Monday 7 November 2016

ईश्वर वाणी-१६०, 'ऊँ' की ध्वनी

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों संसार की सर्व प्रथम ध्वनी 'ऊँ' ही है, समस्त ब्रहमाण्ड की रचना इसी ध्वनी से ही हुई है, समस्त जगत की रचना एवं शक्ती का संचालक यही संसार का प्रथम शब्द है,

हे मनुषयों सभी जीवों जिह्वा से निकला प्रथम शब्द 'ऊँ' ही है, किसी नवजात के रूदन को तुम देखो, उसके मुख से निकली ध्वनी 'ऊँ' ही है,
किसी पशु-पक्छी के मुख से निकली ध्वनी तुम सुनो वो भी 'ऊँ' ही है, ये वही ध्वनी है जो देह बंधन को त्याग समस्त जीव आत्माऔं को एक दूसरे से जोड़ समस्त भेदों को समाप्त करती है,

हे मनुष्यों इसलिये समस्त मंत्र-श्लोक शुरू ही 'ऊ' की ध्वनी से होते है, ये ध्वनी न सिर्फ तुम्हारे शरीर तुम्हारी जिह्वा से निकलती है अपितु ये ध्वनी तुम्हारी आत्मा से निकल समस्त ब्रहमाण्ड मैं विचरण कर समस्त ब्रहमाण्ड से निकलती हुई 'ऊँ' की इसी ध्वनी से मिलकर मुझ तक पहुँचती है,

ये बिल्कुल वैसी ही प्रक्रिया है जैसे तुम्हारा रक्त विभिन्न कोशिकाऔं से होता हुआ मस्तिष्क तक पहुँता है, ठीक वैसे ही समस्त जगत एवं समस्त जीव कोशिका हैं, ये मंत्र रक्त है और मस्तिष्क मैं ही हूँ,

हे मनुष्यों समस्त जगत समस्त बोली भाषा एवं ध्वनी केवल माया है केवल एक 'ऊँ' ही वही ध्वनी है जो स्रष्टी से पूर्व थी आज भी है और सदा रहेगी, परम सत्य केवल यही है, स्रष्टी निर्माण के समय एवं प्रलय के समय और उसके पश्चात भी यही रहेगी,

समस्त देवताऔं की जननी वेदो की जननी शक्ती की जननी केवल यही ध्वनी है, समस्त जीवों को समान लाने और बनाने वाली ध्वनी यही है, यही वो ध्वनी है जो मुझसे निकती है, ये मेरी ध्वनी है, मैं ईश्वर जगत का जनक, पालन कर्ता एवं संहारक,

हे मनुष्यों विशाल सागर की लहरों, नदियों की धारा, पंछियों की चहचाहट, तुम्हारी श्वास व समस्त जीवों के ह्रिदय से निकलने वाली ध्वनी 'ऊँ' ही है,

'ऊँ' शब्द तीन शब्दों से मिल कर बना है और इन्ही तीन शब्दों मैं समस्त स्रष्टी की उत्पत्ती एवं विनाश एवं पुनरूत्थान जुडा़ हुआ है,

'अ' से जगत व प्राणी जीवन की उत्पत्ती, 'ओ' उसकी क्रियाशीलता, 'म' म्रत्यु एंव पुनरजन्म  यही है 'ऊँ' शब्द का सछिप्त परिचय,

हे मनुष्यो मुझे पूर्ण रूप से कोई नही जान सकता, पूर्ण रूप से जानने के लिये चारों युग भी कम पड़ जायेंगे, इसलिये हे मनुष्यों मै सदैव सभी युग मैं तुम्हैं सदा संछिप्त परिचय ही देता हूँ चाहे देश/काल/परिस्तिथी के अनुरूप मैं जहॉ भी जन्म लेता हूँ सदेव सछिप्त परिचय ही अपने द्वारा धरती पे भेजे अवतारी से तुम्हे बतलाता हूँ, कियौंकी पूर्ण परिचय का न आदि न अंत है!!!!"


कल्याण हो

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