Saturday 9 April 2016

ईश्वर वाणी-१३८, महात्मा

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यो यध्यपि मै तुम्हे इससे पूर्व साधू, संत, सन्यासी के विषय मैं विस्तृत जानकारी दे चुका हूं, किन्तु आज तुम्हे 'महात्मा' के विषय मैं बताता हूं,

ये आवश्यक नही एक महात्मा वन वन भटकने वाला, भिछा मॉगने वाला अथवा एक सन्यासी जैसा दिखने वाला उनके जैसा वसत्र धारण करने वाला  हो,

हे मनुष्यों 'महात्मा' शब्द दो शब्द 'महान' और 'आत्मा' से मिलकर बना है, जैसा की नाम से पता चलता है महान आत्मा यानी महात्मा,

महात्मा वो व्यक्ति होता है जो अपने जीवन को अपने निजी स्वीर्थ मैं न लगाकर सम्पूर्ण प्राणी जाती के हित के लिये समर्पित कर देते हैं,
वो गृहस्थ भी हो सकते हैं और अगृहस्थ भी,  किन्तु वो मानव द्वारा निर्मित किसी व्यवस्था का अनुसरण नही करते अपितु ईश्वरीय व्यवस्था का अनुसरण कर अपने जीव और समाज के कल्याणकारी कार्यो मैं सलग्न रहते है,

महात्मा व्यक्ति का पूरा जीवन केवल प्राणी जाती की सेवा और उनका कल्याण करना होता है, उनका जीवन किसी भी प्रकार के भेद भाव से दूर सभी जीव जन्तुऔं से प्रेम और उनका कल्याण करना ही मात्र होता है, कोई इनकी आलोचना करे या समर्थन ये किसी पर ध्यान नहीं देते और निरन्तर प्राणी जाती के हित एंम कल्याणकारी कार्यों मैं निरन्तर सलग्न रहते हैं"

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