Tuesday 8 November 2016

ईश्वर वाणी-१६१, भगवान के साकार रूप के प्रतीक

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों युं तो मैं निराकार हूँ, किंतु मूर्ति पूजक मेरे जिस स्वरूप की पूजा करते हैं आज उसके विषय मैं कुछ बातें तुम्हें बताता हूँ,

हे मनुष्यों अक्सर तुमने मूर्ति मैं या चित्तों मैं मेरे चार हाथ देखे है, यद्यपि ये कलाकार की कल्पना पर निर्भर करता है कि मेरा कौन सा स्वरूप उजागर करता है किंतु फिर भी चार भुजा धारी ही अधिकतर तुम मुझे देखते हो,

हे मनुष्यों ये चार भुजा चार युग की प्रतीक है, जिस युग मैं मानव की जैसी धारणा, लालसा रही उसी के अनूरूप मैंने उसी हाथ से उसे दिया,

हे मनुष्यों गहनों से लदा मेरा रूप केवल भौतिकता नही दिखाता वरण तुममें धार्मिक, आध्यात्मिक, नैतिक एवं मानविय गुणों अनुग्रहण करना सिखा पूर्ण मनुष्य बना सम्पन्न बनाता है,

हे मनुष्यों मेरे वस्त्र तुम्हें बोली, भाषा एवं व्यवहार मैं शालीनता की शिक्छा देता है,

हे मनुष्यों मेरे अस्त्र-शस्त्र तुम्हें तुम्हारी सभी बुराई का अंत कर सच्चा मानव बनने की सीख देते हैं,

हे मनुष्यों मुझपर अर्पित पुष्प, माला, धूप, दीप आदि तुम्हारे जीवन को भी एसे ही महकाने का प्रतीक है,

हे मनुष्यों मुझे तुम्हारे द्वारा दिया प्रसाद तुम्हारी अनाज की समपन्नता व वैभव का प्रतीक है,

हे मनुष्यों मुझे दिया दान मुद्रा के रूप मैं तुम्हे आर्थिक मजबूती प्रदान करने का प्रतीक है,

हे मनुष्यों तुम्हारी सच्ची प्राथना, समस्त जीवों के प्रती प्रेम भावना मेरे प्रिय कर मोछ प्राप्ती का प्रतीक है,

इसलिय हे मनुष्यों तुम निम्न गणों को जानो और सत्य के मार्गपर चल मोछ प्राप्त करो,


हे मनुष्यों जिन स्थानों पर (देश, काल, परिस्तिथी) के अनूरूप सादगी पूर्ण अपना रूप प्रस्तुत किया, मेरा रूप वहॉ भौतिकता त्याग ईश्वरीय मार्ग पर चल मोछ पाने का प्रतीक है "..

कल्याण हो

No comments:

Post a Comment