Wednesday 13 April 2016

मेरी कलम से

"मैं जब आज अपने अतीत के बारे मैं सोचती हूं तो लगता है मैं क्या थी और आज क्या हूं, भले मेरे नाम कोई खास उपलब्धी न हो पर जो हूं जैसे हूं खुश हूं!!

आज से नौ साल पहले मै और लडकियों की तरह ही सोचती थी केवल अपने विषय और अपनी खुशी के बारे मैं, शायद इसलिए मोहब्बत जैसी दोखे वाली तीज़ को मैने हकी़कत समझा और नतीज़ा वही फरेब निकला, फिर वही रोना धोना भावुक होना!!

पर आज़ लगता है जो हुआ सही हुआ, वैसे भी ये सब मेरे बस से बाहर था, सिर्फ अपने लिये जीने की भावना मेरी कितनी गलत थी, मुझे तारीख तो नही पता पर शायद मार्च २०११ था वो जब आध्यात्म मै मेरी दिलचस्पी बडी और मैने सन्यास लेने का मन बनाया, लेकिन मोह माया मैं बंधा मेरा मन सन्यास न ले सका, फिर सितम्बर २०/२०११ को मेरी प्यारी बच्ची मुझे छोड ईश्वर के पास चली गयी, बहुत दुख हुई मुझे साथ ही अहसास हुआ दुख का कारण ये रिस्तौं के बन्धन ही है, यदी इनसे मुक्त हो जाये तो कभी दुख न मिलेगा,

इसलिए चर्च मैं नन बनने मैं गयी पर वहॉ भी मना कर दिया गया, आज सोचती हूं सही किया जो उन्हौने मुझे रखा नही क्यौकी मैं किसी एक मत या धर्म मै विश्वास नही करती, खैर मुझपर ईश्वर की विशेष कृपा थी, मुझे मेरे गुरू मेरे ईश्वर मिले जो आध्यात्म मैं मेरा आज मार्गदर्शन कर हमेशा नयी नयी बाते बताते रहते हैं,

आज देखा जाये तो मै अभी आधी सन्यासी और आधी संसारिक हूं, आज सत मैं मै अपने लिये जीती हूं, मेरी खुशी संसारिक भोगों मै नही बल्की प्राणी जाती की भलाई मै है, अगर कोई जीव दुखी है मैरी कोशिश होती है उसकी मदद करू शायद ईश्वर ने मुझे ईसीलिए चुना है, तभी बचपन से ही मैरे विचार सबसे अलग और प्राणी जाती के हित के ही रहै है,

हॉ संगत के कारण एक समय था जब मैने औरौं की तरह अपने बारे सोचा था पर वक्त ने मुझे बदल दिया, बहुत से लोग कहते है ये तुमने क्या किया सन्यास क्यौ ले लिया, बड़ा दीन समझते है वो, पर सच्चा सन्यासी/साधु/संत/महात्मा दीन नही क्यौकी उनके पास कीमती चीज़ होती है वो है संतुषटी, कुछ हद तक मैने भी उसे पा लिया है और उसे पाने मै अग्रसर हूं, दुनिया की सबसे कीमती वस्तु है ये पर जिसे न चोर ले जा सकते न ही किसी की नज.र इसे लगती है,

इसलिए अतीत से कई गुना आज़ मैं खुश हूं, अच्छा हुआ जो भी हुआ!!"

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