैं। चूँकि मुझसे ही जन्म लेने के कारण, मेरी ही आज्ञा अनुसार मेरी ही आज्ञा का पालन करने हेतु वो देश, काल, परिस्थिति के अनुसार जन्म लेते हैं।
हे मनुष्यों यद्धपि तुमने मुझे नही देखा है इसलिये मेरी तुम पर आज्ञा है कि तुम उन पर यकीन करो और अपने मानवीय कर्तव्यों का पालन कर मानव धर्म की स्थापना करो।
हे मनुष्यों यदि तुम अपने जानकर व्यक्तियो को आत्मिक रूप से जानते तो निश्चय ही उनके मिलने पर प्रसन्न व उनके जाने पर दुःखी न होते। साथ ही मानव का जैसे मानव से ये व्यवहार जाती, धर्म, सम्प्रदाय, रूप-रंग, ऊँच-नीच, गोरा-काला, भाषा, क्षेत्र, परंपरा, रीति रिवाज़ स्त्री-पुरूष आदि के आधार पर भेद भाव करते हो वैसा ही तुम मेरे साथ करते हो। किंतु यदि आत्मिक रूप से मुझे जानते तो निश्चित ही ऐसा व्यवहार न करते।

तुम नही जानते जगत का जन्मदाता व विनाशक में ही हूँ, जब जब जहाँ जहाँ मानवता की हानि हुई वहाँ वहाँ मैने ही अपने से अपने सामान अपने समस्त अधिकार अपनी समस्त शक्तिया दे कर देश, काल, परिस्थिति के अनुसार अपने से ही एक अंश को (जैसे अथाह सागर से एक बूँद निकलती है) भेजा तथा वहा के अनुसार धर्म (मानव धर्म) की स्थापना हुई किंतु मानवीय साम्राज्यवाद की नीति के कारण मानव ने मानव को गुलाम बनाने हेतु एक दूसरे पर शक्ति प्रदर्शन किया और जो विजेता हुआ उसने अपने मत के अनुसार हारने वालो को चलने पर विवश किया जिससे जाती, धर्म आदि के आधार पर भेद भाव बड़ा। ऐसा करने वालों ने मानव को मानव का शत्रु बना कर मुझे (मेरे द्वारा मानव धर्म की स्थापना हेतु भेजे मेरे ही अंश) ही देह के आधार पर बाँट दिया, जो कोई इस रीति को जो तुमने बनाई को तोड़ना चाहता है तुम ही तिरस्कार कर बहिष्कृत करते हो।

हे मनुष्यों यदि तुम केवल आत्मिक रूप से मुझे जानते न कि भौतिक काया से तो निश्चित ही तुम ऐसा न करते, ऐसा केवल अज्ञानता के वशीभूत हो कर करते हो।
इसलिए भौतिक नाशवान देह नही अपितु आत्मिक रूप से न सिर्फ अपने प्रियजनों को जानो अपितु मुझे भी भौतिक देह के अनुसार न जानो क्योंकि मैं ही आदि अंत और अनंत हूँ, में परमेश्वर हूँ

कल्याण हो

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