Thursday 24 November 2016

ईश्वर वाणी-१६४, क्यों मूर्ति पूजा होती है


ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों आज़ तुम्हे मैं मूर्ति पूजा क्यों की जाती है, इसका क्या लाभ है, इसका क्या महत्व है इसके विषय मैं जानकारी देता हूँ!!

हे मनुष्यों जिस प्रकार तुम पर कोई संकट आया, तुम्हे तुम्हारी सहायता हेतु तुमने किसी को समीप न पाया, ऐसे मैं जब सब उम्मीद खोने के बाद भी अचानक तुम्हारी सहायता हेतु आ जाये जब सब रास्ते बंद हो, ऐसे मैं वही व्यक्ति तुम्हारे लिये भगवान हुआ,

जैसे- तुम्हारा करीबी बहुत बीमार हो, अस्पताल मैैं भर्ति हो, ठीक होने की उम्मीद न हो, ऐसे कोई कहे फलॉ चिकित्सक उसे ठीक कर सकता है, तुम उस चिकित्सक से मिले, अपने करीबी का उपचार कराया और वो ठीक भी हो गया, इस प्रकार साधारण सा चिकित्सक तुम्हारे लिये भगवान हो गया जिसकी वज़ह से तुम्हारा अपना ठीक हो गया,

इसी प्रकार यदि तुम्हें धन की अतिआवस्यकता है, कही से कोई सहायता प्राप्ती की आशा नही, ऐसे मैं कोई धन दे कर तुम्हारी सहायता कर दे, वो व्यक्ती तुम्हारे लिये भगवान हुआ,


हे मनुष्यों जिस प्रकार उस चिकित्सक ने तुम्हारे अपने को ठीक किया, जिस प्रकार उस व्यक्ति ने तुम्हारी सहायता की, तुम अपने जानने वालों को  और अधिक से अधिक व्यक्तियों को उन पर विश्वास करने हेतु कहोगे, लोगों को कहोगे ये चिकित्सक अच्छा है, असाध्य रोग भी ठीक कर देता है, ये व्यक्ति अच्छा है मुसीबत मै सहायता करता है, अब ये व्यक्तियों पर निर्भर करता है कौन कौन तुम्हारे कहे अनसार व व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर उन पर कितना विश्वास करते है!!

हे मनुष्यों तुम्हारी सहायता करने वाले चिकित्सक और निम्न व्यक्ति की सूरत के विषय मै तुमसे कोई पूछे, तुम्हारे पास कोई तस्वीर न हो तो तुम मन की कल्पना के आधार पर एक तस्वीर बनाते हो, वही सबको दिखा कहते हो यही है जिसने मेरी सहायता की, वक्त के साथ पीड़ी दर पीड़ी उन तस्वीरों मैं भी बदलाव होता रहता है, किंतु मूल भाव तो वही रहता है,

भाव है जो व्यक्ति भगवान रूपमें मूर्ति पूजा करते है, देश, काल, परिस्तिथी के अनुरूप वहॉ जिस व्यक्ति ने वहॉ की निरीह प्रजा और जीवों की रक्छा की, वहॉ के व्यक्तियों के लिये वे ही भगवान हुये, उन्ही की महिमा का उन्होने गुनगान किया, अपने मन के भाव व कल्पना के आधार पर मूर्ति का निर्माण करा अपने विश्वास के आधार पर उसकी आराधना की,

हे मनुष्यों सच्चे ह्रदय से की तुम्हारी प्रार्थना मुझ तक जब पहुँचती है चाहे मूर्ति के सकझ करो, चित्रों के समझ या निराकार रूप मैं, मैं तुम्हारी सहायता अवस्य करता हूँ किंतु प्रार्थना स्वीकारने से पूर्व मिला दु:ख तुम्हारे बुरे कर्मों का दण्ड मात्र होता है!!,


हे मनुष्यों देश,काल,परिस्तिथी के अनूरूप समाज़ को दुख और विक्रतियों से उबारने हेतु ही मैं अपने से एक अंश को उत्पन्न करता हूँ, उसे अपने समान ही अधिकार देता हूँ, धरती पर वो भौतिक शरीर धारण कर देह धारी माता से जन्म प्राप्त कर, देहधारी समस्त रिश्तों से जुड़ कर जगत व प्राणी कल्याण हेतु कार्य पू्र्ण कर मुझमें ही समा जाता है जैसे-भाप के रूप मैं सागर से निकला जल आकाश मैं जाता है और बारिश की बूँद बनकर फिर सागर मैं मिल जाता है!!

हे मनुष्यों इसी प्रकार जो साकार रूप मैं मुझे मानते है वह मूर्ति पूजक मुझे इसके माध्यम से पूजते है और जो निराकार मानते है उसी मैं पूजते है, चाहे जिस रूप मैं पूजों मैं सभी रूप मैं तुम्हारे साथ हूँ किंतु परम सत्य भी यही है संसार जिसकी इच्छा से बना मैं ईश्वर निराकार हूँ!!

हे मनुष्यों ईश्वर जिसकी इच्छा से जगत का निर्माण हुआ जीव-जंतुऔं का निर्माण हुआ, किंतु जब भी तुमने मेरी सत्ता को चुनौती दी मैने ही निरीहों की सहायता व श्रष्टी की रक्छा हेतु अपने ही एक अंश को अपने समस्त अधिकारों के साथ धरती पर भेजा, जो अपने कार्यों को पूर्ण करने के पश्चात वापस मुझमैं विलीन हो गया, यही अवतारी भौतिक देहधारी भगवान कहलाया,

भगवान जो भौतिक देह के साथ  जन्म लेते हैं, निश्चित समय के बाद उन्हे भी ये भौतिक शरीर त्यागना पड़ता है, किंतु ईश्वर अर्थात मैं अजन्मा अविनाशी हूँ  न जन्म मैं लेता हूँ न देह त्यागता हूँ किंतु श्रष्टी की प्रत्येक जीव आत्मा (देवता, भगवान, मानव व समस्त जीव-जंतु) मुझसे निकल कर निश्चित समय के बाद मुझमैं ही लीन हो जाती है, मैं ही परमधाम हूँ!!


कल्याण हो





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