ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो तुमने हर किसी पवित्र ग्रंथ मैं स्वर्ग एंव अनेक ईश्वरीय लोक के विषय मैं सुना होगा, हर धर्म व सम्प्रदाय मैं स्वर्ग का वर्णन मिलता है,
किन्तु स्वर्ग गयी आत्मा को दोबारा जन्म मिलता है और ईश्वरीय लोक गयी आत्मा सदा के लिये मुक्त हो जाती है ऐसी मान्यता है, किन्तू वास्तव मै स्वर्ग और नर्क यही धरती पर ही है, पिछले जनम के अनूरूप इस जनम के मिलने वाले अन्नय सुख और उपलब्धियॉ ही स्वर्ग और मिलने वाले कश्ट और असफलतायें ही नर्क है,
किन्तु इसका अभिप्राय ये नही की ईश्वरीय लोक है ही नही, ईश्वरीय लोक है जहॉ अच्छे कर्म वाली आत्माये जाती है किन्तु ईश्वर का सानिध्य पा कर वो वापस नही आना चाहती किन्तु अपने अनन्य कर्म अनुसार जितने समय के लिये ईश्वरीय लोक मैं रहने का अवसर मिलता है उसके बाद पुन: उन्हे जन्म लेना होता है,
हे मनुष्यों ऐसा कदापि नही है की संसार मै मेरे जितने नाम उतने ही लोक है और न ही कोई अलग से स्वर्ग की व्यवस्था है, संसार मै जो आत्मायें शीघ्र ही अपने पुन्य कर्मो का फल पा लेती है वो फिर जन्म है, ऐसी आत्माओं के पाप व पुन्यों के आधार पर ही पुन: जीवन प्राप्त होता है,
किन्तु जिन आत्माऔं ने अपने पिछले अनेक जन्मों का प्रायश्चित कर इस जनम मैं एक भी ईस्वरीय व्यवस्था के विरूद्ध कार्य नही किया है केवल वे ही जनम मरण के बन्धन से मुक्ति पाते है,
किन्तु ऐसा कदापि नही है कि मुक्ति प्राप्त आत्मा फिर जनम नही लेती, नवयुग एंव ऩयी श्रश्टी के उत्थान के लिये उन्हे पुन: जनम मिलता है, जैसे देश/काल/परीस्तिथी के अनुसार मैने कितने ही जनम लिये और फिर इस भौतिक काया का त्याग किया, ऐसा ही नित प्रत्येक आत्मा करती है, याद रहे हर आत्मा समय समय पर जन्म अवस्य लेती है भले परम धाम प्राप्त ही क्यौ न हो, ऐसी आत्मायें श्रश्टी के नवनिर्मीण हेतु पन: जन्म ले धर्म और ईश्वरीय व्यवस्था का प्रसार करती है!!
हे मनुश्यों ये याद रखो समस्त श्रश्टी मैं केवल एक ही लोक है वही स्वर्ग एंव ईश्वरीय लोक है, जैसी बाकी तुम्हारी भावना व कर्म वैसा ही तुम्हें दर्शन प्राप्त होगा!!"
किन्तु स्वर्ग गयी आत्मा को दोबारा जन्म मिलता है और ईश्वरीय लोक गयी आत्मा सदा के लिये मुक्त हो जाती है ऐसी मान्यता है, किन्तू वास्तव मै स्वर्ग और नर्क यही धरती पर ही है, पिछले जनम के अनूरूप इस जनम के मिलने वाले अन्नय सुख और उपलब्धियॉ ही स्वर्ग और मिलने वाले कश्ट और असफलतायें ही नर्क है,
किन्तु इसका अभिप्राय ये नही की ईश्वरीय लोक है ही नही, ईश्वरीय लोक है जहॉ अच्छे कर्म वाली आत्माये जाती है किन्तु ईश्वर का सानिध्य पा कर वो वापस नही आना चाहती किन्तु अपने अनन्य कर्म अनुसार जितने समय के लिये ईश्वरीय लोक मैं रहने का अवसर मिलता है उसके बाद पुन: उन्हे जन्म लेना होता है,
हे मनुष्यों ऐसा कदापि नही है की संसार मै मेरे जितने नाम उतने ही लोक है और न ही कोई अलग से स्वर्ग की व्यवस्था है, संसार मै जो आत्मायें शीघ्र ही अपने पुन्य कर्मो का फल पा लेती है वो फिर जन्म है, ऐसी आत्माओं के पाप व पुन्यों के आधार पर ही पुन: जीवन प्राप्त होता है,
किन्तु जिन आत्माऔं ने अपने पिछले अनेक जन्मों का प्रायश्चित कर इस जनम मैं एक भी ईस्वरीय व्यवस्था के विरूद्ध कार्य नही किया है केवल वे ही जनम मरण के बन्धन से मुक्ति पाते है,
किन्तु ऐसा कदापि नही है कि मुक्ति प्राप्त आत्मा फिर जनम नही लेती, नवयुग एंव ऩयी श्रश्टी के उत्थान के लिये उन्हे पुन: जनम मिलता है, जैसे देश/काल/परीस्तिथी के अनुसार मैने कितने ही जनम लिये और फिर इस भौतिक काया का त्याग किया, ऐसा ही नित प्रत्येक आत्मा करती है, याद रहे हर आत्मा समय समय पर जन्म अवस्य लेती है भले परम धाम प्राप्त ही क्यौ न हो, ऐसी आत्मायें श्रश्टी के नवनिर्मीण हेतु पन: जन्म ले धर्म और ईश्वरीय व्यवस्था का प्रसार करती है!!
हे मनुश्यों ये याद रखो समस्त श्रश्टी मैं केवल एक ही लोक है वही स्वर्ग एंव ईश्वरीय लोक है, जैसी बाकी तुम्हारी भावना व कर्म वैसा ही तुम्हें दर्शन प्राप्त होगा!!"