Monday 4 April 2016

ईश्वर वाणी-१३५, ईश्वर एक है

ईश्वर कहते है "हे मनुस्यो यु तो मै निराकार हूँ, किन्तु जो भी व्यक्ति मुझे साकार मान मेरी स्तुति करता है वो भी मुझे ही पाता है!!
जैसे किसी कझा मै पडने वाले दो विद्याथी किसी पाठ को याद करते है, एक पाठ को मन ही मन बिना अवाज निकाले याद करता है तौ दूसरा जोर जोर से पड कर उसे याद करता है,
अब दोनों ही पाठ याद कर परीक्झा मै उत्तीर्ण होते है,
अब इसमैं किसके पडने का तरीका गलत और किसका सही कहा जाये क्यौकी परीक्झा मै उत्तीर्ण तो दोनो हुये,
इस प्रकार हे मानवों तुम जिस नाम, रूप, विधी से मुझे पुकारोगे मुझे अवस्य पाओगे लेकिन खुद को श्रेष्ट और दूजे कम मानकर तुम मुझे नही पा सकते,
हे मानवो जैसे एक माता पिता के लिये उनकी सभी सन्तान समान होती है वैसै ही तुम सब मेरे लिये समान हो,
जैसै तुम्हारे घर पर तुम्हारे भाई बहन के साथ लडने पर माता पिता दुखी होते वैसे ही मै तुम्हारे जाति धर्म के झगडों से मै दुखी होता हूं,
जब मेरी द्श्टी मै केवल कर्म से व्यक्ति बडा छोटा है तो तुम मेरी सन्तान चाहे जिस नाम और रूप मैं मुझे पुकारे उसे तुम कम और खुद को अधिक कैैसे आक सकते हो,
तुम्हें ये अधिकार दिया किसने,
तुम्हारे भाई बहन तुम्हारे माता पिता को चाहे माँ बापू कहे या मम्मी पापा क्या उनमें भेद करते हो, नहि क्यौकी वो इस मिट्टी की काया के साथ तुम्हारे अपने है, और जगत के माता पिता द्वारा जो तुम्हें परीवार दिया है उससे तुम घ्रुणा करते हे,
ऐसा व्यक्ती निसन्देह मानव रूप मै शैतान का प्रतिनिधी है!!"

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