Wednesday 23 November 2016

ईश्वर वाणी-१६३, श्री क्या है??

ईश्वर कहते हैं, "हे मनष्यों समस्त संसार को जन्म देने वाली, जीवन देने वाली आदी शक्ती 'श्री' ही है, 

हे मनुष्यों मैंने ही अपने एक अंश से " श्री" का निर्माण किया, जिसने ब्रह्ममा, विश्णु और महेश को जन्म दिया, 'श्री' के ही आदेश से सम्पूर्ण जगत का निर्माण हुआ जीवों की उत्पत्ती हुयी और जीवन चक्र की व्यवस्था बनाई,

हे मनुष्यों समस्त देवताओं (श्री ब्रहम्मा, श्री विश्णु, शिव शंकर, श्री क्रष्ण, श्री राम) सभी के आगे 'श्री' लगता है किंतु शिव के आगे शंकर लगता है, कारण शिव का ही आधा भाग नारी का होकर वो अर्ध नारीस्वर कहलाये, किंतु बाकी सभी देवता अर्ध नारीस्वर न हो कर 'श्री' कहलाये,

'श्री' देवी के साथ मिलकर 'श्रीदेवी' कहलायी, वैसे ही श्री देव के साथ मिलकर श्रीदेव,

हे मनुष्यों प्राचीन समय मैं जगत स्त्री प्रधान था, इसकी वज़ह जीवों जन्म देने पालने व म्रत्यु के बाद भी खुद मैं समाने वाली प्रथ्वी स्त्री तत्व ही है, मैंने जिस शक्ती को खुदसे जन्म दिया वोभी स्त्री तत्व ही है जिसने त्रिदेवों को जगत की उत्पत्ती हेतु जन्म दिया,

हे मनुश्यों सभी देवताऔं व मनुष्य एवं सभी जीवधारीयों मैं नारी तत्व शक्ती के रूप मैं विराजित है, किंतु देवता और मनुष्यों के सम्मान मै 'श्री' शब्द का प्रयोग किया जाता है, देवता पत्नी के साथ मिलकर 'श्री' बने जैसे श्री हरि विष्णु माता लछ्मी के साथ मिलकर श्रीपति कहलाये, बिना लझ्मी के उनका कोई महत्व नही,

उसी तरह मानवों मैं भी श्रीमान लगाया गया, जिनका विवाह हो गया है वे पत्नी के साथ मिलकर श्रीमान हुये जिनका विवाह नही हुआ है वह भी अपने भीतर शक्ती के रूप मैं विराजित स्त्री तत्व के कारऩ श्रीमान कहे गये,


यहॉ मानव द्वारा विछिप्त धारणा के कारण स्रियों के लिये (अविवाहित) के लिये सुश्री और विवाहित के लिये श्रीमती कहा जाने लगा, किंतु आदिकाल मैं पुरूष व स्त्री के लिये केवल 'श्री' ही लगाया गया है, तभी 'श्रीमतभागवत' मैं भी 'श्री' है जो भगवान श्री क्रष्ण के विषय मैं है और 'श्रीदुर्गाचालीषा' मैं भी 'श्री', जो आदी शक्ती जगदम्बा के विषय मैं है,

"श्री" शब्द तीन शब्द 'श', 'र' तथी 'ई' से बना है, जिसका अर्थ है "श" श्रष्टी, "र" रचना "ई" ईश्वरीय अर्थात समस्र श्रष्टी ईश्वरीय रचना है, भौतिक जीवन मैं इसका अर्थ है( ''श्री'' ) जीवन, संपत्ती, वैभव, खुशहाली, तरक्की,


हे मनुष्यों जगत की प्रथम उत्पत्ती एवं जगत की जननी देवताऔ की जननी ''श्री'' ही है"

कल्याण हो




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