Wednesday 6 April 2016

ईश्वर वाणी-१३७, ईश्वर की द्रश्टी मैं सब समान


ईश्वर कहते हैैं, "हे मनुष्यों मेरी द्रश्टी मैं सब जीव समान है, मानव का मानव से भेद और अन्य जीवों मै भेद केवल तुम ही कर सकते हो जो मेरे द्वारा बनाई व्यवस्था मैं नही है, जिस प्रकार का भेद-भाव मानव सहित तुम अन्य जीवों के साथ करते हो!!
हे मनुष्यों तुम जीव की भौतिक काया, मानव मैं जाति धर्म समप्रदा़य भाषा सभ्यता संस्क्रति रंग रूप अमीर गरीब देख कर उनमें भेदभाव करते हो,
किन्तु मेरी द्रश्टी मैं सभी जीव समान है इसलिये मैं सभी से समान प्रेम करता हूँ, क्यौकि मै किसी भी जीव को उनके भैतिक शरीर के आधार नही अपितु आत्मा के आधार पर देखता हूँ,
आत्मा जिसकी न जाति न धर्म न रूप न रंग न आकार न भाषा होती है, और इसलिए आत्मा मेरा ही एक अंश कहलाती है,
धरती पर अपने भैतिक स्वरूप में आने पर ही जीव पशु-पछी, पेड-पैधे, स्त्री-पुरुष, के साथ विभिन्न जाति-धर्म-समप्रदाय, भाषा, सभ्यता-संस्क्रति, अमीर-गरीब (देश/काल/
परिस्तिथी) के अनुसार होता है,
किन्तु अपने भौतिक शरीर मै होने के बाद भी सभी जीव मेरे लिये आत्मा ही है,
है मनुष्यौ तभी तुम जीवन से प्रेम और मृत्यु से भय खाते हो, तुम्हारी द्ष्टि में भौतिक शरीर का अन्त ही मृत्यु है किन्तु मेरे समझ इसका कोई मोल नही और न ही किसी को मृत्युआती है बस आत्मा वस्त्र के समान शरीर बदलती रहती है, हे मनुष्यौ ये न समझना ये तुम्हारा पहला जन्म है, न जाने कितनी बार और कितने रूपों मै तुम जन्म ले चुके हो"!!

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