Thursday 18 May 2017

ईश्वर वाणी-207, मानव धर्म

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों तुम जिस धर्म की बात करते हो, जिसके नाम पर तुम आपस में लड़ते हो, जिस धार्मिक पुस्तक व् ग्रन्थ की बातो पर तुम मुझे श्रेष्ठ कहते हो, ये तो एक मत अर्थात विचारधारा है जो तुम्हे मुझसे जोड़ती है।

अनेक विचारधारा जो धरती पर है, जिनपर तुम चलने का दावा करते हो, धार्मिक ग्रन्थ व् उनकी बाते करते हो, ये सब तो तुम्हें मुझ तक पहुचाने मात्र का मार्ग है।

हे मनुष्यों मैंने कोई ऐसा धर्म नही बनाया जिसके कारण तुम आपस में बेर भाव रखो, मानव ही नहीं अन्य जीवो को सताओ, मैंने श्रष्टि की शुरुआत में ही तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म व् तुम्हारा धर्म निश्चित किया था, तुम्हारे कर्म समस्त पृथ्वी व् उसके जीवो जी रक्षा करना, प्रकति व् प्राणी जाती की रक्षा कर उनके कल्याण हेतु कार्य करना, व् धर्म था मानव जाती की स्थापना।

हे मनुष्यों यु तो मैं निराकार हूँ किन्तु तुम्हारा मुझपर विश्वास बना रहे इसलिये जब जब जहाँ जहाँ मानवता की हानि होती है मुझे मानव देह लेनी ही पड़ती है, देश, काल, परिस्तिथि, भाषा, सभ्यता, संस्करती के आधार पर तुम मुझे अनेक नाम दे डालते हो, तुम्हारे अंदर अमानवीये बुराई का नाश कर एक सम्पूर्ण मानव बनाने हेतु ही मैं अपने एक अंश को धरती पर भेजता हूँ जो तुम्हे मुझ तक आने का रास्ता दिखा कई वचन कहता है, जिनपर तुम यदि चलते हो तो मुझ तक पहुचते हो।

हे मनुष्यों इसका कदापि ये अर्थ नही मेरे अंश द्वारा जो बाते तुम्हे बताई उन्ही के द्वारा तुममुझे प्राप्तकर सकोगे, तुम अपनी प्राचीन मान्यता से भी मुझे प्राप्त कर सकते हो किंतु अपने अमानवीये अवगुणों का नाश कर के।

हे मनुष्यों इसलिये धर्म के नाम पर झगड़ा मत करो,ये न भूलो मैं एक विशाल सागर हूँ जिसका कोई शिरा नही, जितने भी तुम धार्मिक ग्रन्थ पड़ते हो, खुद को मुझे जानने का दावा करते हो ये तो उस सागर की एक बून्द के बराबर नही है, समस्त संसार के समस्त ग्रन्थ तुम्हें मुझे जानने की थोड़ी जानकारी व् ज्ञान अवश्य देते है किंतु पूर्ण नही, पूर्ण ज्ञान तो इतना है की चारो युग और अनंत जन्म भी कम पड़ जाये।

हे मनुष्यों इसलिये सभी मतानुयायी का सम्मान करो , सभी धर्म अर्थात विचारधारा पर चल उनका सम्मान कर, समस्त धार्मिक ग्रंथो की बातो पर चल उनका अनुशरण कर के ही तब तुम एक श्रेष्ट मानव बन मानव धर्म की स्थापना कर सही  मायने में मेरे बनाये धर्म पर चल मुझे प्राप्त कर पाओगे।।"

कल्याण हो

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