Monday 14 November 2016

ईश्वर वाणी-१६२, सुख और दुख


ईश्वर वाणी-१६२, सु,ख और दुख
Archu Mishra - 9:20 pm
to archana0028
ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो तुम प्रत्येक दिन दुख और सुख का
अनुभव करते हो किंतु तुम्हें पता है ये होता क्या है????
हे मनुष्यों तुम्हारी लालसा, अपेक्छायें, उम्मीदें ही दुख है,
किंतु तुम्हारी संतुष्टी ही सुख है,
हे मनुष्यों यु तो तुम्हारे पास सुन्दर भवन है किंतु किसी जानकार या
पड़ोसी का घर तुम्हारे से अधिक बड़ा और सुंदर है, तो तुम्हारी लालसा वैसे
ही घर को पाने की होगी और पा भी लिया वैसा ही घर पा कर खुश हो ही रहे थे
कि फिर अगले ही पल सुंदर गाड़ी किसी की देखी
तो फिर उसे पाने की लालसा हुयी, तुमने वो भी ले ली, और खुश हो ही रहे थे
कि फिर लालसा जागी कोई नयी पोशाक या आभूषण हेते तो अच्छा होता, तुम उन्हे
न ले सके और दुखी हो गये,
तुम्हारे दुख का कारण आभूषण या पोषाक का न पाना नही अपितु तुम्हारी लालसा है,
किंतु किसी का संदर भवन, गाड़ी, पोषाक, आभूषण देख कर भी तुम्हारे मन मैं
उन्हे लेने की लालसा नही जागी अपितु जो जितना है उसी मैं संतुष्ट रहे,
किसी तरह की " और" जैसी भावना मन मैं न आयी न ही किसी भी प्रकार की
ईर्ष्या मन मैं न आयी जिनके सुंदर भवन, गाड़ी, वस्त्र व आभूषड़ थे तो तुम
सबसे सुखी हो,
हे मनुष्यों को मैं उसकी किस्मत के अनुसार देता हूँ, किस्मत पिछले जन्म
के कर्म पर निर्भर करती है, और जो व्यकती मेरी दी गयी भेटों को पा कर
संतुष्ट रहता है, सदेव जो जितना मिला पा कर मुझे धन्यवाद करता है वोही
सदा खुश व मेरा प्रिय रहता है "
कल्याण हो

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